दिल्ली: प्रियंका गांधी चुनाव कब लड़ेंगी, कांग्रेस की ओर से उन्हें मैदान में क्यों नहीं उतारा जा रहा है…ये सारे सवाल अब आखिरकार खत्म हो गए हैं। कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि प्रियंका गांधी केरल के वायनाड से चुनावी राजनीति में कदम रखने जा रही हैं। राहुल गांधी हाल में हुए लोकसभा चुनाव में वायनाड और यूपी के रायबरेली से मैदान में उतरे थे। दोनों जगह उन्हें जीत मिली। ऐसे में आखिरकार राहुल ने उत्तर प्रदेश में बने रहने का फैसला किया।
प्रियंका गांधी की बात करें तो 2019 से ही उनके चुनावी मैदान में उतरने की अटकलें लगाई जाती रही हैं। फिर ऐसी खबरें आईं कि शायद गांधी परिवार यह नहीं दर्शाना चाहता है कि उसके तीन सदस्य संसद में हैं। हालांकि, अब लगता है कि प्रियंका गांधी तैयार हैं। प्रियंका गांधी ने पार्टी के फैसले को स्वीकार करते हुए कहा, ‘मैं वायनाड के लोगों को अपने भाई की अनुपस्थिति का अहसास नहीं होने दूंगी।’ अभी 2024 में जब राहुल गांधी दो जगहों से चुनाव जीते थे तो उन्होंने कहा कि वे इस बात को लेकर असमंजस में हैं किस सीट को छोड़ा जाए।
प्रियंका को वायनाड भेजकर कांग्रेस ने क्या संदेश दिया?
राहुल गांधी ने सोमवार को मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘वायनाड के लोगों ने मुझे समर्थन और मुश्किल समय में लड़ाई के लिए उर्जा दी है। मैं इसे कभी नहीं भूल सकूंगा।’
राहुल का ये बयान 2019 में उनके अपने ही गढ़ अमेठी में हार की याद को दिखाता है। कांग्रेस के लिए बेहद मजबूत माने जाने वाले क्षेत्र अमेठी में 2019 में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी से करारी हार का सामना करना पड़ा था। राहुल ने तब वायनाड से भी चुनाव लड़ा था और यहां से जीतकर संसद पहुंचने में सफल रहे।
इस साल के लोकसभा चुनाव में भी वायनाड से राहुल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सीपीआई-एम के एनी राजा को साढ़े लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हराया। वायनाड में कांग्रेस की मजबूत स्थिति को देखते हुए जानकार मानते हैं कि प्रियंका को यहां से जीत हासिल करने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह कदम उत्तर और दक्षिण दोनों में गांधी परिवार की मौजूदगी को दर्शाएगा। एक यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस नेतृत्व केरल को दक्षिण में अपनी रणनीति का अहम सूत्र मानता है।
इंडिया टुडे के अनुसार राजनीतिक विश्लेषक मनीषा प्रियम ने कहा कि यह कदम दिखाता है कि कांग्रेस नेतृत्व केरल को दक्षिण में अपनी रणनीति का अभिन्न अंग मानता है। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह वायनाड को छोड़ना है, यह वायनाड को अपनाना है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘वायनाड गांधी परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु में उनका सीधा प्रतिनिधित्व नहीं है। कर्नाटक में डीके शिवकुमार हैं। प्रियंका की सीधी एंट्री का मतलब यह होगा कि नेतृत्व यह कहने की कोशिश कर रहा है कि कांग्रेस सीधे तौर पर केरल में चुनावी अखाड़े में उस समय अपना हाथ डाल रही है, जब बीजेपी का वोट प्रतिशत भी बढ़ रहा है।’
हालांकि प्रियंका को वायनाड भेजने का एक दूसरा मतलब भी निकलकर आता है। क्या यह संदेश भी इसमें छुपा है कि कांग्रेस का चेहरा राहुल गांधी ही हैं और आगे भी रहेंगे।
राहुल ही कांग्रेस का चेहरा हैं और रहेंगे!
प्रियंका को वायनाड भेजने का एक मतलब तो ये हुआ कि राहुल गांधी या कांग्रेस वायनाड के लोगों को यही संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें छोड़ा नहीं गया है। हालांकि बड़ा सवाल ये उठता है कि प्रियंका गांधी को रायबरेली क्यों नहीं दिया गया। राहुल गांधी रायबरेली को छोड़ सकते थे और वायनाड से सांसद बने रह सकते थे। वैसे भी प्रियंका गांधी का ज्यादा अनुभव यूपी का ही रहा है।
खासकर अमेठी और रायबरेली में तो प्रियंका काफी काम करती रही हैं। फिर प्रियंका गांधी को यूपी में क्यों नहीं रहने दिया गया। कुछ जानकार मानते हैं कि संभवत: इसकी बड़ी वजह यह संदेश देना है कि राहुल गांधी ही पार्टी का चेहरा हैं। ऐसे समय में जब कांग्रेस ने पिछले 10 सालों में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है तो राहुल गांधी उत्तर प्रदेश छोड़कर नहीं जा सकते।
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार पत्रकार जावेद अंसारी ने कहा कि उन्हें लगता है कि पार्टी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि राहुल गांधी ही पार्टी का चेहरा हैं। इसीलिए वह यूपी से दूर नहीं जा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक लेखिका और पत्रकार नीरजा चौधरी भी जावेद अंसारी की बातों से सहमती जताती हैं।
भाजपा ने प्रियंका के वायनाड से चुनाव लड़ने पर क्या कहा?
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस कोई पार्टी नहीं, पारिवारिक कंपनी है, ये तो आज सिद्ध हो गया। मां राज्यसभा में होंगी, बेटा लोकसभा की एक सीट से होंगे और प्रियंका गांधी लोकसभा की दूसरी सीट से होंगी। मतलब, परिवार के तीनों सदस्य सदन में होंगे। ये तो परिवारवाद का एक परिचय है ही, परंतु एक बात और भी स्पष्ट हो गई है कि राहुल गांधी ये समझ गए हैं, जो जीत उनको उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर समाजवादी पार्टी के वोट के बल पर मिली है, अब वहां पर उपचुनाव कराने से उनकी सीट पर खतरा आ सकता है।