व्हाट्सऐप भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला मैसेजिंग ऐप है। बहुत से लोग बातचीत भी इसी ऐप के जरिए करते हैं। लेकिन अब व्हाट्सऐप ने दिल्ली हाई कोर्ट में भारत छोड़ कर जाने की धमकी दी है। आखिर ये पूरा केस क्या है? आईए इस पर बात करते हैं।
भारत सरकार और व्हाट्सऐप में झगड़ा क्यों है?
पहला सवाल कि भारत सरकार और व्हाट्सऐप में झगड़ा किस बात है? ये मामला आईटी रूल 2021 के एक क्लॉज से जुड़ा है। इसके मुताबिक संवेदनशील और सुरक्षा से जुड़े मामलों में अदालत के आदेश पर व्हाट्सऐप जैसी वेब कंपनियों को मैसेज के पहले स्रोत का पता लगा कर जांच एजेंसियों को बताना होगा। ऐसे मामले कौन-कौन से है इसकी एक पूरी लिस्ट आईटी रूल 2021 में दर्ज है। आगे बढ़ने से पहले इन पर सरसरी नजर डाल लेते हैं।
1) भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा से जुड़े मामले
2) किसी दूसरे देश से संबंध खराब करने की साजिश
3) पब्लिक ऑर्डर बिगाड़ने यानि शांति भंग करने की साजिश
4) बलात्कार से जुड़ा केस और
5) सेक्सुअल एक्सप्लिसिट मैटेरियल और बाल यौन शोषण से जुड़ा कोई केस
ऐसे सभी मामलों में कोर्ट के आदेश पर गुनहगारों की शिनाख्त के लिए मैसेजिंग ऐप कंपनियों को मैसेज का पहला स्रोत बताना होगा। मतलब जांच में सहयोग करना होगा। इस रूल को व्हाट्सऐप और उसकी पैरेंट कंपनी मेटा ने कोर्ट में चुनौती दी है। मेटा अमेरिकी कारोबारी मार्क जुकरबर्ग की कंपनी है और उसके पास फेसबुक का भी स्वामित्व है। कंपनी के मुताबिक इस रूल पर अमल के लिए उसे अपने जरिए भेजे गए मैसेजेज का इन्क्रिप्शन तोड़ना होगा। इससे यूजर्स की गोपनीयता खत्म होगी। उनकी नजर में ये सही नहीं है और यदि सरकार ने उन्हें मजबूर किया तो वो भारत से अपना बिजनेस समेट लेंगे।
मतलब व्हाट्सऐप की कोशिश है कि इस पूरे प्रकरण को लोग गोपनीयता बनाम सरकारी हस्तक्षेप के तौर पर देखें। क्या वाकई ऐसा है? क्या बात सरकारी हस्तक्षेप तक सीमित है? यदि ऐसा है तो सरकार को पीछे हटना होगा। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। अब जरा आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि इन्क्रिप्टेड का अर्थ क्या है?
इन्क्रिप्टेड का मतलब क्या है?
दरअसल व्हाट्स ऐप सिर्फ मैसेजिंग ऐप नहीं है। आप इससे बात भी कह सकते हैं। वीडियो चैट कर सकते हैं। आप ग्रुप चैट भी कर सकते हैं। आप ग्रुप बना सकते हैं। एक साथ अनेक लोगों को मैसेज भेज सकते हैं। बात कर सकते हैं। और आप जो बात करते हैं वो इन्क्रिप्टेड होती है। ये एक टेक्नीकल टर्म है। इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं।
मान लीजिए कि अनिल ने व्हाट्सऐप पर सुरेश को कोई मैसेज भेजा। कोई फाइल भेजी या अनिल ने व्हाट्स एप पर सुरेश को कॉल किया। मैसेज, फाइल या कॉल अनिल के यहां से जैसे ही चली वो इन्क्रिप्टेड हो गई। ये एक किस्म का डिजिटल प्रॉसेस है। डिजिटल वर्ल्ड में सबकुछ डेटा है। सबकुछ पैकेट के तौर पर एक सोर्स से दूसरे सोर्स तक ट्रांसफर होता है। मसलन जब अनिल ने कहा कि क्या हाल है सुरेश? तो इसका एक डिजिटल इन्क्रिप्टेड डेटा तैयार हुआ। जिसमें क्या हाल है सुरेश – कुछ कोड्स में तब्दील हो गए। इन्हें साइफटेक्स्ट कहते हैं और उन कोड्स पर ताला लग गया। अब इसकी चाबी सिर्फ सुरेश के पास है। जब डिजिटल नेटवर्क के जरिए सुरेश के पास पहुंचेगा तो सिर्फ और सिर्फ उसे ही पता चलेगा कि अनिल ने कहा है। बीच में यदि कोई वो डेटा चुराने की कोशिश करेगा तो उसके हाथ साइफटेक्स्ट लगेगा जिनमें से असली अर्थ निकला असंभव है।
अपराधियों पर निगरानी अब क्यों हुई मुश्किल?
