ढाकाः बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा दी है। कोर्ट ने उन्हें ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ का दोषी माना और 3 मामलों में उन्हें सजा-ए-मौत सुनाई। जुलाई, 2024 में बांग्लादेश में बड़े स्तर पर छात्रों का विरोध प्रदर्शनों हुआ था। इस दौरान लोगों की हत्या का आदेश देने का मामला पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर चला रहा था।
शेख हसीना ने इस फैसले को पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित बताया है। हसीना ने इसके लिए मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को दोषी ठहराया।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने माना कि शेख हसीना ने लोगों की हत्या करने के लिए उकसाया। सेना और सुरक्षा बलों को इसके आदेश दिए। कोर्ट ने ये भी कहा कि वो अत्याचारों को रोकने में नाकामयाब रहीं। इसके अलावा शेख हसीना पर ड्रोन, हेलीकॉप्टर और घातक हथियार इस्तेमाल करने के आदेश देने का भी दोष सिद्ध हुआ है।
जस्टिस मोहम्मद गोलाम मुर्तुजा मजूमदार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। इस दौरान कोर्ट ने हसीना के साथ उनके दो सहयोगियों, पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून के खिलाफ भी अपना फैसला सुनाया।
यह भी पढ़ें – शेख हसीना को अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने सुनाई 6 महीने की सजा
अदालत ने कहा कि तीनों आरोपियों ने देश भर में प्रदर्शनकारियों की हत्या करने के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर अत्याचार किए। हालांकि, अदालत ने पूर्व पुलिस प्रमुख को माफ कर दिया जिन्होंने न्यायाधिकरण और देश की जनता से माफी मांग ली थी। हसीना और कमाल को भगोड़ा घोषित कर दिया गया है और उनकी अनुपस्थिति में उन पर मुकदमा चलाया गया है। जबकि मामून को सरकारी गवाह बनने से पहले व्यक्तिगत रूप से मुकदमे का सामना करना पड़ा।
शेख हसीना के खिलाफ आरोप
शेख हसीना, कमाल और मामून पर पांच बड़े आरोप लगाए गए थे। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, यातना और अन्य अमानवीय कृत्य शामिल हैं। एक प्रमुख आरोप में हसीना पर प्रदर्शनकारियों के “संहार” का आदेश देने का आरोप लगाया गया था। उन पर भड़काऊ बयान देने और छात्रों के खिलाफ घातक हथियारों के इस्तेमाल का निर्देश देने का भी आरोप लगाया गया था। जिसके कारण एक बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ। इसी के कारण उन्हें अगस्त 2024 में पद छोड़ना पड़ा था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि ‘जुलाई में हुए विद्रोह’ के दौरान 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच 1,400 लोग मारे गए थे क्योंकि सरकार ने व्यापक सुरक्षा कार्रवाई का आदेश दिया था। गौरतलब है कि 78 साल की शेख हसीना वर्तमान में भारत में निर्वासन में रह रही हैं क्योंकि उन्हें 5 अगस्त 2024 को देश छोड़ना पड़ा था।
यह भी पढ़ें – छात्र आंदोलन को दबाने के लिए शेख हसीना दे रही थी हवा, मानवता के खिलाफ अपराध का लगा आरोप
शेख हसीना ने हालांकि इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया। हसीना और उनकी पार्टी ने न्यायाधिकरण को ‘कंगारू अदालत’ करार दिया। इस दौरान उन्होंने हसीना का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील जो कि राज्य द्वारा नियुक्त किया गया था, उसकी आलोचना की।
इस बीच सोमवार, 17 नवंबर को यह फैसला आने के बाद ढाका हाई अलर्ट पर है। यहां पर हजारों सैनिक, अर्धसैनिक और भारी पैमाने पर पुलिस बलों की तैनाती की गई है।

