28 मार्च, 1982…भारत की तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी लंदन से लौटी थीं। उनके मन में उथलपुथल मची हुई थी और वे खासकर अपनी छोटी बहू मेनका गांधी से नाराज थीं। नाराजगी की वजह थी ये थी कि मेनका ने इंदिरा गांधी के न चाहते हुए भी लखनऊ कंवेन्शन में हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम को मेनका गांधी के दिवंगत पति और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के करीबी माने जाने वाले अकबर अहमद ने आयोजित कराया था। मेनका की उस कार्यक्रम में मौजूदगी का मकसद था कि उन्हें सक्रिय राजनीति के लिए प्रोजेक्ट किया जाए। यह बात इंदिरा गांधी को अच्छी नहीं लगी थी जो राजनीति में संजय गांधी की जगह लेने के लिए राजीव गांधी को तैयार कर रही थी।
अमेठी की लड़ाई ने तोड़ा गांधी परिवार का घर!
उत्तर प्रदेश का अमेठी तब संजय गांधी के निधन से पहले तक उनका संसदीय क्षेत्र था। जानकार मानते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार का तब गढ़ रहे अमेठी को लेकर ही इस परिवार में फूट की स्थिति बनी। दरअसल, संजय गांधी के 23 जून 1980 को निधन के बाद अमेठी में 1981 में उपचुनाव कराए गए। इस उपचुनाव में संजय के बड़े भाई राजीव गांधी मैदान में उतरे थे और जीत भी हासिल करने में कामयाब रहे। राजीव गांधी के अमेठी जाने की बात मेनका गांधी को पसंद नहीं आई। संभवत: वे अपने पति की जगह लेने की महत्वाकांक्षा पाले हुए थीं। इसके बाद गांधी परिवार में जो कुछ हुआ वो नेशनल मीडिया में खूब और कई दिनों तक सुर्खियों में रहा।
असल में कांग्रेस कार्यकर्ता और पार्टी भी इंदिरा गांधी के बाद संजय गांधी को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देख रही थी। हालांकि, उनकी असमय मृत्यु ने दिशा बदल दी। राजीव गांधी जिनकी राजनीति में आने की बिल्कुल भी रूचि नहीं थी और वे अपने पायलट के करियर से खुश थे, उन्हें इंदिरा गांधी के निर्देश पर इस मैदान में उतरना पड़ा।
दूसरी ओर मेनका गांधी थी जो उस समय लगभग 25 साल की थीं और उनका मिजाज भी अपनी विनम्र जेठानी सोनिया गांधी से अलग था। इंदिरा गांधी भी सोनिया गांधी को पसंद करती थीं। वहीं मेनका गांधी शुरू से अपने पति वरूण गांधी के साथ कई राजनीतिक रैलियों और अभियानों में नजर आ चुकी थीं। कुल मिलाकर राजनीति का स्वाद वे अपने पति के साथ मिलकर अनुभव करती रही थीं और इसलिए उनकी रूचि भी इसमें थी।
राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई ने अपनी पुस्तक ’24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस’ में लिखा है कि 1981 में राजीव गांधी के अमेठी उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद मेनका गांधी ने ‘उन्हें बाहर करने की बहुत कोशिश की।’
इंदिरा गांधी से बढ़ने लगा था मेनका गांधी का मनमुटाव
किदवई ने अपनी किताब में पूर्व राजनयिक मोहम्मद यूनुस का उल्लेख किया है, जो गांधी परिवार के करीबी भी थे। उन्होंने बताया था कि चूंकि मेनका उस समय 25 साल की भी नहीं थीं जो भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु है, ऐसे में ‘वह चाहती थीं कि इंदिरा गांधी उनके लिए संविधान में संशोधन करें लेकिन प्रधानमंत्री ने मना कर दिया।’ इस निर्णय को मेनका ने अपने दिवंगत पति की राजनीतिक विरासत को हड़पने के प्रयास के रूप में देखा और इस तरह उनके और इंदिरा गांधी के बीच एक बड़ी दरार बनने लगी थी। यह मनमुटाव 28 मार्च, 1982 की रात को उस समय खुलकर सामने आ गया जब मेनका घर से निकल गईं।
