नई दिल्ली: राहुल गांधी करीब दो महीने पहले जब बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ लेकर निकले तो खूब सुर्खियां बनी। चर्चा इसकी भी हुई कि क्या उन्हें उस जमीन पर भरपूर समर्थन मिलेगा जहाँ की राजनीति के केंद्र से कांग्रेस को गायब हुए तीन दशक से ज्यादा गुजर चुके हैं। बहरहाल, 16 दिनों तक राहुल गांधी का अभियान बखूबी चला और ये करीब 100 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरा।
हालाँकि, आज जब बिहार में चुनावी सरगर्मी चरम पर है तो राहुल गांधी नजर नहीं आ रहे हैं। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह की रैलियां हो चुकी हैं। विपक्ष के तेजस्वी यादव के रोड शो और प्रशांत किशोर की छोटी-छोटी सभाएं भी हो रही हैं, लेकिन राहुल गांधी गायब हैं। इसे लेकर एनएडी ने मुद्दा भी बना दिया है और वो सवाल पूछ रही है। हालांकि अब जबकि सवाल उठे हैं तो राहुल के बिहार में कुछ रैलियों का ऐलान कांग्रेस की ओर से कर दिया गया है। कांग्रेस ने कहा है कि छठ पूजा के बाद पार्टी पूरे जोरशोर से प्रचार में उतरेगी।
1 सितंबर को आखिरी बार बिहार में थे राहुल गांधी
राहुल गांधी बिहार में आखिरी बार लगभग दो महीने पहले नजर आए थे, जब उन्होंने 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में अपनी वोटर अधिकार यात्रा समाप्त की थी। 16 दिनों में, राहुल गांधी 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों में 1,300 किलोमीटर की यात्रा की। कभी मोटरसाइकिल चलाते हुए, कभी गमछा डाले हुए, मखाना किसानों से मुलाकात और इन सबके बीच तेजस्वी यादव और विपक्ष के अन्य नेताओं के साथ से राहुल की ये यात्रा चर्चा में रही।
दो महीने बाद, लेकिन कहानी बदली नजर आ रही है। राहुल गांधी अपनी यात्रा के जरिए कांग्रेस के जनाधार को कुछ समय के लिए जगाते नजर आए थे लेकिन ऐसा लगता है कि वो गति फिर थम रही है। राहुल आगे बढ़कर नेतृत्व करने की बजाय गायब नजर आ रहे हैं।
पटना रैली के बाद से राहुल गांधी केवल पाँच बार सार्वजनिक रूप से दिखाई दिए हैं पर इसमें एक भी बार बिहार में नहीं। सितंबर के आखिर में वे गुरुग्राम के एक पिज्जा आउटलेट पर नजर आए थे। इसके बाद अक्टूबर की शुरुआत में, वे कोलंबिया गए, जहाँ ‘भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हर तरफ से हमले’ वाला दिया हुआ बयान खबरों में रहा। इसके बाद 17 अक्टूबर को वे असम में गायक जुबीन गर्ग को श्रद्धांजलि देने उनके गाँव गए। इसके तीन दिन बाद उनके कुछ वीडियो पुरानी दिल्ली की एक मिठाई की दुकान पर जाने के सामने आए।
महागठबंधन, राहुल गांधी और कई तरह के कयास
महागठबंधन ने हाल में जब 23 अक्टूबर को तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के बैनर पर केवल एक चेहरा राजद नेता का ही था। यही नहीं, इतने बड़े ऐलान के समय भी राहुल गांधी न मंच पर थे और न बिहार में। इसके पहले महागठबंधन के भीतर खींचतान जैसी खबरें आती रही थी। यही कारण रहा कि सीटों के बंटवारे की कोई आधिकारिक ऐलान कभी नहीं हुआ।
बहरहाल, राजद अब बिहार की 243 सीटों में से 143 पर और कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सबसे खराब था, जिसके कारण राजद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जो राजद (144) के बाद विपक्षी गठबंधन में सबसे अधिक थी, लेकिन जीत केवल 19 पर उसे मिली।
राहुल के बिहार में अभी तक सक्रिय नहीं होने को लेकर कई तरह के कयास चल रहे हैं। इसमें एक महागठबंधन में खींचतान भी शामिल है। इसके अलावा ये भी कयास चले कि राहुल के आने से स्थानीय की जगह राष्ट्रीय मुद्दे उठेंगे और फिर चुनाव राहुल Vs मोदी की ओर घूम जाने का खतरा है और संभव है कि इससे नुकसान महागठबंधन का हो।
राहुल गांधी बिहार से क्यों है गायब? कांग्रेस क्या कह रही
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि पार्टी का ‘पूरी ताकत से प्रचार अभियान’ छठ पर्व के बाद ही शुरू होगा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी 29 और 30 अक्टूबर को बिहार का दौरा करेंगे। इसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी बिहार का दौरा करेंगे। राहुल गांधी की तेजस्वी के साथ मुजफ्फरपुर और दरभंगा में एक संयुक्त रैली की योजना है।
हालांकि, सवाल उठ रहे हैं कि यह फैसला देर से लिया गया? पिछले एक महीने से जबकि एनडीए (पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा तक) ने बिहार में कई रैलियां की है। ऐसे में 6 नवंबर को पहले चरण के मतदान से बमुश्किल एक हफ्ते पहले राहुल की वापसी क्या देरी नहीं है?
इस बीच फिलहाल कांग्रेस की यात्रा के पुराने वीडियो एक्स पर डाल कर राहुल गांधी की अनुपस्थिति की भरपाई करने की कोशिश पार्टी करती नजर आ रही है। ऐसे ही एक ट्वीट में, जिसे सोमवार को किया गया, उसमें राहुल गांधी को ‘जननायक’ कहा गया।
बिहार में बड़े कांग्रेसी नेताओं के अब तक गायब रहने से उसके उम्मीदवारों की भी उलझन बढ़ी हुई है। इस बीच बिहार कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने पार्टी की मुश्किलों को और बढ़ाया है। टिकट वितरण के दौरान खुलेआम बगावत नजर आई, जिसमें राज्य के नेताओं ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु पर भ्रष्टाचार और पक्षपात का आरोप लगाया। असंतुष्ट सदस्य पार्टी मुख्यालय में विरोध प्रदर्शन करते देखे गए। इन लोगों का नारा, ‘टिकट चोर, गद्दी छोड़’, राहुल गांधी के एनडीए सरकार पर दिए गए ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ वाले नारे से लिया गया नजर आया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार कार्यकर्ताओं के बीच इस तरह असहमति साफ तौर पर केंद्रीय नेतृत्व और स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच गहरे मतभेद और संवादहीनता को दिखाती है। जबकि चुनाव प्रचार का लगभग अंतिम चरण आ पहुंचा है। हाल के दिनों में, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल जैसे वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के भीतर और राजद जैसे सहयोगियों के साथ मतभेदों को संभालने के लिए पटना भेजा गया, लेकिन इस फैसले में भी देरी हुई। महागठबंधन में मतभेद ऐसा रहा कि हेमंत सोरेन, जो बिहार में राहुल के साथ यात्रा में शामिल हुए थे, वे आखिरकार अलग हो गए और उनकी पार्टी झामुमो ने पहले अकेले लेकिन फिर बाद में जबर्दस्त नाराजगी दिखाते हुए चुनाव न लड़ने का फैसला किया।

