Saturday, October 18, 2025
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खेती बाड़ी-कलम स्याही: पीके क्यों नहीं लड़ेंगे चुनाव?

राजनीति में यह कहा जाता रहा है कि चुनाव मैदान में लड़ने के लिए उतरना होता है, हार या जीत के लिए नहीं। लेकिन, प्रशांत किशोर ने ये जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया है।

बिहार के चुनावी मौसम में टिकट की मारामारी के बीच पिछले दो साल से बिहार बदलने का नारा गढ़ने वाले जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर को लेकर हर जगह चर्चा हो रही है लेकिन राजनीति के इस रणनीतिकार ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।

दरअसल प्रशांत किशोर ने पेशा भले बदल लिया हो, भले ही वो चुनाव रणनीतिकार से राजनीति के मैदान में कूद पड़े हों, लेकिन अब भी ज्यादा भरोसा उनको चुनाव लड़ाने में ही है, न कि खुद लड़ने में।

गौरतलब है कि पहले वो नीतीश कुमार के खिलाफ या राघोपुर से तेजस्वी यादव के खिलाफ मैदान में उतरने की बात कर रहे थे, लेकिन अब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कदम पीछे खींच लिया है।

राजनीति को करीब से देखने वाले यह कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान में आरंभ से ही अरविंद केजरीवाल की राजनीति दिख रही थी। अरविंद केजरीवाल भी करपश्न को अपना हथियार बनाकर राजनीति करने उतरे थे। वे भी पीके की तरह ही अपने राजनीतिक विरोधियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते रहते थे।

एक चीज और गौर करने की बात है कि जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार भी इलाके के लोगों के फीडबैक के बाद ही चुने जाने का दावा पीके करते आए हैं और ऐसा ही कुछ अरविंद केजरीवाल भी करते थे।

लेकिन, खुद चुनाव लड़ने के मामले में अरविंद केजरीवाल से प्रशांत किशोर के विचार अब अलग दिखने लगे हैं। हालांकि अपने प्रचार तंत्र के जरिए प्रशांत किशोर ने चुनाव लड़ने को लेकर खूब हवा बनाई, लेकिन अब पीछे हट गए हैं।

नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव तक के खिलाफ चुनाव लड़ने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने हथियार डाल दिया है, और इसके लिए जन सुराज पार्टी के फैसले को सार्वजिनक करने का शायद बहाना बनाया है।

चुनाव अभियान पर निकलने से पहले प्रशांत किशोर ने पिछले ही हफ्ते कहा था, “मैं राघोपुर जा रहा हूं… वहां के लोगों से मिलकर उनकी राय लूंगा।”

प्रशांत किशोर ने तो यहां तक दावा किया था कि अगर वो राघोपुर से चुनाव लड़े तो तेजस्वी यादव को दो सीटों से चुनाव लड़ना पड़ेगा। प्रशांत किशोर का कहना था, ‘तेजस्वी यादव का वही हश्र होगा जो राहुल गांधी को अमेठी में हुआ था।’

गौरतलब है कि 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी भी उत्तर प्रदेश की अमेठी और केरल की वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। राहुल गांधी को अमेठी में भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी ने हरा दिया था।

लेकिन जब जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आई तो मालूम हुआ राघोपुर से चंचल सिंह को टिकट दे दिया गया है। प्रशांत किशोर के करगहर से भी चुनाव लड़े की संभावना जताई जा रही थी, जहां से भोजपुरी गायक रितेश पांडेय को जन सुराज पार्टी का टिकट मिला है।

प्रशांत किशोर का कहना है, “पार्टी ने फैसला किया है कि मुझे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए… इसलिए पार्टी ने तेजस्वी यादव के खिलाफ राघोपुर से अन्य उम्मीदवार की घोषणा की है… ये पार्टी के व्यापक हित में लिया गया फैसला है… अगर मैं चुनाव लड़ता तो इससे मेरा ध्यान आवश्यक संगठनात्मक कार्यों से हट जाता।”