पत्रकारों..फोटोग्राफर्स की भीड़ और आधी रात को घर से निकलीं मेनका गांधी
किताब ‘द रेड साड़ी’ में स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो लिखते हैं कि उस रात मीडियाकर्मियों और पुलिस कर्मियों के सामने, मेनका गांधी ने अपने करीब दो साल के बेटे वरुण के साथ दिल्ली में प्रधानमंत्री के 1, सफदरजंग रोड आवास को छोड़ दिया। जानकार बताते हैं कि इंदिरा गांधी लखनऊ कन्वेंशन से खासी नाराज थीं। वे नहीं चाहती थीं कि इसका आयोजन किया जाए लेकिन अकबर अहमद न केवल इस कार्यक्रम को आयोजित किया बल्कि मेनका गांधी भी इसका हिस्सा बनीं।
उस कार्यक्रम में तब 8 से 10 हजार लोग पहुंचे थे। इसमें कई कार्यकर्ता हथियारों के साथ भी पहुंचे थे। ऐसे में कई शीर्ष कांग्रेस नेताओं ने इस कार्यक्रम को एक तरह से सीधे-सीधे विरोध के तौर पर देखा और पार्टी विरोधी करार दिया। मेनका गांधी ने भी इसमें भाषण दिया। हालांकि उनकी ज्यादातर बातें ठीक से नहीं सुनी जा सकी क्योंकि वहां काफी शोरगुल था। हालांकि इंदिरा गांधी की अनिच्छा के बावजूद वहां उनकी मौजूदगी ही काफी कुछ कह रही थी।
जब इंदिरा ने मेनका गांधी को घर से निकल जाने के लिए कहा
लेखक जेवियर मोरो के अनुसार 28 मार्च, 1982 की सुबह जब इंदिरा गांधी घर पहुंची तो मेनका गांधी से उनका सामना हुआ। बिन कुछ पल गंवाए इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि ‘हम बाद में बात करेंगे।’ इसके बाद मेनका अपने कमरे में चली गईं और बहुत देर तक वहीं रहीं। बाद में एक नौकर उनके लिए ट्रे में खाना लेकर आया। मेनका ने तब उससे पूछा कि वह खाना लेकर कमरे में क्यों आया, इस पर शख्स ने जवाब दिया- श्रीमति गांधी (इंदिरा) ने मुझे आपसे यह बताने के लिए कहा है कि वह नहीं चाहतीं कि आप दोपहर के भोजन के लिए परिवार के बाकी सदस्यों के साथ शामिल हों।’
जेवियर मोरो के अनुसार, ‘मेनका जब नीचे कॉरिडोर में जा रही थीं, तो उनके पैर कांप रहे थे। सच्चाई से सामना करने का समय आ चुका था लेकिन जब वे नीचे गई तो कमरे में कोई नहीं था। उन्हें कुछ देर वहां इंतजार करना पड़ा जो इतना लंबा लग रहा था जैसे ये खत्म ही नहीं होगा। इसी दौरान वे अपने दातों से नाखून काटने लगीं जैसा वे बचपन में करती थीं। तभी उन्हें कुछ आवाजें सुनाई दीं और इंदिरा गांधी उनके सामने आईं। वे गुस्से में थीं और खाली पैर ही चली आई थीं। उनके साथ गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी और उनके सचिव आरके धवन थे। वो उन्हें वहां बतौर प्रत्यक्षदर्शी बनाने के लिए ले आई थीं।’
मोरो लिखते हैं कि मेनका गांधी की ओर उंगली उठाते हुए इंदिरा गांधी चिल्लाईं- ‘इस घर से अभी निकल जाओ। मैंने तुमसे कहा था कि लखनऊ में मत बोलो, लेकिन तुमने वही किया जो तुम चाहती थी और तुमने मेरी बात नहीं मानी! तुम्हारी एक-एक बात में जहर था। तुम्हे क्या लगता है कि मैं नहीं देख सकती? यहां से चले जाओ! अभी यह घर छोड़ दो! अपनी मां के घर वापस जाओ!’
