नई दिल्लीः बिहार में शराबबंदी को 8 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है। लेकिन इस कानून को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से अब भी सवाल उठाए जाते रहे हैं। प्रशांत किशोर तक अक्सर इस कानून को वापस लेने की मांग करते रहते हैं। लेकिन इस बीच आए एक अध्ययन में शराबबंदी से बिहारवासियों को कई तरह के फायदे होने का खुलासा हुआ है।
‘द लांसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल’ में प्रकाशित नए शोध के अनुसार, 2016 से बिहार में लागू शराबबंदी की वजह से घरेलू हिंसा के मामलों में 21 लाख की कमी आई है। वहीं, रोजाना और साप्ताहिक शराब के सेवन में 24 लाख की कमी दर्ज की गई। शोध में यह भी कहा गया है कि शराबबंदी ने राज्य में 18 लाख पुरुषों को अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होने से बचा लिया।
घरेलू हिंसा में आई कमी
यह शोध अमेरिका स्थित अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के गरीबी, स्वास्थ्य और पोषण प्रभाग के शोधकर्ताओं ने किया। उन्होंने राष्ट्रीय और जिला स्तर के स्वास्थ्य और घरेलू सर्वेक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। शोध मेंकहा गया है कि सख्त शराब विनियमन नीतियां रोजाना शराब पीनेवालों और घरेलू हिंसा के कई पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य के लिहाज से लाभकारी हो सकती हैं।
साल 2016 में बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया था। राज्य में शराब के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत पर लगभग पूर्ण रोक लगाा दी गई। शोधकर्ताओं के अनुसार, रातोंरात लागू किए गए इस प्रतिबंध और इसके कड़े क्रियान्वयन ने इसे “एक आकर्षक प्राकृतिक प्रयोग” बना दिया, जिससे सख्त शराब प्रतिबंध नीति के स्वास्थ्य और घरेलू हिंसा से जुड़े नतीजों पर पड़ने वाले वास्तविक कारणिक प्रभावों का अनुमान लगाया जा सका। विश्लेषण में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3, -4 और -5 के आंकड़ों को शामिल किया गया।
प्रतिबंध के बाद शराब सेवन में 7.2 प्रतिशत की कमी
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रतिबंध से पहले, बिहार के पुरुषों में नियमित शराब सेवन 9.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत हो गया था। वहीं प्रतिबंध के बाद यह घटकर 7.8 प्रतिशत हो गया। जबकि पड़ोसी राज्यों में 10.3 प्रतिशत से बढ़कर 10.4 प्रतिशत हो गया। शोधकर्ताओं को इस बात के भी प्रमाण मिले कि बिहार में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा कम हुई है। शोधकर्ताओं ने लिखा है कि शराबबंदी के बाद भावनात्मक हिंसा में 4.6 प्रतिशत अंक की कमी और यौन हिंसा में 3.6 प्रतिशत अंक की कमी” देखी गई।
स्वास्थ्य के लिए लाभकारी साबित हुई शराबबंदी
शोध लेखकों ने अनुमान लगाया कि प्रतिबंध का पुरुषों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर हुआ। इससे पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम वजन वाले पुरुषों के मामलों में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है। और अधिक वजन वाले या मोटे पुरुषों के मामलों में 5.6 प्रतिशत अंक की कमी आई है।
शोधकर्ताओं ने लिखा है कि पड़ोसी राज्यों में शराब प्रतिबंध नहीं है। लिहाजा बिहार में शराब के नियमित सेवन के 24 लाख मामलों, 18 लाख पुरुषों में अधिक वजन या मोटापे के मामलों और घरेलू हिंसा के 21 लाख मामलों में कमी आई। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन उन नीति-निर्माताओं के लिए मूल्यवान होगा जो अन्य भारतीय राज्यों में इसी तरह के प्रतिबंध लाने पर विचार कर रहे हैं।
शोध में लेखकों ने आगे कहा कि हालांकि हम व्यावहारिक और आर्थिक रूप से व्यवहार्य नीति के रूप में पूर्ण प्रतिबंधों की सिफारिश नहीं करते हैं। लेकिन हमारा अध्ययन, यह सुझाव देता है कि सख्त शराब विनियमन नीतियों से शराब के नियमित सेवनकर्ताओं के स्वास्थ्य के लिए और घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए भी लाभकारी हो सकते हैं।
शराबबंदी कानून में हुए कई बदलाव
बता दें कि 2016 के बाद से शराब बंदी कानून में 5 बार बदलाव हो चुके हैं।2021 में पहली बार पकड़े जाने पर आरोपी 2 हजार से 5 हजार जुर्मान भरकर छूट सकता है। जो इससे पहले आरोपी को सीधे जेल भेज दिया जाता था। साल 2022 में इस कानून में दो बदलाव किए गए। इसमें शराबबंदी कानून के तरह पहली बार पकड़े जाने पर मामले की सुनवाई का अधिकार एक्जिक्यूटीव मैजिस्ट्रेट को दे दिया गया जो पहले सीधा ट्रायल कोर्ट भेजा जाता था। इसी दौरान सजा को 10 साल से घटाकर 5 साल कर दिया गया था।
साल 2023 के अप्रैल में भी एक बड़ा बदलाव हुआ था। पूर्वी चंपारण में जहरीली शराब से 25 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने हर पीड़ित परिवार को चार लाख रुपये मुआवजा देने का एलान किया था। इसके अलावा शराबबंदी में एक और नया बदलाव किया गया। शराबबंदी कानून के तहत जब्त की गई गाड़ियों को लेकर। राज्य सरकार के नए नियम के मुताबिक, जब्त गाड़ियों को उनकी बीमा राशि का महज 10 प्रतिशत ज़ुर्माना भरकर छुड़ाया जा सकता है। इससे पहले 50 प्रतिशत देना पड़ता था।