पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब हफ्ते दिन पहले सीतामढ़ी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए विपक्ष पर तीखा हमला बोला था और कहा था कि बिहार की जनता अब ‘कट्टा सरकार’ नहीं चाहती। पीएम मोदी सहित भाजपा ने पिछले एक से डेढ़ महीने में चुनावी रैलियों में कई बार और जोरशोर से 90 के दशक और खासकर 2005 से पहले की कानून व्यवस्था का जिक्र किया। दूसरी ओर चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं के स्वरोजगार के लिए 10 हजार रुपये देने की योजना शुरू की। अब नतीजे बता रहे हैं कि एनडीए की इन रणनीतियों ने चुनाव में उसे बेशक बड़ा फायदा पहुचाया है।
10 हजारी चुनाव….’कट्टा, दुनाली, रंगदारी’ का डर
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 1.3 करोड़ महिलाओं के लिए 10,000 रुपये की योजना ने उनके महिला मतदाता आधार को और मजबूत किया, जो पहले से ही उनके हक में नजर आ रही थीं। रिकॉर्ड 71.6 प्रतिशत महिलाओं ने इस बार वोट दिया। यह पुरुषों के 62.8% से 8.8 प्रतिशत ज्यादा था।
महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये पहुंच जाने के बाद, उन्होंने जाहिर तौर तेजस्वी यादव के इस वादे पर विश्वास नहीं किया कि वे यदि जीतते हैं तो उन्हें 2500 रुपये प्रति माह देंगे। तेजस्वी ने यहां तक ऐलान किया ये सभी 12 महीने के 2500 एक साथ दिए जाएंगे। उन्होंने कहा था कि सरकार बनने पर 30 हजार रुपये एक साथ 14 जनवरी को दिए जाएंगे।
दूसरी ओर चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी के ‘कट्टा, दुनाली, रंगदारी’ के शब्दों ने मतदाताओं को ‘जंगलराज’ की याद दिला दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह बार-बार कहा गया कि राजद के आने से फिर वही दौर बिहार में आएगा। बिहार में पीएम मोदी की लोकप्रियता ने लोगों के मन में इस संदेश को मजबूत से पहुंचाने में और मदद की।
नीतीश के इन चुनावी वादों ने भी वोटरों को लुभाया
एनडीए की ओर बड़ी घोषणा ये भी रही कि सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जाएगी और दी भी जाने लगी। गाँवों के लोगों के लिए ये एक बड़ी राहत थी जहां कई लोगों को अब बिजली के बिल के रूप में कुछ भी नहीं देना पड़ता है।
इसके अलावा नीतीश कुमार ने 1.2 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों के लिए वृद्धावस्था पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये कर दी। इसी साल जुलाई में नीतीश सरकार की ओर से बिहार में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में 35 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा भी की गई थी। आशा वर्कर और जीविका दीदियों के लिए मिल रही सुविधाओं और मानदेय में वृद्धि करने की घोषणाओं ने भी रंग दिखाया है।
महागठबंधन से कहां हो गई गलती?
पिछले कुछ महीनों में ऐसा लगा कि एंटी-इनकम्बेंशी और प्रशांत किशोर का फैक्टर नीतीश कुमार और एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी करने जा रहा है। बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा भी जोरशोर से विपक्ष की ओर से उठाया गया। प्रशांत किशोर ने शराबबंदी का मुद्दा कई बार उठाया लेकिन इसे भी जनता ने नकार दिया है।
महागठबंधन ने कुछ महीने पहले चुनाव प्रचार में जाहिर तौर पर कुछ बड़ी गलती भी की। खासकर विपक्ष ने जब एनडीए शासन में अराजकता के मुद्दे से ध्यान हटाकर एसआईआर पर पूरी बहस को केंद्रित करना शुरू किया। इसी साल जुलाई में पटना में उद्योगपति गोपाल खेमका की हत्या ने बिहार को झकझोर कर रख दिया था। कुछ और घटनाएं भी हुई और एनडीए सरकार सवालों के घेरे में आ गई थी।
हालांकि, इसके तुरंत बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने राज्य भर में ‘वोट अधिकार यात्रा’ शुरू कर दी। बात एसआईआर मुद्दे पर केंद्रित कर दी गई। चुनाव आते-आते एसआईआर मुद्दा भी अपनी प्रासंगिकता खो चुका था और जब ईवीएम का बटन दबाने का समय आया, तो मतदाताओं के बीच ‘वोट चोरी’ की चर्चा भी लगभग बंद हो गई।
इसके अलावा महागठबंधन ने खुद को साथ तो दिखाने की कोशिश की लेकिन सीट बंटवारे से लेकर कई मौकों पर दरार साफ तौर पर नजर आया। विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ सकीं।
2025 से 30…फिर नीतीश
यह चुनावी नतीजे नीतीश कुमार के लिए भी उनके राजनीतिक करियर का एक बड़ा मोड़ है। ऐसा इसलिए कि 2020 के चुनाव के बाद कहा जाने लगा था कि नीतीश भाजपा की मजबूरी हैं। एक ‘कमजोर कड़ी’ के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन इस पूरी कहानी को उन्होंने इस बार पलट दिया। 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी ने 2005 के बाद सबसे खराब प्रदर्शन किया था। 115 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 43 सीटें उनकी पार्टी जदयू जीत पाई थी।
इस बार जदयू ने जिन 101 सीटों पर चुनाव लड़ा है, उनमें से 70 से ज्यादा सीटें जीतती दिख रही है। नीतीश कुमार का बेहतर स्ट्राइक रेट उनकी पार्टी के नारे ’25 से 30, फिर नीतीश’ को दोहराता नजर आता है। यह नतीजा इस सवाल का भी मजबूत जवाब है जो पिछले कई महीनों से भाजपा से पूछा जा रहा था कि क्या नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे और सही मायने में ‘बिहार के किंग’ बने रहेंगे।

