Friday, October 24, 2025
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खेती बाड़ी-कलम स्याही: क्या औवेसी महागठबंधन का कुछ बिगाड़ पाएंगे?

बिहार का सीमांचल, जहां असदुद्दीन औवेसी की पार्टी सबसे अधिक सक्रिय हैं, वह इलाका असम और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है। मुस्लिम बहुल होने के चलते ओवैसी ने बिहार के इस इलाके को अपनी सियासत की प्रयोगशाला बनाकर रखा है

महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है। हालांकि इस बात की सबको पहले से उम्मीद भी थी, लेकिन, जैसे ही मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया बिहार में सियासी पारा आसमान छूने लगा है। महागठबंधन के इस फैसले को लेकर असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम ) ने महागठबंधन पर करारा हमला बोला है।

एआईएमआईएम ने इस बहाने बिहार चुनाव में मुस्लिमों की हिस्सेदारी और भागीदारी का सवाल उठते हुए कहा है कि 18 प्रतिशत वाला मुस्लिम समुदाय दरी बिछाने का काम करेगा और 2 प्रतिशत वाला डिप्टी सीएम बनेगा।

औवेसी इस बार के बिहार चुनाव में मुस्लिम समुदाय की भागिदारी को लेकर मुखर हैं। वे बार-बार कह रहे हैं कि जब हर दल के नेता जाति के आधार पर बात कर रह हैं तो फिर मुस्लिम क्यों न अपना नेता चुने !

बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने अपने 25 उम्मीदवार उतारे हैं। इस बार सीमांचल के साथ-साथ बिहार के दूसरे इलाके की सीटों पर भी किस्मत आजमा रहे हैं।

अपने खास जनाधार वाले सीमांचल में एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी 2020 विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराने के लिए पूरे दम खम से उतरे हैं। इस बार वे बेहतर परिणाम पाने के लिए हर ताकत झोंक रहे हैं। यही कारण है कि इस बार उनकी पार्टी ने पूर्णिया, कटिहार, अररिया व किशनगंज में अधिकांश विधानसभा क्षेत्र में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं।

2020 विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने राज्य में सिर्फ 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार पूरे बिहार में एआईएमआईएम ने 25 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जिसमें 14 सिर्फ सीमांचल से है।

पूर्णिया के सात विधानसभा में मुस्लिम बहुल चार क्षेत्रों में उन्होंने अपने उम्मीदवार दिए हैं। खासकर बायसी व अमौर सीट पर ओवैसी का खास फोकस है।

नामांकन शुरू होने से पूर्व ओवैसी का सीमांचल के हर जिले में रोड शो हुआ था, जिसमें बड़ी संख्या में लोग उमड़े। उन्होंने राजनीतिक दांव खेलते हुए राजद के नेता तेजस्वी यादव को गठबंधन में शामिल करने का न्योता भी भेजा था। इससे उन्होंने सीमांचल में मुस्लिमों के बीच यह मैसेज देने का प्रयास किया है कि उनका सच्चा शुभचिंतक एआईएमआईएम ही है। पार्टी का यह तेवर महागठबंधन की परेशानी बढ़ा सकती है।

2025 विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई में पार्टी सीमांचल से लेकर पूरे राज्य में एआईएमआईएम के विस्तार पर काम कर रही है। माना जा रहा है कि मुस्लिम बहुल दर्जनों सीटों पर एआईएमआईएम फैक्टर निर्णायक साबित हो सकता है।

एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने कहा है कि इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों को एआईएमआईएम की मौजूदगी का एहसास करायेगा।

पूर्णिया के सात विधानसभा में इस बार एआईएमआईएम ने चार सीट पर अपने उम्मीदवार दिए हैं। जिसमें, कसबा, अमौर व बायसी विस क्षेत्र शामिल है।

इस बार एआईएमआईएम ने वहां से नया उम्मीदवार जिला परिषद अध्यक्ष वाहिदा सरवर के पति गुलाम सरवर को प्रत्याशी बनाया है। इधर, एआईएमआईएम से राजद में शामिल हुए विधायक रूकनुद्दीन को राजद ने भी बेटिकट कर दिया है, इसलिए गुलाम सरवर को इस बार राजद प्रत्याशी हाजी अब्दुस सुब्हान और भाजपा के विनोद यादव से टक्कर लेना होगा।

