खालिस्तान चर्चा में है। खालिस्तान समर्थक कनाडा में रैली निकाल रहे हैं। ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में प्रदर्शन कर रहे हैं। अमेरिका से भारत को धमका रहे हैं। भारत विरोधी नारे लगा रहे हैं। कनाडा से हिंदुओं को बाहर निकालने और अलग खालिस्तान देश बनाने की मांग कर रहे हैं। आखिर खालिस्तान है क्या? हम और आप खालिस्तान के बारे में कितना जानते हैं? जिस खालिस्तान की मांग की जाती है उसका नक्शा कैसा है? उसमें भारत की कितनी जमीन है और पाकिस्तान की कितनी जमीन है? खालिस्तान को लेकर भारत में तो आंदोलन हुआ, लहू बहा, हथियार लहराए गए, लेकिन पाकिस्तान में आंदोलन क्यों नहीं हुआ? और क्या कनाडा में धीमे-धीमे कोई खालिस्तान बन रहा है?
दुनिया में कुछ धर्म ऐसे भी हैं जिनके पास अपना स्वतंत्र और एक्सक्लूसिव देश नहीं है। मसलन सिखों से कम आबादी वाले यहूदियों के पास अपना कोई देश नहीं था। उन्होंने अपना देश इजरायल 20वीं शताब्दी में बनाया। इस्लाम के खाते में अनेक मुल्क हैं। ईसाइयों के पास अनेक देश हैं। बौद्धों के खाते में भी देश हैं। हिंदुओं के पास भी एक-दो देश हैं। लेकिन सिखों के पास कोई मुल्क नहीं है।
वैसे तो जैनियों के पास भी कोई मुल्क नहीं है। बहाई धर्म के खाते में भी मुल्क नहीं है। लेकिन इन धर्मों में अलग मुल्क की चाह नहीं है। वैसे भी ईश्वर की कोई सीमा नहीं होती। फिर उसे किसी सीमा में बांधना या उसके आधार पर कोई सीमा निर्धारित करना कहां तक सही है? लेकिन ये सैद्धांतिक बाते हैं।
व्यवहार ये है कि लोकतांत्रिक से लोकतांत्रिक देश की व्यवस्था में भी धर्म एक फैक्टर होता है। जिन देशों में बहुसंख्यक समाज ने अपने धर्म को एक दायरे में सीमित कर दिया है, वो नहीं चाहते कि किसी दूसरे धर्म की वजह से उनकी व्यवस्था पर असर पड़े। इसलिए वो दूसरे धर्मों के असर को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।
खालिस्तान का काल्पनिक भू-भाग?
हमारे भारत में सपनों के कई देश हैं। अखंड भारत कुछ हिंदुओं का सपना है। मुगल भारत कुछ मुसलमानों का सपना है। और खालिस्तान कुछ सरदारों का सपना है। खालिस्तान का शाब्दिक अर्थ है खालसा की जमीन। खालिस्तानी सपने में भारत और पाकिस्तान दोनों की जमीन है। क्षेत्रफल के नजरिए से पाकिस्तान का पंजाब, भारत के पंजाब से लगभग चारगुना बड़ा है। खालिस्तान में पाकिस्तान का पंजाब है। भारत का पंजाब है। हरियाणा है। हिमाचल प्रदेश है और राजस्थान का बिकानेर है। शिमला और लाहौर काल्पनिक खालिस्तान की राजधानियां हैं। कुछ खालिस्तानी तो पाकिस्तान के पंजाब में स्थिति ननकाना साहिब को राजधानी बनाने की बात कहते थे।
खालिस्तान के इस काल्पनिक भूभाग की मौजूदा आबादी 20-22 करोड़ होगी। जिसमें सिखों की आबादी 10-12 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। पाकिस्तान में तो सिख गिनती के बचे हैं। जो हैं भारत में है या फिर कनाडा, यूरोप और अमेरिका में हैं।
इनसे पूछा जाए कि बाकी 88-90 प्रतिशत लोग क्या करेंगे? कहां जाएंगे? तो इनके पास उसका कोई जबाव नहीं होगा। लेकिन सपना तो सपना है। किसी को सपने में चांद को रोटी की तरह चबाने और चांदनी को ओढ़ कर सो जाने का मन करे तो इसमें क्या किया जा सकता है? सिर्फ हंसा जा सकता है।
खालिस्तान का बीज कब और कहां पड़ा?
