नई दिल्ली: मौसम की वजह से कई बार टाले जाने के बाद आखिरकार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने दोबारा उपयोग में आ सकने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) को तीसरी बार भी सफलतापूर्वक लैंड कराने में सफल रहा। इस RLV को ‘पुष्पक’ नाम दिया गया है। यह खास परीक्षण जिसे RLV LEX-03 के नाम से जाना जाता है, उसे कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) में रविवार सुबह 07:10 बजे आयोजित किया गया था।
यह मिशन RLV LEX-01 और LEX-02 की उपलब्धियों के बाद RLV लैंडिंग प्रयोगों की श्रृंखला में इसरो की लगातार तीसरी सफलता है। इसमें प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ की अपने दम पर लैंड करने की क्षमता का परीक्षण किया गया।
इसरो ने इसके बाद एक बयान में कहा कि लेक्स-03 मिशन ने लेक्स-02 के मुकाबले ‘अधिक चुनौतीपूर्ण रिलीज स्थितियों और अधिक गंभीर हवा की स्थिति में सफलता प्राप्त की’।
4.5 किलोमीटर की ऊंचाई से गिराया गया ‘पुष्पक’
इसरो के अनुसार इस प्रयोग के तहत ‘पुष्पक’ नाम पंख वाले वाहन को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई से गिराया गया। इसरो ने बताया कि उन्नत स्वायत्त क्षमताओं से लैस पुष्पक ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में एक सटीक क्षैतिज लैंडिंग की।
Just In | #ISRO performed its third and final Landing Experiment of Reusable Launch Vehicle (RLV) LEX on June 23, 2024. pic.twitter.com/aVshwijbvv
— ISRO InSight (@ISROSight) June 23, 2024
अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि ‘रनवे से 4.5 किमी ऊपर एक रिलीज पॉइंट से पुष्पक ने स्वचालित रूप से क्रॉस-रेंज मैनोवर्स को अंजाम दिया, रनवे के पास पहुंचा और रनवे सेंटरलाइन पर एक सटीक क्षैतिज लैंडिंग की।’
लैंडिंग की गति 320 किमी प्रति घंटे से अधिक
इस वाहन का लिफ्ट-टू-ड्रैग अनुपात कम होने से लैंडिंग की गति 320 किमी प्रति घंटे से अधिक थी, जबकि आम कमर्शियल विमानों के लिए यह 260 किमी प्रति घंटे और एक सामान्य लड़ाकू विमान के लिए 280 किमी प्रति घंटे होती है।
#Watch | ISRO successfully conducts third and final ‘Pushpak’ Reusable Launch Vehicle landing experiment @isro #Pushpak #RLVLEX #ISRO pic.twitter.com/wMNm2k0W7E
— DD News (@DDNewslive) June 23, 2024
इसरो ने बताया कि लैंडिंग के बाद वाहन के वेग को लगभग 100 किमी प्रति घंटे तक कम करने के लिए ब्रेक पैराशूट का उपयोग किया गया। फिर लैंडिंग गियर ब्रेक का उपयोग करके वाहन को रनवे पर धीमा करके रोक दिया गया। ग्राउंड रोल चरण के दौरान पुष्पक ने रनवे के साथ एक स्थिर और सटीक ग्राउंड रोल को स्वायत्त रूप से बनाए रखने के लिए अपने पिछले हिस्से और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का उपयोग किया।
इसरो ने इस सफल परीक्षण से क्या हासिल किया?
इस RLV LEX-03 मिशन ने अधिक चुनौतीपूर्ण रिलीज स्थितियों के तहत RLV की स्वायत्त लैंडिंग क्षमता को फिर से प्रदर्शित किया है। इसमें LEX-02 के लिए 150 मीटर के मुकाबले करीब 500 मीटर की क्रॉस रेंज और अधिक गंभीर हवा की स्थिति शामिल है।
इसरो पिछले कई सालों से स्पेस से लौटने की तकनीक पर काम कर रहा है। ऐसे में यह सफल प्रयोग उसकी इस क्षेत्र में और विशेषज्ञता को दर्शाता है। इसरो मानवों के साथ अंतरिक्ष में अपना स्पेसक्राफ्ट भेजने की तैयारी में जुटा है। इस लिहाज से लैंडिंग के प्रयोग वाला यह चरण और इसमें मिली सफलता काफी अहम है।
आरएलवी लेक्स मिशन इनर्शियल सेंसर, रडार अल्टीमीटर, फ्लश एयर डाटा सिस्टम, स्यूडो लाइट सिस्टम और नाविक जैसे सेंसरों से लैस था। इस मिशन ने बिना किसी बदलाव के LEX-02 मिशन वाले बॉडी और उड़ान प्रणालियों का पुन: उपयोग किया, जो कई मिशनों के लिए रियूजिबल उड़ान प्रणालियों को डिजाइन करने की इसरो की क्षमता की मजबूती को प्रदर्शित करता है।
‘पुष्पक’ क्या है?
पुष्पक दरअसल एसयूवी के साइज का पंखों वाला रॉकेट है, जिसे ‘स्वदेशी स्पेश शटल’ भी कहा जा सकता है। ये रियूजेबल रॉकेट सेगमेंट में सफलता हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। पिछले करीब 10 सालों से इसरो इस पर काम करता रहा है। रॉकेट को ‘पुष्पक’ नाम रामायण में जिक्र किए गए पुष्पक विमान से लिया गया है।
इस रॉकेट के सभी प्रयोग सफल होने के बाद इसरो इसे अंतरिक्ष में भेज सकेगा। साथ ही मिशन पूरा होने के बाद इसे धरती पर भी एक छोटे से थ्रस्ट के जरिए लक्ष्य की गई जगह पर लैंड कराया जा सकेगा। कुल मिलाकर इसका मकसद रियूजेबल रॉकेट तैयार करना है, ताकि भविष्य के अंतरिक्ष मिशन पर होने वाले खर्च को कम किया जा सके। ये इसरो की ओर से मानव को अंतरिक्ष में भेजने और फिर वापस लाने की दिशा में भी बड़ा कदम है।