वाराणसी: जाने-माने लेखक और आलोचक प्रोफेसर चौथीराम यादव का निधन हो गया है। वे 83 साल के थे। रविवार शाम उन्हें सांस लेने में ज्यादा तकलीफ होने लगी। इसके बाद परिजन उन्हें एक निजी अस्पताल में ले गए। अस्पताल में ही शाम करीब 6.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके प्रोफेसर चौथीराम यादव प्रख्यात हिंदी विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। चौथीराम यादव के निधन पर सोशल मीडिया के जरिए कई लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
चौथीराम यादव: जौनपुर के छोटे से गांव से सफर की शुरुआत
प्रोफेसर चौथीराम यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कायमगंज के एक गांव में हुआ था। यहां से निकलकर बीएचयू के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनने तक का उनका सफर न केवल सराहनीय है, बल्कि सहित्य और हिन्दी विषय के प्रेमियों के लिए प्रेरणादायी भी रहा। चौथीराम यादव 2003 में बीएचयू से सेवानिवृत होने के बाद भी अपने जीवन में लगातार सक्रिय बने रहे।
कथाकार एवं आलोचक देवेंद्र ने प्रोफेसर यादव को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, ‘डॉ.चौथीराम यादव जी का यूं चले जाना! यकीन करना मुश्किल हो रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जब हम लोग पढ़ते थे तब छात्रों में उनसे ज्यादा लोकप्रिय कोई दूसरा अध्यापक न था ।हम ढेर सारे लड़के उनके घर को अपना ही घर समझते थे। उनका रहन सहन जनतंत्र की एक श्रेष्ठ पाठशाला था। फिलहाल स्तब्ध हूँ।’
वहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने फेसबुक पर लिखा, ‘लोकधर्मी आलोचक प्रो. चौथी राम यादव अंतेवासी हो गए। यह बहुत दुखद है। उनकी आलोचकीय दृष्टि से साहित्य के विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि लोक और समाज भी दृष्टि संपन्न होंगे। मेरे प्रति उनकी आत्मीयता थी, यह मेरी थाती है। श्रद्धेय चौथी राम यादव जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।’
जानकार बताते हैं कि प्रोफेसर चौथीराम यादव का लेखन का ज्यादातर काम उनके सेवानिवृत होने के बाद ही लोगों के सामने आया। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे एक लेखक के साथ-साथ एक वक्ता और सामाजिक मुद्दों को लेकर समय-समय पर आंदोलनरत भी रहे।
देश भर में अकादमिक संगोष्ठियों से लेकर जनसभाओं और आन्दोलनों में उन्होंने कई भाषण दिए। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों की बात करने वाले प्रोफेसर चौथीराम यादव की शुरुआती शिक्षा जौनपुर की ही शिक्षण संस्थाओं में हुई। इसके बाद उन्होंने स्नातक-स्नातकोत्तर और पी-एच.डी. की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। बाद में साल 1971 से 2003 तक उन्होंने यहीं अध्यापन का भी काम किया।
प्रोफेसर चौथीराम यादव ने एक लंबा और सक्रिय जीवन जीया। अपनी अंतिम सांस तक वह अपने समय के जलते हुए सवालों पर कुछ लिखते और बोलते रहे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत बना रहेगा।#Chauthiram_Yadav #BHU #लेखक #आलोचक #हिंदी_साहित्य pic.twitter.com/yvmxvqNhd2
— Shekhar Chandra Mitra (@ShekharMitr) May 13, 2024
हजारी प्रसाद द्विवेदी और छायावाद पर गंभीर अकादमिक काम करने वाले चौथीराम यादव की पुस्तक ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी समग्र पुनरावलोकन’ हिन्दी के पाठकों के लिए विशेष रही। दलित-विमर्श, स्त्री-विमर्श और बहुजन समाज के सामाजिक-साहित्यिक-राजनीतिक मुद्दों पर बात करने वाले चौथीराम यादव के लेख भी हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं में खूब प्रकाशित होते रहे।