Sunday, October 19, 2025
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भारत के व्यवसायों के लिए रिश्वत बन चुकी है सामान्य प्रथा! 66% ने दी सरकारी अधिकारियों को घूसः रिपोर्ट

नई दिल्लीः एक नए सर्वेक्षण से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। भारत के 159 जिलों में किए गए इस सर्वेक्षण में पाया गया है कि लगभग दो-तिहाई व्यवसायों ने पिछले एक साल में सरकारी कामकाज के लिए रिश्वत दी है। LocalCircles के इस सर्वेक्षण के अनुसार, व्यवसायियों को आपूर्ति के लिए योग्यता प्राप्त करने, आदेश हासिल करने और भुगतान सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ी है।

सर्वे में और क्या बात आई सामने?

सर्वेक्षण में 18,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिसमें से 54% व्यवसायों ने कहा कि उन्हें रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया, जबकि 46% ने इसे प्रक्रिया को तेज करने के लिए स्वेच्छा से दिया। 75% रिश्वत सरकारी विभागों जैसे कि विधि, मापतौल, खाद्य, औषधि और स्वास्थ्य विभागों के अधिकारियों को दी गई।

अन्य विभागों में जिनमें रिश्वत दी गई, उनमें जीएसटी विभाग, प्रदूषण विभाग, नगर निगम और विद्युत विभाग शामिल थे। केवल 16% व्यवसायों ने दावा किया कि उन्होंने बिना किसी रिश्वत के अपना काम करवाया, जबकि 19% ने कहा कि उन्हें इस तरह की जरूरत नहीं पड़ी।

रिश्वत देना सामान्य प्रथा बन चुका है

रिपोर्ट के अनुसार, कई व्यवसायों का कहना है कि सरकारी कार्यों को गति देने के लिए रिश्वत देना सामान्य प्रथा बन चुका है। चाहे वह परमिट या अनुपालन प्रक्रिया हो या संपत्ति से संबंधित कोई कार्य। ऐसे मामलों में, 66% व्यवसायों ने पिछले 12 महीनों में रिश्वत दी थी।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि व्यवसायों के लिए रिश्वत देना एक तरह से जबरन वसूली जैसा हो गया है, जहाँ सरकारी एजेंसियों के साथ काम करते समय दस्तावेज़ों, आदेशों और भुगतान को सामान्य रूप से रोका जाता है।

हालांकि, सरकार द्वारा डिजिटलाइजेशन और सीसीटीवी कैमरों की संख्या बढ़ाने जैसे कदम उठाए गए हैं, फिर भी रिश्वत लेने की प्रथा में कोई खास कमी नहीं आई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन रिश्वतों का लेन-देन अक्सर सीसीटीवी से बच कर और बंद दरवाजों के पीछे होता है।

भ्रष्टाचार पर अंकुश की जरूरत

डीलॉयट इंडिया के पार्टनर आकाश शर्मा ने इस बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि व्यवसायों को यह विश्वास था कि न्यूनतम पालन करने से कोई नियामक जांच नहीं होगी, लेकिन अब भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि और बदलते नियामक परिदृश्य को देखते हुए कंपनियों को अपनी अनुपालन रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा और एक मजबूत एंटी-करप्शन कार्यक्रम स्थापित करना होगा। सर्वेक्षण भले ही भ्रष्टाचार की गंभीर स्थिति को उजागर करता हो, लेकिन व्यवसायों का कहना है कि पिछले 12 महीनों में रिश्वत के लेन-देन और भुगतान की कुल राशि में कमी आई है।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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