इससे पहले अपराधियों पर निगरानी इतनी मुश्किल नहीं थी। टेलिफोन या मोबाइल के जरिए होने वाली बातचीत में तीन प्लेयर हुआ करते थे। यूजर-ए, टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर और यूजर बी। यहां टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर आपकी अपनी कंपनियां थी। इसलिए कम्युनिकेशन आपकी निगरानी में था। जरूरत पड़ने पर जांच एजेंसियां सर्विस प्रोवाइडर को बोल कर संदिग्ध लोगों की बातचीत रिकॉर्ड कर लेती थीं और इससे अपराध और अपराधी पर नियंत्रण रखना आसान था। लेकिन बीते दशक में तकनीक में काफी सुधार हुआ। खासकर VoIP (Voice over Internet Protocol) तकनीक के आने के बाद से एक बड़ा प्लेयर इसमें घुस गया है।
ये नया प्लेयर कमाल का है। आप पहले एक फोन से एक लाइन पर एक आदमी से बात कर सकते थे। अब इंटरनेट के जरिए एक ही फोन से एक साथ अलग अलग जगह पर मौजूद कई लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं। आपके पास दस स्मार्ट फोन या फिर लैपटॉप या कंप्यूटर हैं और एक वाई-फाई कनेक्शन है तो दसों लोग अलग अलग बात कर सकते हैं। ये संख्या सिर्फ दस तक सीमित नहीं है। एक वाई-फाई से आप दर्जनों या सैकड़ों फोन या कम्प्यूटर कनेक्ट कर सकते हैं।
ये नई तकनीक है। और यहां सबकुछ इन्क्रिप्टेड है। इसने खेल को एक ऐसे जोन में पहुंचा दिया है जहां घुसने के लिए सरकार को नए नियम बनाने पड़े हैं। जिस माध्यम के, जिस वाई-फाई नेटवर्क का इस्तेमाल करके इन ऐप कंपनियों के जरिए जो बातचीत हो रही है, जो डेटा भेजा जा रहा है, उसकी भनक वाई-फाई नेटवर्क देने वाली कंपनियों को भी नहीं होती है। इंटरनेट प्रोवाइड करने वाली कंपनियों पर तो आपका नियंत्रण है, लेकिन उनके इस्तेमाल के जरिए जिन टूल्स के माध्यम से, ऐप के माध्यम से संवाद हो रहा है, उन टूल्स, उन ऐप्स पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
नई तकनीक से सरकार और जांच एजेंसियां अंधेरे में!