आजादी की लड़ाई जब चरम पर पहुंची तो धार्मिक गोलबंदी भी शुरु हो गई थी। कट्टरपंथी मुसलमान कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी मानते थे। उन्होंने मुस्लिम लीग की स्थापना की। प्रथम विश्व युद्ध के पास सिखो के एक तबके ने अकाली दल की नींव रखी। इसके नेता थे तारा सिंह। आजादी जब करीब आयी तो मुसलमानों ने मुस्लिम बहुल देश बनाने की मांग रखी। और पाकिस्तान का विचार जमीन पर आया। उसी समय आजाद पंजाब का ख्याल भी सिर उठाने लगा। जब भारत का धर्म के नाम पर बंटवारा तय हो गया तो उस समय अकाली दल के नेताओं ने बंटवारे का विरोध किया। इसके पीछे मुख्य विचार यही था कि बंटवारे में पंजाब भी दो हिस्सों में बांटा जा रहा था। इससे आजाद पंजाब के सपना टूट सकता था। खैर बंटवारा हुआ और पंजाब का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। और सिखों का आजाद पंजाब का सपना टूट गया।
भारत में पंजाबी सूबा बनाने की मांग
आजादी के बाद 1950 के दशक में सिखों ने अपने लिए अलग प्रदेश बनाने के लिए आंदोलन किया। करीब डेढ़ दशक तक चले इस आंदोलन के बाद पंजाब का पुनर्गठन किया गया। कुछ हिस्सा हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया और हरियाणा को अलग किया गया। 1 नवंबर, 1966 को सिखों को भारत एक ऐसा सूबा मिल गया था जिसमें वो बहुसंख्यक हैं। लेकिन अलगाववादी धड़ों से संबंध रखने वाले बहुत से सिखों ने इसे एक पड़ाव के तौर पर देखा। इनकी मंजिल अलग प्रदेश नहीं, अलग देश है।
खालिस्तान के आंदोलन में पाकिस्तान की भूमिका?
अब सवाल उठता है कि खालिस्तान के आंदोलन में पाकिस्तान की क्या भूमिका है? ये बेहद रोचक सवाल है। पाकिस्तान में मुसलमानों ने सिखों का नरसंहार किया। उनकी जमीन हड़प ली। उनके घरों पर कब्जा कर लिया। लेकिन वही पाकिस्तान सिखों को खालिस्तान का सपना बेचता है। आपने हमारे देश के नवजोत सिंह सिद्धू जैसे क्रांतिकारियों को पाकिस्तानी हुक्मरानों के गले मिलते देखा होगा। ठीक ऐसे ही 1970 के दशक में खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ने वाले जगजीत सिंह चौहान को पाकिस्तानी हुक्मरान जुल्फीकार अली भुट्टो ने एक सपना दिखाया था। भुट्टो ने कहा था कि खालिस्तान मुल्क बना तो वो ननकाना साहिब को उसकी राजधानी बनवा देंगे।
जगजीत सिंह चौहान ने क्यों और कैसे – जैसे सवालों पर विचार नहीं किया। बस सपना लेकर उड़ने लगा। कभी लंदन तो कभी दिल्ली, तो कभी पंजाब दौड़ने लगा। फिर जरनैल सिंह बरार उर्फ भिंडरावाले जैसे कई और सरदार वो सपना लेकर उड़ने लगे। भारतीय पंजाब का डेढ़ दशक हिंसा में गुजर गया। नतीजा क्या रहा? जुल्फीकार अली भुट्टो मिट्टी में मिल गया। भिंडरावाले भी मिट्टी में मिल गया। और जगजीत सिंह चौहान भी इधर-उधर कूद कर कुछ साल अपनी दुकान चला कर मिट्टी में मिल गया। मगर सपना रह गया है। पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी आईएसआई आज भी उस सपने को हवा देती है। पैसा देती है। और कभी कभी भारत का कोई कट्टरपंथी सपना और पाकिस्तानी पैसा लेकर उड़ने लगता है।
खालिस्तान का कनाडा और ब्रिटेन के साथ क्या संबंध है?
कनाडा में सिखों की आबादी 770000 (सात लाख सत्तर हजार) है। ब्रिटेन में इनकी आबादी 520000 (पांच लाख बीस हजार) और अमेरिका में 280000 (दो लाख अस्सी हजार) है। इनमें से कुछ संपन्न हैं। पैसे वाले हैं। इन्हीं में से कुछ धर्म की राजनीति से जुड़े हैं। सबसे ज्यादा लेकिन ये अपनी जड़ों से कटे हुए लोग हैं। ऐसे लोग वास्तविकता में नहीं, ख्वाब में जीते हैं। जड़ों से कटे हुए लोगों की, घर से भगाए गए लोगों की ये त्रासदी होती है। वो एक काल्पनिक गांव, शहर में रहते हैं। वो लंदन में रहेंगे और बारिश होगी तो लाहौर की मिट्टी की खुशबू उनकी सांसों में भर जाएगी।
ये एक साइकोलोजिकल मसला है। इस बीमारी के शिकार मरीज से पूछिए कि आपका देश कौन सा है? तो जवाब मिलेगा – पंजाब। फिर पूछिएगा कि कौन सा पंजाब? भारत वाला या पाकिस्तान वाला। ये दोनों को अपना बताएंगे। अमृतसर के साथ लाहौर को अपना बताएंगे, ननकाना साहिब को अपना बताएंगे। फिर पूछिएगा कि लाहौर से तो मुसलमानों ने आपके पुरखों को मार कर भगा दिया था। फिर उनकी मुट्ठी भिंच जाएगी और वो कहेंगे कि हासिल करेंगे। ननकाना साहिब को आजाद कराएंगे। भारत और पाकिस्तान – दोनों से पंजाब वापस लेंगे। लड़ कर लेंगे।
