कोलकाताः पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज किया है। एक दिन पहले ममता बनर्जी ने कहा था कि ‘महिलाओं ने उनसे शिकायत की है कि वे राजभवन जाने से डरती हैं क्योंकि वहां की गतिविधियों से वे असहज हैं।’
गौरतलब है कि राजभवन की एक संविदा कर्मचारी ने राज्यपाल आनंद बोस पर “छेड़छाड़” का आरोप लगाया है, जिसकी कोलकाता पुलिस जांच कर रही है। आनंद बोस ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ भी इसी तरह के मानहानि के मामले दर्ज किए हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने कहा कि “राज्यपाल सीबी आनंद बोस ने शुक्रवार को कलकत्ता हाईकोर्ट का रुख किया और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ उनकी टिप्पणियों के लिए मानहानि का मुकदमा दायर किया।
राज्य सचिवालय में एक प्रशासनिक बैठक के दौरान ममता बनर्जी ने दावा किया कि महिलाओं ने उन्हें बताया है कि वे राजभवन में हाल ही में हुई घटनाओं के कारण वहां जाने से डर रही हैं। बोस ने बनर्जी की टिप्पणी की आलोचना की थी और कहा था कि जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे गलत और बदनामी वाली धारणा न बनाएं।
टीएमसी,बीजेपी और माकपा का क्या कहना है
बोस द्वारा दायर मुकदमे के बारे में टीएमसी की राज्यसभा सांसद डोला सेन कहा कि वह पार्टी नेतृत्व से चर्चा किए बिना इस मामले पर टिप्पणी नहीं कर पाएंगी। सेन ने पीटीआई से कहा कि मुझे अपने पार्टी नेतृत्व से बात करनी होगी ताकि पता चल सके कि वास्तव में क्या हुआ था। यह काफी संवेदनशील मामला है।
वहीं, वरिष्ठ भाजपा नेता राहुल सिन्हा ने कहा कि बोस ने सही फैसला लिया है। सिन्हा ने कहा, “मुझे लगता है कि राज्यपाल बोस ने सही फैसला लिया है। उन्हें यह फैसला बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था। मैं इसके लिए उनका पूरा समर्थन करता हूं।”
वरिष्ठ माकपा नेता सुजान चक्रवर्ती ने भी इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि बोस और बनर्जी के बीच की खींचतान राज्य के लिए कोई मदद नहीं कर रही है। चक्रवर्ती ने कहा कि यह वास्तव में हमें नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसा लगता है कि वे अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को भूल गए हैं। उनके कृत्य राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिम बंगाल की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
पूरा मामला क्या है?
2 मई को राजभवन पीस रूम में कार्यरत एक अस्थायी महिला कर्मचारी राजभवन स्थित पुलिस चौकी के प्रभारी अधिकारी के पास गई और आनंद बोस पर स्थायी नौकरी दिलाने के बहाने छेड़छाड़ का आरोप लगाया। बाद में उसने हरे स्ट्रीट थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसके दायरे में राजभवन आता है। राज्यपाल ने उसी रात को ही आरोपों का खंडन किया।
राज्यपाल ने मीडिया से कहा, “मैं भ्रष्टाचार और हिंसा की आलोचना जारी रखूंगा। तृणमूल कांग्रेस के एक नेता मेरे पीछे पड़े हुए हैं, लेकिन सत्य की जीत होगी और इस मामले में अंतिम जीत मेरी ही होगी।” घटना को लेकर कोलकाता पुलिस ने राजभवन से सीसीटीवी फुटेज मांगे। हालांकि राज्यपाल ने ऐसा करने से मना कर दिया।
राजभवन के एक्स हैंडल पर शेयर की गई एक अधिसूचना में स्टाफ सदस्यों को ” मामले में ऑनलाइन, ऑफलाइन, व्यक्तिगत रूप से, फोन पर या किसी अन्य तरीके से कोई भी बयान देने से बचने काे कहा दिया गया। इसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 361 (2) और (3) के तहत, किसी राज्यपाल के पद पर रहने के दौरान पुलिस उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है।
एक दिन बाद कोलकाता पुलिस ने बयान में पुलिस ने स्पष्ट किया कि मामले की जांच किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है। यह पता लगाना है कि उस दिन वास्तव में क्या हुआ था।
कोलकाता पुलिस के उपायुक्त (केंद्रीय प्रभाग) की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हम हेयर स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में प्राप्त शिकायत की सामग्री की जांच कर रहे हैं, किसी व्यक्ति की नहीं। हमें अभी तक राजभवन से कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं मिला है। हम जांच को आगे बढ़ाने के लिए राजभवन में तैनात कुछ पुलिसकर्मियों से बात करने की प्रक्रिया में हैं।
हालांकि बाद में आरोप को सिरे से नकारते हुए राज्यपाल ने घोषणा की कि राजभवन के सीसीटीवी फुटेज को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पुलिस को छोड़कर आम लोगों को गवर्नर हाउस में दिखाया जाएगा। लेकिन सीसीटीवी फुटेज में राज्यपाल किसी भी फ्रेम में नजर नहीं आए।
दो मई के फुटेज में शाम 5.32 से 6.41 बजे तक राजभवन के उत्तरी गेट पर लगे दो सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग दिखाई गई। लेकिन फुटेज में राज्यपाल को नहीं दिखाई पड़े। शिकायतकर्ता को दो बार देखा गया। एक बार राजभवन परिसर के अंदर पुलिस चौकी में प्रवेश करते हुए और फिर उससे बाहर आकर बगल के कमरे में प्रवेश करते हुए। दो मई की रात राजभवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के कारण फुटेज में पुलिस की भारी तैनाती देखी गई।