नई दिल्ली: चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर व्यापक रूप से ‘भरोसे में कमी’ को देखते हुए भारत इस बार भी भीषण सर्दियों में पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश-सिक्किम के जोखिम भरे इलाकों में सेना को तैनात रखेगा। यह लगातार पांचवां साल होगा जब भारतीय सेना सर्दियों में जोखिम भरे इन इलाकों में पूरी मुस्तैदी और ताकत के साथ तैनात रहेगी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक-राजनयिक वार्ताओं में भले ही ‘रिश्तों में प्रगति और मतभेद कम होने’ के संकेत दिए गए हैं, लेकिन रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े शीर्ष सूत्रों ने बताया है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ असल जमीन पर भरोसे में कमी अभी भी बहुत अधिक बनी हुई है।
चीनी सेना अभी पीछे जाने की संभावना कम
रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों ने बताया कि जिस तरह से चीन अपनी अग्रिम सैन्य स्थिति को मजबूत करने के साथ-साथ 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर ‘स्थायी सुरक्षा’ और बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, उससे ये स्पष्ट है कि वह जल्द अपने कदम पीछे नहीं करेगा।
इस बीच भारतीय सेना ‘गर्मियों से सर्दियों की स्थिति’ आते हुए देख बदलाव में जुट गई है। सीमा पर तैनात अतिरिक्त सैनिकों के लिए सर्दियों में बने रहने के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं। जनरल उपेन्द्र द्विवेदी और भारतीय सेना की सात कमानों के कमांडर-इन-चीफ भी 9 और 10 अक्टूबर को गंगटोक (सिक्किम) में होने वाली बैठक में स्थिति की समीक्षा करेंगे।
दरअसल, पिछले कुछ महीनों में द्विपक्षीय राजनीतिक-कूटनीतिक वार्ताओं से पूर्वी लद्दाख में सैन्य टकराव की आशंकाओं को कम करने को लेकर सफलता मिलने की संभावना की जोरशोर से चर्चा चल रही थी। इनमें 31 जुलाई और 29 अगस्त को भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) की 30वीं और 31वीं बैठकें भी शामिल थीं। इसके बाद 12 सितंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स बैठक से इतर एक द्विपक्षीय बैठक भी हुई।
फरवरी में आखिरी बार हुई थी दोनों सेनाओं के कोर कमांडरों की बैठक
कूटनीतिक और राजनीतिक बैठकों से इतर हालांकि दोनों देशों के सैन्य कोर कमांडरों ने आखिरी बार 19 फरवरी को अपनी 21वें दौर की वार्ता की थी। चीन ने तब रणनीतिक रूप से अहम डेपसांग प्लेन्स में स्थिति को शांत करने के लिए भारत के प्रयास को खारिज कर दिया था। यह उत्तर में दौलत बेग ओल्डी और काराकोरम दर्रा, और डेमचोक के पास चार्डिंग निंगलुंग नाला ट्रैक जंक्शन पर स्थित है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यदि डेपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी होती है, तो यह मतभेद को कम करने केवल पहला कदम होगा। जब तक यथास्थिति की बहाली के लिए चीनी सैनिकों की वापसी नहीं होती, खतरा तब तक बना रहेगा।’
चीन खेल रहा इंतजार वाला खेल!
सितंबर 2022 तक गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो-कैलाश रेंज और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स में सैनिकों की पिछली वापसी के बाद बफर जोन के निर्माण के साथ-साथ देपसांग और डेमचोक में टकराव का मतलब है कि भारतीय सैनिक अपने 65 गश्ती प्वाइंट्स में से 26 तक नहीं पहुंच सकते हैं। यह इलाका उत्तर में काराकोरम दर्रे से शुरू होता है और पूर्वी लद्दाख में दक्षिण में चुमार तक जाता है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि बफर जोन भी केवल अस्थायी व्यवस्था हैं। चीन लगातार अनुचित मांगे कर रहा है और लंबे समय से इंतजार का खेल खेल रहा है। भारत को चीन के जाल में नहीं फंसने के लिए बेहद सावधान रहना होगा।’
बहरहाल, इन सबके बीच सेना किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए एलएसी के हर क्षेत्र में पर्याप्त बलों और रसद के साथ सैनिकों को रखने के साथ ‘उच्च स्तर की परिचालन संबंधी तैयारी’ भी बनाए हुए है।