फिर तो आंदोलन पाकिस्तान में भी होना चाहिए। फिर पाकिस्तान के हुक्मरानों और आईएसआई से पैसे लेकर भारत में अपने ही लोगों के खिलाफ हिंसा तो नहीं करनी चाहिए? लेकिन दिक्कत ये है कि पाकिस्तान में लड़ेगा कौन? पाकिस्तान में पंजाब है, लाहौर है, ननकाना साहिब है, पंजाबी है, लेकिन सरदार कहां हैं? बंटवारे से पहले पाकिस्तान में 6-7 प्रतिशत सिख थे। बंटवारे में भयानक धार्मिक हिंसा हुई। मुस्लिम बहुल आबादी वाले पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ-साथ सिखों का नरसंहार हुआ। ज्यादातर सिख और हिंदू पाकिस्तान से भारत चले आए। 6-7 प्रतिशत आबादी घट कर शून्य के करीब पहुंच गई।
इस वक्त पाकिस्तान में सिख धर्म के अनुयायी पांच-सात हजार ही हैं। अब इतनी कम आबादी है कि उन्हें मुसलमान सांस लेने दे रहे हैं यही बहुत है। जिस दिन अलग खालिस्तान मांगेंगे उसी दिन सिर तन से जुदा हो जाएगा। मतलब पाकिस्तान में कोई लड़ने वाला बचा नहीं है। सारे लड़ने वाले 1947 में बंटवारे के बाद भारत चले आए थे। आज पाकिस्तान के पंजाब में 12 करोड़ मुसलमान हैं और कुछ हजार सरदार। कैसे आजाद कराएंगे?
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी पता है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। लेकिन कुछ पैसों और कुछ बातों के जरिए यदि भारत में हिंसा भड़काई जा सकती है तो इसमें क्या बुराई है? इसलिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और उसके लोग, कनाडा और ब्रिटेन में बैठे उसके लोग कट्टरपंथी सरदारों को भड़काते रहते हैं। जमीन के कटे आदमी की मानसिकता बड़ी अजीब होती है। इस अजीब मानसिकता के ग्रसित कुछ लोग खालिस्तान के सपने को खरीद लेते हैं। उन्हें खाद-पानी मुहैया कराते हैं। मतलब आईएसआई की फंडिंग में ब्रिटेन और कनाडा के कुछ कट्टर सिख कारोबारियों का पैसा भी मिल जाता है। खालिस्तान का सपना समय-समय पर हवा में लहराने लगता है।
खालिस्तान आंदोलन का भविष्य क्या है?
आखिर में, खालिस्तानी आंदोलन का भविष्य क्या है? भारत का बंटवारा एक बार धर्म के आधार पर हो चुका है। उस बंटवारे के बाद जो भारत बचा है, उसके बहुसंख्यक हिंदू समाज ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की नींव रखी है। अगर दूसरी बार धर्म आधारित किसी भी बंटवारे की बात उठेगी तो इससे धर्मनिरपेक्ष भारत की अवधारणा खंडित होगी। इसलिए धर्म आधारित बंटवारे की बात किसी के भी हित में नहीं है। खासतौर से उन लोगों के हित में तो कतई नहीं है जो भारत में रह रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि मौजूदा स्वरूप में भारत का बंटवारा संभव नहीं है।
1947 के बंटवारे के बाद जब भारत के पंजाब में धार्मिक और भाषायी आबादी का संतुलन बिगड़ गया तो वहां भाषा के आधार पर अलग प्रदेश की मांग उठी। 1966 में पंजाब का पुनर्गठन हुआ। पंजाब और हरियाणा अलग हो गए। पंजाब में 40 प्रतिशत गैर सिख हैं। लेकिन मौजूदा स्वरूप में अस्तित्व में आने के बाद से एक भी गैर सिख मुख्यमंत्री नहीं बना है। जबकि भारत में दो प्रतिशत आबादी वाले सिख समुदाय का प्रधानमंत्री भी बना है। राष्ट्रपति भी बना है।
ऐसा इसलिए कि सिख समुदाय को बहुसंख्यक हिंदू समाज अपने परिवार का हिस्सा मानता है। उनके मंदिरों में मत्था टेकता है। वो अलग प्रदेश की मांग स्वीकार कर लेगा। सत्ता में हिस्सेदारी भी देने की बात कुबूल कर लेगा, लेकिन अलग देश खालिस्तान – एक ऐसी मांग है जो भारत का बहुसंख्यक समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा। और जहां तक लड़ कर खालिस्तान हासिल करने की बात है। ये संभव नहीं है। भारतीय स्टेट बहुत ताकतवर है। वो ऐसे किसी भी विद्रोह को कुचलने की हैसियत रखता है। कम शब्दों में यदि खालसा को राज करना है तो मित्रता और प्रेम के जरिए वो चाहें तो समूचे भारत पर राज कर सकते हैं। युद्ध के रास्ते उनको कुछ हासिल नहीं होगा।