मुंबईः कोल्हापुर के विशालगढ़ किले में स्थित दरगाह पर बकरीद और उर्स के दौरान जानवरों की कुर्बानी की पुरानी परंपरा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनुमति दे दी है। कोर्ट का कहना है कि सरकार का ये फैसला गलत था। ‘संरक्षित इलाका’ और ‘संरक्षित स्मारक’ में फर्क होता है और इस मामले में दरगाह को ‘संरक्षित स्मारक’ नहीं माना जा सकता। इसलिए यहां जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाना बेतुका है।
कई लोगों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर जानवरों की कुर्बानी पर रोक के आदेश को चुनौती दी थी। ये आदेश पुरातत्व और संग्रहालय विभाग के निदेशक (मुंबई), कोल्हापुर के पुलिस अधीक्षक और जिला परिषद के सीईओ (कोल्हापुर) ने दिए थे।
सरकार और दरगाह की दलील
सरकार की तरफ से पेश हुए वकीलों एसडी व्यास और वाईडी पाटिल का कहना था कि ये आदेश महाराष्ट्र प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम और नियमों के तहत लिए गए थे। इन नियमों के अनुसार, संरक्षित स्मारकों के अंदर खाना पकाना और खाना खाने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि अधिकृत अधिकारियों द्वारा अनुमति दी गई हो।
सरकारी वकीलों का कहना था कि जानवरों की कुर्बानी से खाना पकाना और खाना खाना लाजमी है। ये दोनों चीजें पहले से ही प्रतिबंधित हैं। इसपर दरगाह की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कहा कि कानून सिर्फ खास पुरातात्विक क्षेत्रों और गांवों को ही “संरक्षित इलाका” मानता है, पूरी जगह को नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दक्षिणपंथी संगठन इस परंपरा को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने सरकार की दलील नहीं मानी। कोर्ट का कहना था कि कानून में ही “संरक्षित इलाका” और “संरक्षित स्मारक” में फर्क बताया गया है। पूरे विशालगढ़ को “संरक्षित स्मारक” नहीं माना जा सकता। इसलिए यहां जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाना गलत है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि इस इलाके में रहने वाले 107 परिवारों को खाना पकाने और खाने पर रोक लगाने से बहुत परेशानी होगी। कोर्ट ने इसे “बेतुका” बताया। कोर्ट का कहना था कि “इसका मतलब ये होगा कि इन 107 परिवारों को या तो भूखा रहना पड़ेगा या फिर अपने घरों से बाहर (333 एकड़ 19 गुंठा से बाहर) जाकर खाना बनाना और खाना पड़ेगा। ये सोच बेतुकी है।”
1999 में विशालगढ़ को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था
कोर्ट ने ये भी गौर किया कि साल 1999 में विशालगढ़ को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन फरवरी 2023 तक जानवरों की कुर्बानी पर कोई रोक नहीं थी। इसको उल्लेख करते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता बकरीद (17 जून) और उर्स (21 जून तक) के लिए जानवरों की कुर्बानी कर सकते हैं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि पिछले 24 सालों में प्रशासन को ये नहीं लगा कि जानवरों की कुर्बानी से कानून या नियमों का उल्लंघन हो रहा है। पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को देखते हुए, हमारा मानना है कि सिर्फ बकरीद (17 जून) और उर्स (21 जून तक) के लिए जानवरों की कुर्बानी की इजाजत दी जा सकती है। लेकिन कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि जानवरों की कुर्बानी सिर्फ निजी जमीन पर ही की जा सकती है, खुले या सार्वजनिक स्थानों पर नहीं।
बीएमसी ने कुर्बानी को लेकर जारी किया सर्कुलर
नगर निगम (बीएमसी) ने बकरीद के मौके पर कुर्बानी को लेकर 29 मई को सर्कुलर जारी किया था। जिसके अनुसार कुर्बानी के लिए 114 स्थानों को चिह्नित किया गया है। नगर निगम ने किसी भी आवासीय भवन में कुर्बानी की अनुमति नहीं दी है। यह अनुमति 17 से 19 जून के बीच 47 नगर निगम बाजारों और 67 निजी मटन की दुकानों पर प्रभावी रहेगी। इस सर्कुलर के खिलाफ जीवमैत्री ट्रस्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन अदालत ने ट्रस्ट को राहत देने से इनकार कर दिया।