वशिंगटन/मॉस्कोः 5 फरवरी, 2022 को रूस ने अंतरिक्ष में एक उपग्रह, कॉसमॉस-2553 (Cosmos-2553) लॉन्च किया था। जिसको लेकर अमेरिका की चिंताएं बढ़ गई हैं। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इस उपग्रह को भविष्य में परमाणु बम ले जाने वाले एक ऐसे हथियार के पुर्जों की जांच के लिए बनाया गया है जो अंतरिक्ष में दूसरे उपग्रहों को नष्ट कर सके। हालांकि लॉन्च किए गए उपग्रह में खुद कोई परमाणु बम नहीं है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार यह घटना अमेरिका के राष्ट्रपति कार्यालय, संसद और विशेषज्ञों को चिंतित कर रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि रूस अंतरिक्ष में परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है।
रूस के दावों पर अमेरिका को भरोसा नहीं
रूस का कहना है कि कॉसमोस-2553 अंतरिक्ष यान वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए बनाया गया है। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह दावा भरोसेमंद नहीं है। यह उपग्रह यूक्रेन पर आक्रमण का आदेश देने से 19 दिन पहले 24 फरवरी, 2022 को लॉन्च किया गया था। रूस की रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये अंतरिक्ष यान विकसित किए गए नए उपकरणों से भरा हुआ था, ताकि विकिरण और तेज गति वाले कणों के प्रभाव में उन्हें परखा जा सके।
लेकीन, अमेरिका की विदेश सचिव की सहायक मैलोरी स्टीवर्ट ने इस बात को गलत बताया। उनका कहना है कि ये उपग्रह असामान्य परिक्रमा पथ (ऑर्बिट) पर है, जहां कोई और अंतरिक्ष यान नहीं जाता। साथ ही, ये परिक्रमा पथ सामान्य पृथ्वी की निचली परिक्रमा पथों से ज्यादा विकिरण वाला है। लेकिन इतना ज्यादा नहीं है कि रूस द्वारा बताए अनुसार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की तेजी से जांच की जा सके।
अमेरिका ने रूस से बात करने की कोशिश की लेकिन..
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका को सालों से पता है कि रूस एक परमाणु-शक्ति से लैस उपग्रह-रोधी हथियार बनाने में दिलचस्पी रखता है। लेकिन हाल ही में अमेरिका को इस कार्यक्रम की प्रगति का बेहतर अंदाजा लगा पाया है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उसने रूस के साथ उपग्रह-रोधी कार्यक्रम को लेकर चर्चा करने की कोशिश भी की लेकिन उसने अस्वीकार कर दिया।
तनाव में अमेरिका
रूस की परमाणु-शक्ति से लैस उपग्रह-रोधी हथियार बनाने की क्षमता को लेकर चिंताओं ने वाशिंगटन में तनाव बढ़ा दिया है। फरवरी में, प्रतिनिधि माइक टर्नर ने इस मुद्दे से जुड़े “गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे” को उजागर किया। उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडन से इस मामले से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को सार्वजनिक करने का आग्रह किया था। गौरतलब है कि अमेरिका और जापान ने 1967 के बाहरी अंतरिक्ष संधि के बाबत संयुक्त राष्ट्र में स्थिति को संबोधित करने का प्रयास किया, लेकिन रूस ने इसे वीटो कर दिया। रूस का कहना था कि यह प्रस्ताव अंतरिक्ष हथियारों के सभी प्रकारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूत नहीं है।
फॉरेन पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर अंतरिक्ष-आधारित कमांड और नियंत्रण उपग्रहों के नेटवर्क पर बहुत अधिक निर्भर करता है। ये उपग्रह महत्वपूर्ण सैन्य संचार, खुफिया जानकारी इकट्ठा करने और लक्ष्यीकरण क्षमताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इन उपग्रहों की विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका होती है, खासकर ऐसी स्थिति में जहां आम युद्ध परमाणु युद्ध बन सकता है। यह व्हाइट हाउस और रक्षा विभाग अमेरिका के 5,244 परमाणु हथियारों की स्थिति और सुरक्षा पर नजर रखने का काम करते हैं। लिहाजा पेंटागन इन प्रणालियों को मजबूत करने के लिए 8 बिलियन डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहा है।
स्पेस में परमाणु हथियार की तैनाती का क्या होगा असर?
फॉरेन पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला सिर्फ सेना से जुड़ी चीजों तक सीमित नहीं है। व्यापारिक उपग्रह जो दुनियाभर के संपर्क और आर्थिक व्यवस्था के लिए बहुत जरूरी हैं, वो भी खतरे में पड़ जाएंगे। अंतरिक्ष में परमाणु बम फटने का असर बहुत दूर तक होगा, और धरती पर रहने वालों को काफी दिक्कतें आएंगी। अगर इसे अंतरिक्ष में तैनात किया जाता है और रूस इसमें विस्फोट करता है तो निम्न पृथ्वी की कक्षा में सैकड़ों उपग्रह नष्ट हो जाएंगे। इंटरनेट काम करना बंद कर देगा, स्मार्टफोन बेकार हो जाएंगे। साथ ही, अंतरिक्ष में जमा होने वाले मलबे के कारण कुछ खास रास्ते (ऑर्बिट) खतरनाक या इस्तेमाल के लायक नहीं रह जाएंगे।
रूस का क्या है कहना?
रूस का दावा है कि ये उपग्रह वैज्ञानिक शोध के लिए हैं। लेकिन अमेरिकी अधिकारी इस बात को नहीं मानते। अमेरिका की विदेश सचिव की सहायक मैलोरी स्टीवर्ट का कहना है कि कॉसमोस-2553 की कक्षा असामान्य है और इसका इस्तेमाल दूसरे अंतरिक्ष यानों द्वारा नहीं किया जाता है। इससे ये संकेत मिलता है कि इस उपग्रह का असली मकसद रूस की उपग्रह-रोधी महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा है। उन्होंने कहा, ” ये कक्षा ऐसी जगह है जिसे किसी और अंतरिक्ष यान ने इस्तेमाल नहीं किया है – ये अपने आप में कुछ असामान्य है।”
अमेरिका ने चीन-भारत को दखल देने के लिए कहा
अमेरिका रूस की अंतरिक्ष गतिविधियों पर लगातार नजर रख रहा है और उसका आंकलन कर रहा है। रूसी अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर सीधे बातचीत करने की कोशिशें नाकामयाब रहीं। फॉरेन पॉलिसी रिपोर्ट के अनुसार, माना जाता है कि बाइडन प्रशासन ने चीन और भारत दोनों से संपर्क किया है। उनसे आग्रह किया है कि वे रूस को अंतरिक्ष हथियार तैनात ना करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें। चूंकि कॉसमोस-2553 अभी भी कक्षा में है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय अंतरिक्ष हथियारों के इस्तेमाल को लेकर बढ़ते खतरे को लेकर सतर्क हैं।