प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फतेहपुर जिले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मस्जिद गिराने के कदम पर रोक लगाई है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अरुण कुमार की पीठ ने नूरी जामा मस्जिद की प्रबंध समिति की ओर से दायर की गई याचिका पर यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इसे गिराने की सूचना मिली और अदालत को यह भी बताया कि मस्जिद का एक हिस्सा पहले ही गिरा दिया गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा?
अदालत ने इस मामले में राज्य के वकील का यह बयान दर्ज किया कि अगली सुनवाई तक मस्जिद में कोई और तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। इस दौरान अदालत ने सरकार को ये निर्देश भी जारी किए।
इसमें कहा गया “अगली सुनवाई की तारीख तक, मस्जिद में तोड़फोड़ की कोई और कार्रवाई नहीं की जाएगी।”
इससे पहले राज्य के वकील ने यह कहा था कि सड़क चौड़ीकरण के सार्वजनिक कार्य के कारण मस्जिद को गिराना जरूरी था। अदालत को बताया गया कि सड़क चौड़ीकरण का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है।
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हालांकि, मस्जिद प्रबंधन के वकील ने दलील दी कि काम अभी लंबित है और अगली सुनवाई तक मस्जिद की सुरक्षा नहीं की गई तो उसे गिरा दिया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी।
2024 में गिराया गया था मस्जिद का हिस्सा
अदालत ने आदेश दिया कि “हालांकि सड़क चौड़ीकरण की आवश्यकता को देखते हुए इस मामले को 17-11-2025 की मद संख्या में सबसे ऊपर सूचीबद्ध किया जाए ताकि राज्य के विद्वान वकील को निर्देश प्राप्त करने में सुविधा हो।”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फतेहपुर जिले की 180 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद के एक हिस्से को कथित अतिक्रमण के चलते दिसंबर 2024 में बुलडोजर से गिरा दिया गया था।
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मस्जिद प्रबंधन ने तब भी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था लेकिन उसे समय पर कोई राहत नहीं मिली। बाद के घटनाक्रमों के कारण वह याचिका अंततः वापस ले ली गई और उसे नए सिरे से याचिका दायर करने की छूट दी गई।
इस मामले में मस्जिद प्रबंधन समिति की तरफ से वकील अजीम अहमद काजमी, मोहम्मद सलीम खान और सईद अजीम उद्दीन का पक्ष रखा।

