पटना: बिहार विधानसभा चुनाव-2025 में एनडीए गठबंधन को प्रचंड जीत मिली है। गठबंधन के खाते में 200 से ज्यादा सीटें आ रही हैं। यह तस्वीर 2020 के विधानसभा चुनाव से बिल्कुल उलट है जब एनडीए और विपक्ष के महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। बहरहाल, इस बार साफ तौर पर लहर एनडीए की नजर आई है। यह स्पष्टता बिहार में आरक्षित सीटों के नतीजों में भी झलक रही है।
बिहार विधानसभा में कुल 40 आरक्षित सीटें हैं। इसमें 38 अनुसूचित जाति (SC) के लिए और 2 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए हैं। इस बार के चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने 34 अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति सीट जीती है। इसका मतलब कुल 35 सीटें एनडीए के खाते में आई। वहीं, विपक्षी महागठबंधन को केवल चार अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति सीट ही मिल पाई है।
साल 2020 के विधानसभा चुनावों में यह आंकड़ा बदला हुआ था। एनडीए ने तब 40 में से केवल 21 सीटें जीती थी। वहीं, महागठबंधन के खाते में 17 आरक्षित सीट आए थे। यह भी गौर करने वाली बात है कि तब अविभाजित लोक जनशक्ति पार्टी, जो दलित पासवान समुदाय को अपना मुख्य वोट आधार मानती है, उसने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा था और खुद कोई सीट जीते बिना आरक्षित सीटों पर जदयू और राजद को काफी नुकसान पहुंचाया था।
वैसे, राज्य की दो एसटी सीटों के नतीजे 2020 के चुनाव की तरह ही रहे। कांग्रेस ने फिर से मोतिहारी में जीत हासिल की और भाजपा ने कटोरिया की सीट को अपने पास बरकरार रखा।
आरक्षित सीटों पर एनडीए की पार्टियों का प्रदर्शन
इस बार 38 अनुसूचित जाति वाली सीटों में से एनडीए का हिस्सा जदयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें उसे 13 पर जीत मिली है। वहीं, भाजपा ने अनुसूचित जाति वाली 12 सीटों पर चुनाव लड़ा और शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी पर जीत हासिल की है। चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने आठ अनुसूचित जाति वाली सीटों पर चुनाव लड़कर पाँच पर जीत हासिल की।
जबकि जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) ने सभी चार अनुसूचित जाति वाली सीटों पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की।
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आंकड़े बताते हैं कि जदयू ने 2020 की तुलना में अनुसूचित जातियों की सीटों में सबसे अच्छा सुधार दर्ज कराया। तब उसने आठ सीटें जीती थीं। भाजपा ने भी पिछली बार की 9 अनुसूचित जातियों वाली सीटों पर मिली जीत को और बेहतर किया है। ‘हम’ ने 2020 में तीन अनुसूचित जातियों की सीटें जीती थीं। इसके अलावा मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), जो तब एनडीए की सदस्य थी और अब विपक्षी गठबंधन में है, उसने एक सीट जीती थी।
आरक्षित सीटों पर महागठबंधन का प्रदर्शन
दूसरी ओर इस बार महागठबंधन का प्रदर्शन इन सीटों पर निराशाजनक रहा है। महागठबंधन में राजद ने ही सभी चार अनुसूचित जाति वाली सीटों पर जीत हासिल की, जबकि उसने सबसे ज्यादा 20 आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस 12 अनुसूचित जातियों की सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसके खाते में एक भी नहीं आई।
यही हाल सीपीआई (एमएल) एल और सीपीआई का भी रहा। इन्होंने क्रमशः छह और दो सीटों पर चुनाव लड़ा था। यहां ये भी बता दें कि इनमें से दो सीटों पर महागठबंधन ‘दोस्ताना लड़ाई’ में उलझा हुआ था। इसमें एक सीट राजा पाकर की है, जहां कांग्रेस के सामने सीपीआई भी खड़ी थी। वहीं, दूसरी सीट सिकंदरा में राजद और कांग्रेस आमने-सामने थे।
पाँच साल पहले राजद ने नौ अनुसूचित जाति वाली सीटें जीती थीं। वहीं, कांग्रेस और वाम दलों ने चार-चार सीटें जीती थीं। बहरहाल, इस बार अपने खराब प्रदर्शन के बावजूद अनुसूचित जाति सीटों में राजद का वोट शेयर सबसे ज्यादा 21.75% रहा है। इसके बाद जदयू का 19.07%, भाजपा का 15.84%, लोजपा(रामविलास) का 9.17%, कांग्रेस का 8.48%, भाकपा(माले)एल का 6.4% और हम का 4.91% वोट शेयर रहा है।
बिहार चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली जन सुराज ने अनुसूचित जातियों वाली सीटों पर 3.48% वोट शेयर हासिल किया है। जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 1.63% वोट मिले। बसपा भी एक भी सीट नहीं जीत पाई है।