प्रशांत किशोर के इस बयान के बाद लोग यह भी कहने लगे हैं कि जन सुराज के संस्थापक को शायद चुनाव लड़ने से अधिक चुनाव लड़वाने में दिलचस्पी है।

राजनीति में यह कहा जाता रहा है कि चुनाव मैदान में लड़ने के लिए उतरना होता है, हार या जीत के लिए नहीं। लेकिन, प्रशांत किशोर ने ये जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया है। इस घटनाक्रम को देखने के बाद यह भी कहा जा सकता है कि पीके खुद को वैसी गारंटी नहीं दे पा रहे होंगे, जो अब तक अपने क्लाइंट को देते रहे हैं।

तेजस्वी यादव जिस राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वो लालू यादव के परिवार का गढ़ रहा है। लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों ही राघोपुर से विधायक रह चुके हैं। तेजस्वी यादव के लिए बिहार में बहुमत हासिल करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन राघोपुर से किसी के लिए अचानक मैदान में उतर कर उन्हें हराना उतना आसान भी नहीं दिखता है।

लोगबाग यह कहते हैं कि प्रशांत किशोर भले ही बिहार में बदलाव की आवाज बन कर उभरे हों, लेकिन उनकी छवि आज जनमानस में रणनीतिकार की ही है जो केवल चुनावी बिसात बिछाता है।

जन सुराज अभियान के संस्थापक के तौर पर प्रशांत किशोर पिछले दो वर्षों से गांव-गांव पदयात्रा कर जनता के बीच संवाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन किसी व्यक्ति या पद के लिए नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए है।

हाल ही में भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने प्रशांत किशोर के चुनाव न लड़ने पर सवाल उठाया था और कहा था कि “प्रशांत किशोर चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं? हम यह सवाल जरूर उठाएंगे। वह भी बिहार को बदलना चाहते हैं..शायद उनका भी मुख्यमंत्री बनने का सपना है, इसलिए उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए. हिम्मत क्यों नहीं है? ”

गौरतलब है कि पहले प्रशांत किशोर के राघोपुर विधानसभा सीट से लड़ने की चर्चा थी। जिस तरह से वह राजद और बिहार सरकार पर हमला बोलते थे उससे माना जा रहा था कि वह राघोपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में उनका सीधा मुकाबला तेजस्वी यादव से होता। तेजस्वी यादव भी राघोपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

इन सबके बीच पीके की पार्टी में लोगों के जुड़ने का सिलसिला जारी है। इस कड़ी में अररिया के पूर्व सांसद सरफराज आलम ने राष्ट्रीय जनता दल को अलविदा कहकर ‘जन सुराज’ अभियान का दामन थामा है।

सरफराज आलम का ‘जन सुराज’ में शामिल होना राजद के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। उन्होंने गुरुवार को आरजेडी से अपना इस्तीफा दिया था और कुछ ही घंटों बाद प्रशांत किशोर के साथ खड़े दिखे। सरफराज आलम सीमांचल की राजनीति का एक बड़ा चेहरा हैं। वह जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके हैं और अररिया से एक बार सांसद भी चुने गए थे। उनके इस कदम से माना जा रहा है कि सीमांचल इलाके में ‘जन सुराज’ को काफी मजबूती मिलेगी।

गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा ने पत्रकारिता की पढ़ाई वाईएमसीए, दिल्ली से की. उसके पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक कर चुके थे. आप CSDS के फेलोशिप प्रोग्राम के हिस्सा रह चुके हैं. पत्रकारिता के बाद करीब एक दशक तक विभिन्न टेलीविजन चैनलों और अखबारों में काम किया. पूर्णकालिक लेखन और जड़ों की ओर लौटने की जिद उनको वापस उनके गांव चनका ले आयी. वहां रह कर खेतीबाड़ी के साथ लेखन भी करते हैं. राजकमल प्रकाशन से उनकी लघु प्रेम कथाओं की किताब भी आ चुकी है.
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