मोरो के अनुसार मेनका गांधी ने तब अपनी बहन अंबिका को फोन लगाया। अंबिका इसके बाद वहां पहुंची और मेनका के सामाना को पैक कराने में मदद करने लगीं। तभी इंदिरा गांधी कमरे में आईं और कहा- ‘अभी बाहर चली जाओ…मैंने तुमसे कहा है कि अपने साथ कुछ मत ले जाओ।’
इस पर अंबिका ने कहा, ‘वह नहीं जाएगी! यह उसका घर है!’ गुस्से से तमतमाई इंदिरा गांधी इस पर जोर से चिल्लाई और कहा, ‘यह उसका घर नहीं है। यह भारत के प्रधानमंत्री का घर है!’
मोरो के मुताबिक उस समय रात के 11 बजे के बाद का कुछ समय हुआ होगा। मेनका लगभग आधी नींद में जा चुके दो साल के फिरोज वरुण को अपनी बाहों में लेकर प्रधानमंत्री आवास से बाहर आईं और अपनी बहन के साथ कार में बैठ गईं। इस दौरान वहां कई फोटोग्राफर मौजूद थे। मेनका ने उनकी ओर हाथ हिलाया। ये तस्वीर अगले दिन देश भर के अखबारों और कुछ विदेशों के अखबारों में भी छपी।
अमेठी में जब हुआ गांधी Vs गांधी का मुकाबला
मेनका गांधी अपनी सास के घर से बाहर आ चुकी थीं और उनका लक्ष्य साफ था। अमेठी के उपचुनाव में राजीव गांधी की जीत के एक साल बाद मेनका गांधी ने उस संसदीय क्षेत्र का दौरा किया और लोगों से मिलने-जुलने लगीं। एक तरह से वे राजीव गांधी को अब अगले चुनाव में अमेठी में चुनौती देने की तैयारी कर रही थीं। मेनका गांधी ने तब अकबर अहमद के साथ मिलकर राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की और 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से आम चुनाव भी लड़ा।
बहरहाल, जब अमेठी से मेनका चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थीं, तभी राजीव गांधी खेमे को समझ में आने लगा था कि मुकाबला आसान नहीं होगा। अमेठी में महिला वोटर्स की अच्छी खासी संख्या थी, ऐसे में राजीव गांधी ने तब सोनिया गांधी को भी उनके साथ कैंपेन करने के लिए आने को कहा। सोनिया भी इससे पीछे नहीं हटीं और अमेठी में राजीव गांधी के पक्ष में प्रचार में लगी रहीं।
बहरहाल, इन सबके बीच 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उन्हीं के बॉडीगार्ड्स ने हत्या कर दी। राजीव गांधी तब अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए गए और ये लगने लगा था कि लोगों की सहानुभूति भी उन्हें अब चुनाव में मिलेगी। यही हुआ भी और कांग्रेस को आम चुनाव में 514 में रिकॉर्ड 404 सीटें मिलीं। अमेठी में राजीव गांधी ने मेनका गांधी को 3.14 लाख मतों के अधिक अंतर से हराया। मेनका गांधी की जमानत तक जब्त हो गई और फिर उन्होंने कभी भी अमेठी से चुनाव नहीं लड़ा।
गांधी परिवार का हमेशा से गढ़ रहा है अमेठी, 2019 में छिटका
साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद भी अमेठी कांग्रेस का गढ़ बना रहा। उनकी मृत्यु के बाद गांधी परिवार के वफादार सतीश शर्मा 1991 और 1996 में इस सीट से दो बार चुने गए। सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी से चुनावी शुरुआत की। वहीं,
2004 में सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए अमेठी छोड़ दिया और कांग्रेस के दूसरे गढ़ रायबरेली चली गईं। राहुल गांधी ने 2019 तक यानी 15 साल तक लोकसभा में अमेठी का प्रतिनिधित्व किया। 2019 में उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी से करारी हार मिली।