कान फिल्म समारोह का 77वां संस्करण भारतीय फिल्मों और फिल्म निर्माताओं, कलाकारों के लिए काफी सुखद रहा। कोलकाता की रहने वाली अनसूया सेनगुप्ता को जहां ‘द शेमलेस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला, वहीं ला सिनेफ सेक्शन में दो भारतीय फिल्मों सनफ्लॉवर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो और बनीहुड ने पहला और तीसरा स्थान हासिल किया। इसके अलावा पायल कपाड़िया की फीचर फिल्म ‘ऑल वी इमैजिन ऐज लाइट’ को फिल्म समारोह में ज्यूरी अवॉर्ड मिला है।
कोलकाता की रहने वाली अनसूया सेनगुप्ता फिल्म समारोह की अन सर्टन रिगार्ड श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री चुनी गई हैं। इस श्रेणी में ‘द शेमलेस’ को भी नॉमिनेशन मिला था लेकिन वह पीछे रह गई। ‘द शेमलेस’ फिल्म का निर्देशन बुल्गारिया के कोन्सटेंटिन बोजानोव ने किया है। यह फिल्म वेश्यावृत्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें अनसूया (रेणुका) एक वेश्यालय में काम कर रही होती है जो एक रात पुलिस अधिकारी को मार देती है और फिर दिल्ली के वेश्यालय से भाग जाती है। फिल्म में अनसूया के अलावा ओमारा शेट्टी भी प्रमुख भूमिका में हैं।
अनसूया सेनगुप्ता ने क्या कहा?
अनसूया यह पुरस्कार हासिल करने वाली पहली भारतीय बन गई हैं। अनसूया ने न्यूज पोर्टल कोईमोई के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि “मुझे खबर तब मिली जब कोन्स्टेंटिन ने मुझे कान के लिए आधिकारिक चयन की घोषणा करने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस का लिंक भेजा। जब हमारी फिल्म के नाम की घोषणा की गई, तो मैं खुशी से कुर्सी से उछल पड़ी!” अमेरिकी पत्रिका वेरायटी के मुताबिक अनुसुया ने अपना पुरस्कार “दुनिया भर के उन हाशिए के समुदायों को समर्पित किया जो बहादुरी से वो लड़ाई लड़ रहे हैं, जिन्हें उन्हें नहीं लड़नी चाहिए थी।” वेरायटी के मुताबिक, अनसूया ने कहा कि “समानता के लिए लड़ने के लिए आपका विचित्र होना जरूरी नहीं है, और ये समझने के लिए कि उपनिवेशवाद दयनीय है, आपको उपनिवेश नहीं बनाया जाना चाहिए – हमें बस अच्छे इंसान बनने की जरूरत है।”
‘सनफ्लॉवर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो’ और ‘बनीहुड’ को भी पुरस्कार
अनसूया के अलावा, इस साल के कान फिल्मोत्सव में दो भारतीय फिल्मों- ‘सनफ्लॉवर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो’ और ‘बनीहुड’ की भी खूब चर्चा रही। दोनों ही फिल्मों ने ला सिनेफ प्रतियोगिता में पहला और तीसरा स्थान हासिल किया। बनीहुड का निर्देशन मानसी माहेश्वरी ने किया है। जबकि राष्ट्रीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के छात्र चिदानंद नाइक ने ‘सनफ्लावर वेयर फर्स्ट वन्स टू नो’ को लिखा और निर्देशित किया है।
चिदानंद नाइक की लघु फिल्म ‘सनफ्लावर वेयर फर्स्ट वन्स टू नो’ ने बेस्ट शॉर्ट फिल्म का पहला पुरस्कार जीता है। यह लघु फिल्म एक कन्नड़ लोककथा से प्रेरित है। जिसमें एक बुजुर्ग महिला मुर्गों की चोरी करती है। इसकी सजा उसके बेटे को मिलती। उसको गांव के लोगों द्वारा बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।
