विशाखापत्तनमः नक्सल विरोधी अभियान में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की सीमा पर मारेडुमिली वन क्षेत्र में मंगलवार सुरक्षा बलों ने देश के सबसे चर्चित और सबसे खतरनाक माओवादी कमांडर माड़वी हिड़मा को मार गिराया। करीब दो दशक तक जंगलों में सक्रिय रहे हिड़मा की मौत को सुरक्षाबलों ने नक्सल उन्मूलन अभियान में अब तक की सबसे बड़ी सफलता बताया है। हिड़मा के साथ उसकी पत्नी राजे उर्फ रजक्का भी मुठभेड़ में ढेर कर दी गई।
यह मुठभेड़ मारेडुमिली वन क्षेत्र में उस समय हुई जब छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और ओडिशा की पुलिस तथा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान माओवादियों की मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद संयुक्त तलाशी अभियान चला रहे थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा बलों ने माओवादियों के एक समूह को घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। माओवादियों द्वारा कथित तौर पर गोलीबारी शुरू करने के बाद सुरक्षाकर्मियों को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी।
कौन था हिड़मा
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले (पूर्ववर्ती गाँव) में जन्मे हिड़मा का नाम देश की सबसे खतरनाक नक्सली वारदातों से जुड़ा रहा। हिड़मा साल 1996 में नक्सल संगठन में शामिल हुआ और धीरे-धीरे रैंकों में ऊपर चढ़ता गया। उसे सीपीआई (माओवादी) के सबसे घातक ‘बटालियन नंबर-1’ का प्रमुख माना जाता था।
सुरक्षाबलों के अनुसार, उसका जंगलों का गहरा ज्ञान और गुरिल्ला रणनीति उसे दक्षिण बस्तर का सबसे ताकतवर ऑपरेशनल कमांडर बनाता था। 2010 के दंतेवाड़ा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या, 2013 के दरभा घाटी हमले में कांग्रेस नेताओं की मौत, 2017 के सुकमा हमले और 2021 के तरेम हमले, इन सभी में उसका सीधा हाथ माना जाता है।
जानकारी के मुताबिक वह दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेजेडसी) का सचिव बन चुका था, जो संगठन की सबसे प्रभावी इकाइयों में से एक है। उसके पास 130 से 150 सशस्त्र नक्सलियों की विशेष टुकड़ी की कमान थी जो अबूझमाड़ और सुकमा-बीजापुर के जंगलों में सक्रिय थी।
सुरक्षा बलों पर सबसे संगठित और घातक ऑपरेशन चलाने का आरोप भी हिडमा पर है। उसके सिर पर केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलाकर एक करोड़ रुपये से अधिक का इनाम रखा था।
तीन बड़ी मुठभेड़ें, दो दिन में 9 नक्सली ढेर
हिड़मा के मारे जाने के कुछ घंटे बाद ही सुकमा जिले के एर्राबोर थाना क्षेत्र में दूसरी मुठभेड़ हुई। इसमें छह और नक्सली मारे गए। पुलिस को जंगलों में बड़ी संख्या में नक्सलियों के मौजूद होने की सूचना मिली थी। डीआरजी जवानों ने रात से ही सर्च ऑपरेशन शुरू किया और सुबह होते ही मुठभेड़ छिड़ गई। जवानों ने जवाबी कार्रवाई में कई नक्सलियों को ढेर कर दिया। सर्च ऑपरेशन अभी जारी है, जिस दौरान नुकसान का आकलन किया जाएगा।
इससे पहले 16 नवंबर को भेज्जी-चिंतागुफा इलाके में हुई कार्रवाई में 15 लाख के इनामी तीन नक्सलियों को मारा गया था। वहीं 11 नवंबर को बीजापुर के नेशनल पार्क एरिया में हुई मुठभेड़ में छह नक्सली मारे गए थे, जिनमें मद्देड़ एरिया कमेटी का इंचार्ज बुच्चन्ना भी शामिल था। हालांकि शीर्ष कमांडर पापाराव इस बार भी मौके से भागने में सफल रहा।
हिड़मा की मौत को केंद्रीय गृह मंत्रालय के ‘मिशन 2026’ अभियान का निर्णायक मोड़ माना जा रहा है। बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि यह ऑपरेशन नक्सल विरोधी रणनीति के एक महत्वपूर्ण चरण की शुरुआत है। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में पूर्व माओवादी मुख्यधारा में लौट रहे हैं और बाकी को भी आत्मसमर्पण करने का रास्ता चुनना चाहिए।

