प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन और माँ तेजी बच्चन, जिस ‘सोपान’ को कड़ी धूप में बनता हुए देखते थे, उसे बिके हुए भी अब दो बरस हो रहे हैं। ‘सोपान’ को कभी उस तरह की मकबूलियत हासिल नहीं हुई जैसी अमिताभ बच्चन के मुंबई के ‘प्रतीक्षा’ या ‘जलसा’ बंगलों को मिली। सोपान अब यादों में ही शेष है।
राजधानी के ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन से आप तीन-चार मिनट में गुलमोहर पार्क में दाखिल हो जाते हैं। यह पत्रकारों की पॉश कॉलोनी 1970 के दशक के आरंभ में बननी शुरू हुई थी। तब ही गुलमोहर पार्क में हिन्दी साहित्य के शिखर पुरुष हरिवंश राय बच्चन और उनकी पत्नी तेजी बच्चन सुबह से शाम तक मजदूरों के हाथों अपने सोपान को खड़ा होते देखते थे। सोपान इसलिए खास था क्योंकि यह बच्चन कुनबे का पहला घर था।
इसके बनने से पहले बच्चन परिवार किराए पर रहता था। दरअसल सोपान के लिए प्लाट तेजी बच्चन को मिला था। हालांकि वह पत्रकार नहीं थीं। इसलिए उनको गुलमोहर पार्क ग्रुप हाउसिंग सोसायटी का मेंबर बनाए जाने का विरोध भी हुआ था। तेजी जी आकाशवाणी में काम करती थीं। कहने वाले कहते हैं कि देश की तब की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के बाद तेजी जी को गुलमोहर पार्क में प्लाट मिला था। तब तक उनके दोनों पुत्र अमिताभ और अजिताभ अपने करियर को बनाने के लिए दिल्ली को छोड़ चुके थे। अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में स्ट्रगल कर रहे थे।
सोपान में सोनिया गांधी
सबको पता है कि अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी की दोस्ती बचपन में ही हो गई थी। दोनों की पहली मुलाकात अमिताभ बच्चन के जन्मदिन पर हुई। इसके बाद वे अक्सर मिलने के लिए एक-दूसरे के घर आते-जाते थे। राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी कई बार सोपान में आए। अमिताभ बच्चन के परिवार को बीते कई दशकों से जानने वाले प्रख्यात वास्तु विशेषज्ञ पंडित जे.पी. शर्मा ‘त्रिखा’ बताते हैं कि तेजी जी और हरिवंश राय बच्चन जी ने ही सोनिया गांधी का कन्यादान किया था।
कहते हैं कि सोनिया और राजीव गांधी के रिश्ते के बारे में इंदिरा गांधी को पहले कुछ नहीं पता था। दोनों के रिश्ते के बारे में इंदिरा गांधी को उनकी दोस्त और अमिताभ बच्चन की माँ तेजी बच्चन ने ही बताया था। शादी भी दिल्ली में अमिताभ बच्चन के घर पर हुई थी।
बहरहाल, एक बार सोपान बना तो यहां नियमित रूप से कविता पाठ और सामयिक सवालों पर गोष्ठियों के आयोजन होने लगे। बच्चन जी और तेजी जी गजब के मेजबान थे। वे सोपान में आने वालों के लिए बढ़िया नाश्ता या भोजन की व्यवस्था करते। सोपान में होने वाली गोष्ठियों में बच्चन जी भी अपनी रचनाएं पढ़ते थे। उनसे जो रचनाएं पढ़ने का आग्रह होता था, उसे वे तुरंत पूरा करते थे। इसके चलते डॉ. हरिवंशराय बच्चन का व्यक्तित्व व कृतित्व साकार हो जाता था।
सोपान में डॉ. धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, कन्हैया लाल नंदन, अक्षय कुमार जैन, विजेन्द्र स्नातक जैसे नामवर साहित्यकार-पत्रकार नियमित रूप से बैठकी करते थे। सच तो यह है कि सोपान एक दौर में राजधानी में हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ स्थल बन गया था। इसमें लगातार महफिलें चलती थीं। ड्राइंग रूम में बैठकों के दौर चलते थे। वरिष्ठ कवि और बच्चन जी के पड़ोसी डॉ. सुभाष वसिष्ठ कहते हैं कि बच्चन जी से उस दौर में ‘जीवन की आपा-धापी में कब वक्त मिला, कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं, जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला…हर एक लगा है अपनी दे-ले में’ को सुनाने का खासतौर पर आग्रह रहता था।
सोपान में हरिवंश राय बच्चन जी की निजी लाइब्रेरी भी बेहद समृद्ध थी। उसमें हजारों किताबें करीने से रखी हुईं थीं। बच्चन जी यहां पर बैठा करते थे। अमिताभ बच्चन ने कई बार अपने ब्लॉग में अपने पिता की लाइब्रेरी का जिक्र भी किया है, जिधर जाकर उन्हें नई उर्जा प्रेरणा मिलती थी।
अमिताभ की बॉलीवुड में कायमाबी
अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में कामयाबी की बुलंदियों को छूने लगे तो बच्चन जी अपने गुलमोहर पार्क के मित्रों-पड़ोसियों को बताने लगे कि मुन्ना (अमिताभ का घर का नाम) हम दोनों को अपने साथ बंबई (मुंबई) लेकर चलने की जिद कर रहा है। फिर ‘डॉन’ फिल्म की अपार सफलता के बाद अमिताभ बच्चन अपने माता-पिता को मुंबई ले गए। यह 1979 की बात है। उसके बाद बच्चन दंपती मुंबई में ही बस गए। उसके बाद सोपान में बच्चन परिवार के किसी सदस्य का आना-जाना लगातार घटता गया।
बच्चन दंपती कभी-कभार किसी कार्यक्रम में भाग लेने दिल्ली आते तो सोपान में ठहरते। वे सुबह-शाम फिर से यहां के पार्क में घूमने के लिए आ जाते। सोपान 1980 के दशक के आरंभ से ही सुनसान हो गया था। शाम को इधर कभी कोई लाइट जल जाती तो कभी अंधेरा पसरा रहता।
बच्चन परिवार के सोपान की होली- दिवाली
सोपान की होली- दिवाली सारे गुलमोहर पार्क में मशहूर हुआ करती थी। उसमें सारा बच्चन कुनबा शामिल रहता था। हरेक अतिथि को एवरग्रीन स्वीट्स की मिठाई खिलाई जाती थी। कहते हैं कि एक बार दिवाली पर अनार जलाते हुए अमिताभ बच्चन के हाथ जल गए थे। एक अरसे से सोपान में दिवाली के मौके पर केयरटेकर आलोक सज्जा अवश्य कर देता था।
गुलमोहर पार्क के पुराने लोगों को याद है जब बच्चन जी यह सुनिश्चित करते थे कि अमिताभ बच्चन की हर फिल्म यहां के उनके मित्र भी देख लें। वे सबको फिल्मों के कैसेट देते थे। कहते थे, “मुन्ना ने इस फिल्म में बेजोड़ काम करके दिखा दिया है। आप भी इस फिल्म को देखिए।”
वरिष्ठ कवि और हिन्दी भवन के कर्ताधर्ता डॉ.गोविन्द व्यास का घर सोपान के साथ ही है। वे बताते हैं कि अमिताभ बच्चन दिवाली और होली जैसे पर्वों के अलावा भी इधर लगातार आते-रहते थे। उस दौर में सोपान हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ स्थल बन गया था। इसके ड्राइंग रूम में बैठकों के दौर चलते थे। इधर लगातार साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित होती। इनमें बच्चन जी भी अपनी रचनाएं पढ़ते।
गुलमोहर पार्क में लंबे समय से रह रहे वरिष्ठ लेखक केवल कौशिक बताते हैं कि बच्चन जी शाम को अवश्य गुलमोहर पार्क क्लब में मित्रों के साथ मिल-बैठ के लिए पहुंचते थे। उन्हें गुलमोहर पार्क में गोपाल प्रसाद व्यास, अक्षय कुमार जैन, विनोद कुमार मिश्र, गिरीलाल जैन जैसे लेखक पत्रकारों के साथ बैठना पसंद था। गुजरे कुछ सालों से सोपान को यहां के लोग अमिताभ बच्चन के घर के रूप में जानते थे। हरिवंश जी और तेजी जी की पीढ़ी तो अब लगातार घट ही रही है। पहले सोपान को बच्चन जी-तेजी के घर के रूप में जाना जाता था।
किरोड़ी मल कॉलेज के दोस्त सोपान में
अमिताभ बच्चन 1959 से लेकर 1962 तक किरोड़ीमल कॉलेज हॉस्टल के कमरा नंबर 65 में रहे। वे तब यहां पर बीएससी के विद्यार्थी थे। सोपान में अमिताभ बच्चन के कॉलेज के दोस्त भी आते-जाते थे। अमिताभ बच्चन जब किरोड़ीमल क़ॉलेज में पढ़ रहे थे तब तक उनके पिता डॉ. हरिवंश बच्चन विदेश मंत्रालय में हिन्दी अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे। वे विदेश मंत्रालय से 1955 में जुड़े गये थे।
अमिताभ बच्चन के गुरु फ्रैंक ठाकुर दास
किरोड़ीमल कॉलेज (केएम कॉलेज) में फ्रैंक ठाकुर दास के नाम पर सभागार है। इसका कुछ साल पहले निर्माण हो रहा था तब अमिताभ बच्चन ने 51 लाख रूपये की सहयोग राशि दी थी। दरअसल फ्रैंक ठाकुर दास ने अमिताभ बच्चन को किरोड़ीमल कॉलेज की ड्रामा सोसायटी से जोड़ा था। फ्रेंक ठाकुर दास पंजाबी ईसाई थे।
गुलमोहर पार्क के पुराने लोग बताते हैं कि फ्रैंक ठाकुर दास के अमिताभ बच्चन के माता-पिता से भी संबंध थे। वे भी सोपान में काफी आते थे। वे पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर थे। उन्हें रंगमंच की दुनिया की भी गहरी समझ थी। उन्होंने अपने कॉलेज में ड्रामा सोसायटी की स्थापना की थी। डॉ. सुभाष वशिष्ठ कहते हैं कि सोपान भले ही अब ना रहा हो, पर हम गुलमोहर पार्क वालों के लिए यह अहसास बहुत सुकून भरा होता है कि कभी उनके पड़ोसी अमिताभ बच्चन थे।
पेशे से पत्रकार विवेक शुक्ला को दिल्ली, गांधी जी, आर्किटेक्चर और साउथ एशिया से जुड़े तमाम सवालों पर लिखना-पढ़ना पसंद है। वे Gandhi’s Delhi: April 12, 1915-January 30, 1948 and Beyond और ‘दिल्ली का पहला प्यार- कनॉट प्लेस’ जैसी चर्चित किताबें लिख चुके हैं।