अमौर में एआईएमआईएम के विधायक अख्तरूल इमान का मुकाबला कांग्रेस के जलील मस्तान एवं जदयू के सबा जफर से होगा। ओवैसी सीमांचल में अधिकांश सीटों पर अपनी जीत पक्का करने में लगे हैं।

औवेसी ने इस बार सीमांचल ही नहीं, बल्कि उत्तर और दक्षिण बिहार की सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ओवैसी ने मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू उम्मीदवार भी उतारे हैं।

बिहार में ओवैसी ने जिस तरह मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदू प्रत्याशी दिए हैं, वह उनका बदला हुआ सियासी रुख दर्शा रहा है।

पूर्व सांसद सीताराम सिंह के बेटे राणा रंजीत सिंह को ढाका सीट से टिकट दिया है, तो मनोज कुमार दास को सिकंदरा सीट से उम्मीदवार बनाया है। राणा रंजीत सिंह राजपूत समुदाय से हैं तो मनोज कुमार दलित समुदाय से हैं।

हालांकि ग्राउंड में लोग यह भी कहते हैं कि ओवैसी का बिहार में कोई ज़मीनी आधार नहीं है, बल्कि उनकी पकड़ सीमांचल के इलाके की कुछ सीटों तक पर ही रही है। लोगबाग कहते हैं कि महागठबंधन बनाम एनडीए की सीधी जंग में मुसलमानों का झुकाव महागठबंधन की तरफ होगा। हालांकि इस बार का चुनाव काफी अलग है। ऐसे में ओवैसी की पार्टी को उम्मीद दिख रही है।

बिहार का सीमांचल, जहां औवेसी की पार्टी सबसे अधिक सक्रिय हैं, वह इलाका असम और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है। मुस्लिम बहुल होने के चलते ओवैसी ने बिहार के इस इलाके को अपनी सियासत की प्रयोगशाला बनाकर रखा है, क्योंकि यहां पर 40 से 70 फ़ीसदी तक मुस्लिम आबादी है।

गौरतलब है कि 2020 के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के चलते भाजपा सीमांचल में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। मुस्लिम वोटों के दम पर 2020 में ओवैसी ने कांग्रेस और राजद का खेल बिगाड़ दिया था, जिससे भाजपा को लाभ मिला था।

इन सब चुनावी गुणा गणित के बीच महागठबंधन की तरफ से डिप्टी सीएम पद के लिए मुकेश सहनी के नाम पर औवेसी की पार्टी ने एक अलग ही राग छेड़कर बिहार की राजनीति को एक मोड़ पर खड़ा करने की कोशिश की है। एआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए लिखा- 2 फीसदी वोट वाला डिप्टी सीएम, 13 फीसदी वाला सीएम और 18 फीसदी वाला दरी बिछाने वाला मंत्री. जब हम सवाल उठाते हैं तो कहा जाता है -‘अब्दुल तू चुप बैठ, वरना बीजेपी आ जाएगी”।

एआईएमआईएम अध्यक्ष के इस बयान ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है। मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर पार्टी ने जो सवाल उठाया है उसने महागठबंधन के भीतर असहजता पैदा कर दी है। शौकत अली ने कहा कि बिहार की राजनीति में वर्षों से मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

गौरतलब है कि बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17.7 प्रतिशत है। कई विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोट 35 से 40 प्रतिशत तक हैं जो जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में औवेसी की पार्टी का तर्क है कि इतनी बड़ी आबादी को सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। दूसरी ओर, मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी का जनाधार मुख्य रूप से निषाद समाज में है जिसकी हिस्सेदारी करीब 2 प्रतिशत मानी जाती है।

गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा ने पत्रकारिता की पढ़ाई वाईएमसीए, दिल्ली से की. उसके पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक कर चुके थे. आप CSDS के फेलोशिप प्रोग्राम के हिस्सा रह चुके हैं. पत्रकारिता के बाद करीब एक दशक तक विभिन्न टेलीविजन चैनलों और अखबारों में काम किया. पूर्णकालिक लेखन और जड़ों की ओर लौटने की जिद उनको वापस उनके गांव चनका ले आयी. वहां रह कर खेतीबाड़ी के साथ लेखन भी करते हैं. राजकमल प्रकाशन से उनकी लघु प्रेम कथाओं की किताब भी आ चुकी है.
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