हरिद्वारः हरिद्वार में चल रही कांवड़ यात्रा के रास्ते पर स्थित दो मस्जिदों और एक मजार को शुक्रवार सुबह बड़े सफेद पर्दों से ढक दिया गया था। इस कार्रवाई ने व्यापक आलोचना और भ्रम पैदा कर दिया।
उत्तराखंड के मंत्री सतपाल महाराज ने इस कदम को सही ठहराते हुए कहा कि इसका उद्देश्य किसी भी तरह की उत्तेजना को रोकना और कांवड़ यात्रा को सुचारू रूप से संपन्न कराना था। वहीं, हरिद्वार जिला प्रशासन ने धार्मिक स्थलों को ढकने का कोई आदेश जारी करने से इनकार किया। उसी शाम तक पुलिस ने पर्दे हटा दिए और इसे स्थानीय अधिकारियों की गलती बताया।
यह पहली बार है जब कांवड़ यात्रा के दौरान ऐसा कुछ हुआ है। इस घटना ने धार्मिक सहिष्णुता और अधिकारियों द्वारा संवेदनशील मुद्दों को संभालने पर सवाल उठाए हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के स्थानीय लोगों ने इस कदम का विरोध किया। एक मस्जिद के प्रमुख ने इस कदम को अभूतपूर्व बताया है। कई कांवड़ियों ने कहा है कि यह जरूरी नहीं था।
हरिद्वार में विरोध
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हरिद्वार के कई हिंदू निवासियों ने भी इस कदम पर सवाल उठाए। हालाँकि, उत्तराखंड के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने इसे सही ठहराया। उन्होंने कहा कि यह इसलिए किया गया है ताकि किसी भी पक्ष से अनावश्यक उत्साह या उत्तेजना न हो और यात्रा सुचारू रूप से चल सके।” यह स्वीकार करते हुए कि यह पहली बार किया गया है, उन्होंने कहा, सरकार इस कदम पर प्रतिक्रिया देखेगी।
हरिद्वार के डीएम धीरज सिंह गर्ब्याल ने क्या कहा?
हरिद्वार के डीएम धीरज सिंह गर्ब्याल ने टीओआई को बताया कि जिला प्रशासन इस कदम के लिए जिम्मेदार नहीं है। शुक्रवार दोपहर को जब इस बात की खबर शहर और उसके बाहर फैली तो कुछ विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) और स्वयंसेवक जल्दबाजी में पर्दे हटाते नजर आए।
एक एसपीओ दानिश ने कहा, मैं ज्वालापुर रेलवे पुलिस पोस्ट के कहने पर ऐसा कर रहा हूं। हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि किसे मस्जिदों और मजारों को ढकने का आदेश दिया था।
पर्दे 22 जुलाई को लगाए गए: स्थानीय लोग
मुस्लिम बहुल ज्वालापुर के स्थानीय लोगों ने कहा कि 22 जुलाई को ऊंचे पुल के पास भूरे शाह मजार और इस्लामनगर में एक मस्जिद के सामने पर्दे लगा दिए गए थे।
मजार की देखरेख करने वाले और मस्जिद के प्रमुख अनवर अली ने कहा कि उन्हें इस बात का कोई पता नहीं है कि अधिकारियों ने ऐसा कदम क्यों उठाया।
रिपोर्ट में यूपी के एक कांवड़िए के हवाले से लिखा है कि पिछले समय में मस्जिदों और मजारों से गुजरने से हमें कोई परेशानी नहीं हुई थी और इस साल भी हमें कोई परेशानी नहीं हो रही है।”
एक अन्य स्थानीय रतन मणि डोभाल ने टीओआई से कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। शायद कुछ अधिकारियों ने इसे जरूरी समझा। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इसे “कुछ स्थानीय अधिकारियों द्वारा दिखाई गई अज्ञानता” बताया।
कांवड़ यात्रा मार्गों की दुकानों पर नाम की तख्ती का मामला सुप्रीम कोर्ट चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों द्वारा जारी आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
शुक्रवार 26 जुलाई को शीर्ष अदालत ने अपने 22 जुलाई के अंतरिम आदेश में संशोधन करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि अगर इस पर कोई कानून है, तो इसे सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिए, न कि चुनिंदा क्षेत्रों में। कोर्ट ने कहा, (जो लोग) स्वेच्छा से अपना नाम प्रदर्शित कर रहे हैं, उनके लिए कोई समस्या नहीं है।