बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने मौत की सजा सुनाई है। आईसीटी ने उन्हें पिछले वर्ष हुए छात्र आंदोलन और उस दौरान हुई दमनात्मक कार्रवाई से जुड़े मानवता के खिलाफ दोषी पाया। इन घटनाओं में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी, जिसके बाद हसीना सरकार गिर गई और अवामी लीग सत्ता से बाहर हो गई।
मौत की सजा दिए जाने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना और पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमान खान कमाल को प्रत्यर्पित करने का आग्रह किया है। भारतीय अधिकारियों को भेजे गए पत्र में बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों के बीच मौजूद प्रत्यर्पण समझौते का हवाला देते हुए कहा कि भारत पर इन दोषियों को वापस भेजने की संधि-जनित जिम्मेदारी है।
पत्र में कहा गया है, “किसी भी अन्य देश द्वारा इन व्यक्तियों को शरण देना न सिर्फ अनुकूल व्यवहार के खिलाफ होगा बल्कि न्याय का मजाक भी होगा। हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि इन दोनों दोषियों को तुरंत बांग्लादेशी अधिकारियों के हवाले किया जाए। यह दोनों देशों के बीच मौजूद प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत की जिम्मेदारी भी है।”
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक्स पर भी इसकी जानकारी दी है। मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में लिखा- अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल के आज के फैसले में, भगोड़े अपराधी शेख हसीना और असादुज्जमान खान कमाल जलाई को हत्या के जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है और उन्हें सजा सुनाई गई है।
विज्ञप्ति में आगे लिखा- मानवता के विरुद्ध अपराधों में दोषी ठहराए गए इन अपराधियों को यदि कोई दूसरा देश शरण देता है, तो यह अत्यंत निंदनीय आचरण माना जाएगा और यह न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन होगा। हम भारत सरकार से दृढ़तापूर्वक यह आग्रह करते हैं कि वे बिना किसी विलंब के इन दोनों व्यक्तियों को बांग्लादेश के न्यायिक प्राधिकरणों को सौंप दें। दोनों देशों के बीच मौजूदा प्रत्यर्पण संधि के अनुसार, इन व्यक्तियों को सौंपना भारत का अनिवार्य और बाध्यकारी दायित्व है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने शेख हसीना को सुनाई गई मौत की सजा को ऐतिहासिक फैसला बताया है। उन्होंने लोगों से संयम और शांति बनाए रखने की अपील की है।
बयान में कहा गया है, “पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को मानवता के खिलाफ अपराधों में सुनाई गई मौत की सजा एक ऐतिहासिक फैसला है। इसकी गंभीरता को समझते हुए अंतरिम सरकार देशवासियों से अपील करती है कि वे शांत, संयमित और जिम्मेदार रहें। फैसले के बाद किसी भी तरह की उत्तेजना, हिंसा या कानून तोड़ने वाली गतिविधियों से दूर रहें।”
अंतरिम सरकार ने यह चेतावनी भी दी कि निर्णय को लेकर जनता की भावनाएं स्वाभाविक हैं, खासकर उन परिवारों में जिन्होंने पिछले साल जुलाई आंदोलन में अपने परिजन खोए थे। लेकिन सरकार ने साफ कहा कि भावनाओं में बहकर सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी कोशिश को सख्ती से रोका जाएगा।
शेख हसीना…17 को निकाह और मृत्युदंड भी
17 नवंबर को ही वर्षों पहले शेख हसीना का निकाह हुआ था। जीवन के खास दिन पर ही उन्हें सबसे बुरी खबर भी मिली। शेख हसीना ने साल 1967 में उस समय शादी की थी, जब उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान जेल में थे। उनकी मां, फजीलतुन नेसा ने परिवार की देखरेख करते हुए प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक एमए वाजेद मिया के साथ हसीना का निकाह जल्दी में कराया था। यह जानकारी बांग्लादेश टाइम्स की एक रिपोर्ट में सामने आई है।
शेख हसीना और एमए वाजेद मिया के दो बच्चे हैं। बड़े बेटे सजीब वाजेद जॉय का जन्म 27 जुलाई 1971 को हुआ, जबकि उनकी बेटी साइमा वाजेद पुतुल का जन्म 9 दिसंबर 1972 को हुआ।
शेख हसीना अब तक पांच बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। वह पहली बार 1996 से 2001 तक सत्ता में रहीं। इसके बाद 2009 से 2014, 2014 से 2019, 2019 से 2024 और फिर 2024 में पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनीं। हालांकि, छात्र आरक्षण आंदोलन के उग्र होने और देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बीच 5 अगस्त 2024 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
2024 का छात्र आरक्षण सुधार आंदोलन कुछ ही दिनों में व्यापक जन-उभार में बदल गया। जुलाई-अगस्त में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की, गोलियां चलाईं और अवामी लीग के विभिन्न स्तरों के नेताओं, कार्यकर्ताओं तथा छात्र लीग और जुबो लीग के सदस्यों पर भी हमले हुए। इन घटनाओं ने सरकार के खिलाफ माहौल बना दिया और अंततः अवामी लीग सरकार को गिरना पड़ा।
इस मामले में हसीना के साथ पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) चौधरी अब्दुल्ला अल ममून भी आरोपी बनाए गए। हसीना और खान देश से बाहर हैं, जबकि पूर्व आईजीपी ममून ने अदालत में सरकारी गवाह बनकर माफी मांगी। अदालत ने उनकी माफी को ध्यान में रखते हुए उन्हें पांच साल की सजा सुनाई।
ममून ने अपने बयान में कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने छात्र आंदोलन को दबाने के लिए सीधे तौर पर घातक हथियारों के इस्तेमाल का आदेश दिया था। उनके अनुसार, यह निर्देश उन्हें 18 जुलाई 2024 को तत्कालीन गृह मंत्री असदुज्जमां खान के माध्यम से मिला था।
मामले की सुनवाई 23 अक्टूबर को पूरी हुई। पहले फैसले की तारीख 14 नवंबर तय की गई थी, लेकिन बाद में अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल ने तारीख बदलकर 17 नवंबर कर दी और इसी दिन हसीना तथा उनके दो सहयोगियों के खिलाफ फैसला सुनाया।