चिदानंद द्वारा निर्देशित यह शॉर्ट फिल्म ‘ला सिनेफ’ प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीता है। ‘ला सिनेफ’ दुनिया भर के फिल्म प्रशिक्षण संस्थानों के छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए महोत्सव का आधिकारिक प्रतिस्पर्धी अनुभाग है। जिसमें दुनिया भर से 18 लघु फिल्मों का चयन किया गया था। इनमें चार एनिमेटेड फिल्में और 14 लाइव एक्शन लघु फिल्में थीं।
चिकित्सक से फिल्ममेकर बने चिदानंद नाइक
एफटीआईआई में टेलीविजन विभाग के छात्र चिदानंद की लघु फिल्म ‘सनफ्लावर वेयर फर्स्ट वन्स टू नो’ इस श्रेणी में एकमात्र भारतीय लघु फिल्म थी। प्रतियोगिता के परिणाम गुरुवार को घोषित किए गए। इससे पहले इस अनुभाग में ‘कैटडॉग’ के लिए अश्मिता गुहा नियोगी ने ये पुरस्कार साल 2020 में जीता था। मैसूर के रहने वाले चिदानंद नाइक को प्रथम पुरस्कार के तहत 15000 यूरो यानी 13 लाख 48 हजार रुपए मिले। बता दें कि नाइक के पास एमबीबीएस की डिग्री भी है। कुछ समय तक उन्होंने अस्पताल में प्रैक्टिस भी की। लेकिन बाद में वे फिल्म निर्माण में आ गए।
छात्र की उस उपलब्धि पर टेलीविजन विभाग के प्रमुख डॉ मिलिंद दामले ने कहा कि यह पहली बार खास है कि टेलीविजन विभाग के एक वर्षीय छात्र की लघु फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टिवल में चुना गया है और उसने पहला पुरस्कार जीता है। इस एक वर्षीय पाठ्यक्रम में, छात्रों को फिल्म और टेलीविजन के माध्यमों के बारे में अनुशासित तरीके से पढ़ाया जाता है। यह निश्चित रूप से संस्थान के लिए लघु फिल्म के लिए गर्व की बात है।
एनीमेशन फिल्म बनीहुड को ला सिनेफ का तीसरा पुरस्कार मिला
ला सिनेफ प्रतियोगिता का तीसरा पुरस्कार मानसी माहेश्वरी की एनीमेशन फिल्म बनीहुड को मिला। मेरठ में जन्मीं मानसी निफ्ट दिल्ली की पूर्व छात्रा रही हैं। वह यूके के राष्ट्रीय फिल्म और टेलीविजन स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं। यहां की बतौर छात्रा मानसी ने यह फिल्म बनाई है। कान में 23 मई को इसकी स्क्रीनिंग हुई थी जहां इसको ला सिनेफ प्रतियोगिता में तीसरा पुरस्कार मिला। ‘दैनिक भास्कर’ के मुताबिक, मानसी माहेश्वरी को इस फिल्म की प्रेरणा उनकी माँ की सर्जरी से मिली जो उनसे छुपाई गई थी।
पायल कपाड़ियां की फिल्म ‘ऑल वी इमैजिन ऐज लाइट’ को ज्यूरी अवार्ड
इसके अलावा पायल कपाड़िया की फीचर फिल्म ‘ऑल वी इमैजिन ऐज लाइट’ का कान फिल्म समारोह में प्रीमियर हुआ। इस फिल्म को समारोह में ज्यूरी अवार्ड मिला है। बीते 30 वर्षों में भारत की यह पहली फिल्म है जिसने कान फिल्म समारोह की मुख्य प्रतिद्वंदी श्रेणी में अवार्ड जीता है। स्क्रीनिंग के बाद इस फिल्म को आठ मिनट तक स्टैंडिंग ओवेशन मिला। स्क्रीनिंग के बाद जब फिल्म के अंतिम क्रेडिट दिखाए जा रहे थे, तब दर्शकों ने खड़े होकर आठ मिनट तक तालियां बजाईं।
स्क्रीनिंग के अंत में भावुक कपाड़िया ने कहा, “इतने बड़े थिएटर में फिल्म देखना वाकई में अद्भुत अनुभव रहा। धन्यवाद।” कपाड़िया ने अपने संबोधन में अपनू पूरी टीम के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “यहां मौजूद मेरी पूरी टीम को धन्यवाद। और उन्हें भी जो नहीं आ सके। कलाकारों को भी धन्यवाद, वे सिर्फ फिल्म में अभिनेता नहीं बन रहे थे, हम एक परिवार की तरह बन गए। मुझे लगता है कि यह मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा सहयोग था। हमारे पास बहुत अच्छे निर्माता हैं, धन्यवाद।”
बता दें कि प्रतियोगिता वर्ग के हिस्से के रूप में प्रदर्शित होने वाली अंतिम भारतीय फिल्म 1994 में शाजी एन करुण की “स्वाहम” थी।