बीजिंगः चीन ने धमकी दी है कि वो ताइवान की स्वतंत्रता की मांग करने वालों को (अगर वो बहुत कट्टर हैं ) सजा-ए-मौत दे सकता है। चीन की ये धमकी ताइवान पर दबाव बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा। क्योंकि चीन की अदालतों का ताइवान पर कोई अधिकार नहीं है। वह एक लोकतांत्रिक रूप से शासित द्वीप है।
चीन ने पिछले महीने ताइवान के राष्ट्रपति बने लाई चिंग-ते के प्रति नापसंदगी जाहिर की थी। चीन ने उन्हें अलगाववादी बताया था और उनके राष्ट्रपति बनने के कुछ ही समय बाद युद्धाभ्यास भी किए थे।
ताइवान ने कहा- चीन दबाव बना रहा
ताइवान ने जनवरी में लाई के चुनाव जीतने के बाद से चीनी दबाव के बढ़ते पैटर्न की शिकायत की है। गौरतलब है कि चीन ताइवान को अपने इलाके के तौर पर देखता है। ताइवान का कहना है कि जनवरी में लाई के चुनाव जीतने के बाद से चीन ने लगातार सैन्य कार्रवाई, व्यापार पाबंदी और ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीपों के आसपास चीन के तटरक्षक जहाजों की गश्त बढ़ा दी है।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, चीन ने 21 जून को नए दिशा-निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि चीन की अदालतों, जांच एजेंसियों और सुरक्षा बलों को “देश को तोड़ने और अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए सख्त सजा देनी चाहिए। और राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करनी चाहिए।
चीन ने पहले से मौजूद कानूनों के आधार पर ये नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें 2005 का अलगाववाद-रोधी कानून भी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक, ये कानून चीन को ताइवान के अलग होने की कोशिश पर या ऐसे किसी संकेत पर सैन्य कार्रवाई करने का कानूनी आधार देता है।
चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय की एक अधिकारी सुन पिंग ने बीजिंग में पत्रकारों को बताया कि “अलगाववाद के अपराध” के लिए सबसे सख्त सजा मौत की सजा हो सकती है। उन्होंने कहा, “कानूनी कार्रवाई की तलवार हमेशा ऊपर रहेगी।”
चीन द्वारा जारी की गई नई गाइडलाइंस में क्या है?
चीन ने ताइवान को अलग करने की कोशिश को अपराध घोषित करने के लिए नए नियम बनाए हैं। यह गाइडलाइंस “अलगाव विरोधी कानून”, “चीन लोक गणराज्य का आपराधिक कानून” और “चीन लोक गणराज्य का आपराधिक प्रक्रिया कानून” सहित मौजूदा कानूनों पर आधारित हैं। इसमें बताया गया है कि किन चीजों को अपराध माना जाएगा।
गाइडलाइंस में ताइवान को अंतरराष्ट्रीय संगठनों में शामिल कराने की कोशिश करना, विदेशी दूतावासों से ताइवान के अधिकारियों की मुलाकात और “चीन के साथ पुनर्मिलन” को रोकने वाले लोगों का दमन शामिल है। उदाहरण के लिए, ताइवान को किसी ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन में शामिल कराने की कोशिश करना, जहाँ उसे देश माना जाता है, या फिर चीन के साथ ताइवान के पुनर्मिलन का विरोध करना।
गाइडलाइंस जारी करते हुए चीन ने कहा, चीन की सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट, सुप्रीम पीपुल्स प्रोक्यूरेटोरेट, सार्वजनिक सुरक्षा विभाग, राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय और न्याय मंत्रालय ताइवान की आजादी की मांग करने वालों मौत की सजा दे।
चीन की धमकियों को ताइवान ने किया खारिज
गौरतलब है कि चीन के इन कानूनों का असल में कोई खास असर नहीं है, क्योंकि ताइवान की अपनी सरकार है और वो चीन के दावों को नहीं मानता। चीन ताइवान के अधिकारियों को सजा भी देता है, मगर ये सजाएँ मायने नहीं रखतीं क्योंकि चीन के कोर्ट का ताइवान पर कोई अधिकार नहीं है।
ताइवान के मुख्य भूमि मामलों की परिषद ने शुक्रवार को चीन के इस कदम की कड़ी आलोचना की और अपने लोगों से चीन के धमकियों से ना डरने का आग्रह किया। ताइवान ने चीन की धमकियों को सिरे से खारिज कर दिया है। ताइवान का कहना है कि “चीन के अधिकारियों का ताइवान पर कोई अधिकार नहीं है और चीन के कानून हमारे लोगों पर लागू नहीं होते हैं। हमारी सरकार लोगों से कहती है कि वो घबराएं नहीं और चीन की धमकियों से ना डरें।”
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते बार-बार चीन के साथ बातचीत करने की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन चीन ने इनकार कर दिया है। लाई का कहना है कि ताइवान का भविष्य वहाँ के लोगों को ही तय करना है।