व्हाट्सऐप अकेली कंपनी नहीं है। आईफोन की सर्विस फेसटाइम भी ऐसी ही एक सर्विस है। टेलिग्राम ऐप भी ऐसा ही एक ऐप है। दर्जनों हैं। इसलिए सरकार और जांच एजेंसियां अंधेरे में हैं क्योंकि लॉबिंग से जुड़े लोग, भ्रष्टाचार में लिप्त लोग, आतंकवादी, उग्रवादी, अपराधी – सबका कम्युनिकेशन नेटवर्क अब सरकार की निगरानी और नियंत्रण से बाहर हैं। मामला उन्हीं आम लोगों की सुरक्षा से जुड़ा है, जिन आम लोगों की प्राइवेसी को आधार बना कर व्हाट्स ऐप डेटा साझा करने से मना कर रहा है।
हाल के दिनों में ऐसे अनेक वायके सामने आए हैं जिनमें व्हाट्स ऐप के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा है। मणिपुर हिंसा और दिल्ली दंगे ऐसे दो बड़े मामले हैं। मणिपुर हिंसा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए और 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए। 60 हजार से ज्यादा बेघर हुए। जांच एजेंसियों के मुताबिक व्हाट्स ऐप के जरिए फेक न्यूज फैलाया गया और हिंसा भड़काई गई।
दिल्ली दंगों में भी फेक न्यूज और नफरत फैलाने के लिए, हिंसा भड़काने के लिए व्हाट्स ऐप का इस्तेमाल किया गया। मॉब लिचिंग के कई मामलों में व्हाट्स ऐप का गलत इस्तेमाल हुआ।
भारत ही नहीं….दुनिया के कई देश जूझ रहे इस चुनौती से
नई तकनीक से चुनौती सिर्फ भारत में नहीं है। यूरोपीय देश भी इस चुनौती से जूझ रहे हैं। अमेरिका, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका – सब जगह ऐसा हो रहा है। दंगा भड़काने, अशांति फैलाने और फेकन्यूज फैलाने में व्हाट्सऐप का सबसे अधिक इस्तेमाल हो रहा है। जब भी ऐसी कोई हिंसा होती है तो सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों को होती है जो सबसे ज्यादा कमजोर होते हैं, जिन्हें सबसे अधिक जरूरत होती है।
इसके अलावा मानव तस्करी और सेक्स रैकेट में भी व्हाट्स ऐप का इस्तेमाल बड़े स्तर पर हो रहा है। ऐसे मामलों की सूची अनगिनत है। भारत ही नहीं, दुनिया के सभी देश इस नयी चुनौती से जूझ रहे हैं जो व्हाट्सऐप और उसके जैसी कंपनियों ने खड़ी की है। इसलिए प्राइवेसी किसी मुल्क के कायदे-कानून को नहीं मानने का कोई आधार नहीं हो सकता। खासकर सेन्सेटिव मामलों में तो कतई नहीं हो सकता।
व्हाट्सऐप को क्या करना चाहिए?
गूगल जैसी बड़ी कंपनी भी जांच में सहयोग करती हैं। गूगल भी अमेरिकी कंपनी है। उसने जांच में सहयोग से जुड़ी सूचना सार्वजनिक की हुई है। इसमें कहा गया है कि संबंधित देश के कानून के मुताबिक जरूरत पड़ने पर जांच एजेंसियों के साथ कुछ जानकारियां साझा की जाती हैं। यदि जांच के दायरे में कोई संगठन है तो उसे सूचित भी किया जाता है। अगर मामला संवेदनशील है तो जांच एजेंसियों की गुजारिश पर गूगल यूजर्स को सूचित किए बगैर भी जानकारी साझा करता है।
व्हाट्सऐप को भी करना चाहिए। व्यक्ति, समाज और देश के विरुद्ध यदि कोई साजिश हो रही है, कोई अपराध हो रहा है तो उसे सामने रोकने में मदद करनी चाहिए। प्राइवेसी की आड़ में अपराधियों को बचाना कहीं से भी सही नहीं है। वैसे भी ये फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी कंपनियां हमारी और आपकी प्राइवेसी का सौदा तो करती ही हैं। जांच एजेंसियों ने जिस कैम्ब्रिज एनेलेटिका केस का हवाला देकर व्हाट्सऐप और मेटा की इस दलील का विरोध किया है वो अपने आप में हमारे और आपके जैसे यूजर्स के साथ हुए धोखे का एक खौफनाक उदाहरण है। इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए यूजर्स एक डेटा हैं और इनकी नजर में डेटा का सौदा किया जा सकता है।