Friday, November 7, 2025
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खेती बाड़ी-कलम स्याही: सीमांचल में पीएम से लेकर सीएम तक भर रहे हैं हुंकार!

सीमांचल का मैदान इस बार बिहार की सबसे दिलचस्प सियासी कहानी लिखने वाला है क्योंकि मोदी, अमित शाह से लेकर राहुल गांधी तक यहां लगातार प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर इन सबके बीच असदुद्दीन ओवैसी भी नए जोश और नई रणनीति के साथ मैदान में हैं।

बिहार में पहले चरण के रिकार्ड तोड़ मतदान के बाद अब सबकी निगाहें 11 नवंबर के मतदान पर टिक गई है। बिहार भर में नेताओं की रैलियां, रोड शो ताबड़तोड़ हो रही है। जहां एक तरफ प्रधानमंत्री मोर्चा संभाले हुए हैं वहीं नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी अपनी सभाओं में खूब गरज रहे हैं।

दूसरे और अंतिम चरण में सबकी निगाहें सीमांचल की कुल 24 सीटों पर टिकी हुई है। गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी ने अररिया के फारबिसगंज से 9 विधानसभा सीटों के लिए समर्थन मांगा और फिर भागलपुर में रैली की।

प्रधानमंत्री मोदी ने अररिया में सीधे तौर पर घुसपैठियों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, ‘राजद और कांग्रेस को जहां भी मौका मिला, वे घुसपैठियों को पिछले दरवाजे से भारत का नागरिक बनाने में लगे रहे। ये घुसपैठिए आपके खेतों पर कब्जा कर रहे हैं और आपके बच्चों का हक छीन रहे हैं।’

प्रधानमंत्री मोदी ने महागठबंधन पर ‘जंगलराज’ लाने का आरोप लगाया और युवाओं को नौकरी देने के वादे को ‘मोदी की गारंटी’ से जोड़ते हुए एनडीए को वोट देने की अपील की।

इसे कांग्रेस की प्रचार नीति का हिस्सा ही माना जाए कि गुरुवार को ही कांग्रेस के सर्वोच्च नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी सीमांचल में ही थे। उन्होंने अररिया और पूर्णिया जिला के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में सभा की।

अररिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के कुछ घंटों बाद राहुल गांधी ने भी अररिया में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। राहुल गांधी ने पीएम मोदी के बयानों पर जवाबी हमला किया।

अररिया में राहुल गांधी ने स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में जनसभा की। उन्होंने सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिए बिना कहा कि महागठबंधन की सरकार का उद्देश्य गरीबों और युवाओं को हक दिलाना है। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच सीएम उम्मीदवारी पर कटाक्ष करने के लिए पीएम मोदी को जवाब दिया और कहा कि महागठबंधन एकजुट है।

गौरतलब है कि अररिया सहित पूरा सीमांचल क्षेत्र ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए सबसे संवेदनशील माना जाता है। अररिया जिले की छह विधानसभा सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने घुसपैठियों का मुद्दा उठाकर सीधे तौर पर बहुसंख्यक मतदाताओं को गोलबंद करने की कोशिश की है।

राहुल गांधी ने शिक्षा, विकास और अधिकारों की बात करके अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के वोटों को केंद्रीकृत करने की कोशिश की है।

एक ही दिन और एक ही क्षेत्र में दोनों नेताओं का आना यह दिखाता है कि दोनों गठबंधन इस क्षेत्र को लेकर कितने गंभीर हैं।

वैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल का सियासी तापमान हर दिन तेजी से बढ़ रहा है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इस इलाके में सबसे अधिक सक्रिय हैं। इस बार वे नए जोश और नई रणनीति के साथ मैदान में हैं।

सीमांचल के अमौर, किशनगंज, जोकीहाट, बहादुरगंज और बायसी जैसी सीटों पर ओवैसी की पार्टी का फोकस बना हुआ है, जहां मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। यहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार सीधे तौर पर आरजेडी और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं।

इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाता 60-70% के करीब हैं, जबकि यादव, पासवान और अतिपिछड़ा वर्ग निर्णायक भूमिका में रहते हैं। यही समीकरण एआईएमआईएम के लिए अवसर भी है और चुनौती भी। सीमांचल की राजनीति को करीब से देखने वालों का मानना है कि अगर एआईएमआईएम इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है, तो महागठबंधन के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं और इसका सीधा फायदा एनडीए को हो सकता है। हालांकि चुनौती यह भी कम नहीं कि सीमांचल से बाहर पार्टी कितनी पकड़ बना पाती है।

मधुबनी, मुंगेर, नवादा जैसी सीटों पर एआईएमआईएम ने नए चेहरे उतारे हैं, इन इलाकों में संगठनात्मक जड़ें अभी कमजोर हैं।

लोगबाग यह भी कह रहे हैं कि सीमांचल में एआईएमआईएम वोटों में सेंध लगाने में कामयाब हो सकती है। उधर, महागठबंधन नेताओं का आरोप है कि औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी की बी-टीम की तरह काम करती है, क्योंकि मुस्लिम वोटों के बिखराव का सीधा फायदा एनडीए को मिलता है।

वहीं महागठबंधन के इन आरोपों को एआईएमआईएम सिरे से खारिज करती है। पार्टी प्रमुख ओवैसी कहते हैं कि हम किसी के एजेंट नहीं हैं, हम सिर्फ उस तबके की आवाज हैं जिसे दशकों से अनदेखा किया गया है। औवेसी बार-बार कह रहे हैं कि सीमांचल को अपना नेता चाहिए।

वहीं ग्राउंड में घूमते हुए यह बात भी सुनने को आ रही है कि अगर मुस्लिम वोट विभाजित होते हैं तो हिंदू वोटों का एकीकरण एनडीए के पक्ष में होगा। वहीं यह भी हो सकता है कि ओवैसी की तीखी बयानबाजी से ध्रुवीकरण बढ़ जाए, जिसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। यदि आप औवेसी की सभाओं को नजदीक से देखेंगे तो इसका अर्थ समझ पाएंगे।

एआईएमआईएम पार्टी का मुख्य फोकस सीमांचल ही है, जहां जमीन पर उसका नेटवर्क और स्थानीय समर्थन मौजूद है। मेरा मानना है कि यदि एआईएमआईएम सीमांचल में तीन-चार सीटें भी जीतने में कामयाब होती है, तो उसका खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में राजनीतिक प्रतीकात्मक प्रभाव महागठबंधन के लिए बड़ा झटका होगा।

सीमांचल की पृष्ठभूमि से यदि बिहार की राजनीति को देखें तो एआईएमआईएम का उदय बिहार की पारंपरिक राजनीति को चुनौती देता दिख रहा है। आज भी एमवाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) महागठबंधन की रीढ़ है और इस रीढ़ में औवेसी का वोट बैंक छुपा हुआ है।

सीमांचल में ओवैसी का उभार यह संकेत दे रहा है कि बिहार का मुस्लिम मतदाता अब एक वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश में है। अब देखना यह है कि क्या ओवैसी सीमांचल में सीट निकाल पाते हैं या फिर उनका संघर्ष अभी लंबा चलेगा। इन सबके बीच एक बात तो तय है कि सीमांचल का मैदान इस बार बिहार की सबसे दिलचस्प सियासी कहानी लिखने वाला है क्योंकि मोदी, अमित शाह से लेकर राहुल गांधी तक यहां लगातार प्रचार कर रहे हैं।

वैसे अब यह सीमांचल की जनता पर निर्भर करता है कि वह पीएम मोदी के सुरक्षा और राष्ट्रवाद के नारे पर वोट देती है या राहुल गांधी के शिक्षा और बदलाव के वादे पर?

गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा ने पत्रकारिता की पढ़ाई वाईएमसीए, दिल्ली से की. उसके पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक कर चुके थे. आप CSDS के फेलोशिप प्रोग्राम के हिस्सा रह चुके हैं. पत्रकारिता के बाद करीब एक दशक तक विभिन्न टेलीविजन चैनलों और अखबारों में काम किया. पूर्णकालिक लेखन और जड़ों की ओर लौटने की जिद उनको वापस उनके गांव चनका ले आयी. वहां रह कर खेतीबाड़ी के साथ लेखन भी करते हैं. राजकमल प्रकाशन से उनकी लघु प्रेम कथाओं की किताब भी आ चुकी है.
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