अहमदाबाद: जूना अखाड़ा ने अहमदाबाद में दलित वर्ग से आने वाले चार संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी है। इसके पहले प्रयागराज में जूना अखाड़ा के मौज गिरि आश्रम में अनुसूचित जाति के संत को ‘जगदगुरु’ की उपाधि प्रदान की गयी थी। जिन संतों को ये उपाधि दी गई उनमें महंत मंगल दास, प्रेम दास, हरि प्रसाद और मोहन बापू शामिल हैं। जूना अखाड़े के अध्यक्ष महंत प्रेम गिरि के अनुसार अखाड़े ने पिछले 10 वर्षों में वंचित समाज के 5,150 से अधिक साधु-संतों को जोड़ा है। संन्यास ग्रहण करने के बाद पुरानी जाति इत्यादि त्याग देना होता है। किसी सम्प्रदाय में दीक्षित हो जाने के बाद सभी संत एक समुदाय के सदस्य हो जाते हैं लेकिन इन संतों के दलित समाज से आने के ा
’52 आदिवासी संतों को बनाया जाएगा महामंडलेश्वर’
महंत प्रेम गिरि के अनुसार, ‘योग्य लोगों को महामंडलेश्वर बनाया जाएगा। यह उपाधि योग्यता के आधार पर दी जाती है न कि जाति के आधार पर। इसी वजह से अखाड़े ने आदिवासी और वंचित समाज के योग्य लोगों को महामंडलेश्वर बनाने का फैसला किया है। यह धर्मांतरण रोकने के अभियान का हिस्सा है।’ उन्होंने मंगलवार को कहा कि आने वाले महीनों में 52 आदिवासी संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि से सम्मानित करने के लिए चुना गया है। जूना अखाड़ा के अनुसार अब तक मध्य प्रदेश से 5, छत्तीसगढ़ से 12, झारखंड से 8, गुजरात से 15 और महाराष्ट्र से 12 लोगों को महामंडलेश्वर बनने के लिए चुना गया है।
इस आयोजन के मुख्य आयोजकों में से एक राजेश शुक्ला ने कहा कि 1,300 वर्षों में यह पहली बार है कि हिंदू धर्म में समानता की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए एससी और एसटी समुदायों के संतों को ‘महामंडलेश्वर’ की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है।
पहली बार अनुसूचित जाति से ‘जगदगुरु’
इससे पहले पिछले महीने की आखिर में पहली बार अनुसूचित जाति के किसी संत को ‘जगदगुरु’ की उपाधि प्रदान की गई। देश के 13 अखाड़ों में से एक जूना अखाड़े ने महामंडलेश्वर महेंद्रानंद गिरि को यह उपाधि प्रदान की। इसके साथ ही महेंद्रानंद के शिष्य कैलाशानंद गिरि को महामंडलेश्वर और राम गिरि को श्री महंत की उपाधि दी गई। ये दोनों संत भी अनुसूचित जाति से हैं।
इन संतों को सोमवार को प्रयागराज में जूना अखाड़े के सिद्ध बाबा मौज गिरी आश्रम में मंत्रोच्चार के बीच दीक्षा दी गई। स्वामी महेंद्रानंद मूल रूप से गुजरात के सौराष्ट्र राजकोट जिले के बनाला गांव के रहने वाले हैं। तीनों संत मूल रूप से गुजरात के रहने वाले हैं।
इस मौके पर जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के साथ श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्री महंत प्रेम गिरि, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्री महंत नारायण गिरि, महामंडलेश्वर वैभव गिरि ने उपाधि प्राप्त करने वाले संतों को माला पहनाई।
समारोह के दौरान महेंद्रानंद और कैलाशानंद को सिंहासन पर बैठाया गया और छतरियां भेंट की गईं। महंत प्रेम गिरि ने इस मौके पर कहा, ‘जूना अखाड़ा संन्यासी परंपरा में जाति और वर्ग भेदभाव को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। अन्य धर्मों द्वारा हिंदुओं के बीच मतभेद पैदा कर धर्मांतरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए इस परंपरा को और समृद्ध करने की आवश्यकता है।’
उन्होंने कहा कि महाकुंभ-2025 से पहले इसी दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए अनुसूचित जाति के संतों को जगद्गुरु, महामंडलेश्वर और श्री महंत जैसी महत्वपूर्ण उपाधियों से सम्मानित किया जा रहा है। उपाधि प्रदान करने के बाद सभी ने संगम में डुबकी लगाई और नगर देवता भगवान वेणी माधव के दर्शन किए।
जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जूना अखाड़े का निर्णय प्रेरणादायक है और जगद्गुरु की उपाधि मिलने के बाद सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा और समर्पण बढ़ा है। 2021 में हरिद्वार कुंभ में जूना अखाड़े ने महेंद्रानंद को महामंडलेश्वर की उपाधि दी थी।