देवभूमि उत्तराखंड में जंगल एक बार फिर आग की चपेट में हैं। नैनीताल के जंगलों में लगी आग इतनी भीषण हो चली है कि वायु सेना को उस पर काबू पाने के लिए लगाना पड़ा है। कई जगहों पर सेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर की मदद से काबू भी पाया गया है लेकिन इस बीच वन संपदा का नुकसान बहुत अधिक हो गया है। स्थानीय वन अधिकारियों के अनुसार नैनीताल, हलद्वानी और रामनगर के जंगल क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। आग लगने की असल वजहों का अभी ठीक-ठीक पता नहीं चल सका है लेकिन इसने जंगल के 400 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है।
उत्तराखंड के वन विभाग की ओर से हर जोर जारी होने वाले बुलेटिन के अनुसार रविवार को राज्य के कुमाऊं में पिछले 24 घंटे में जंगल में आग की 26 और गढ़वाल क्षेत्र में पांच घटनाएं सामने आईं। इससे 33.34 हेक्टेयर जंगल क्षेत्र प्रभावित हुआ। भारतीय सेना को कुमाऊं में भी आग पर काबू पाने के लिए लगाया गया था। उत्तराखंड में इस साल जंगल में आग की बड़ी घटना सबसे पहले पिछले सप्ताह की शुरुआत में नंदा रेंज में सामने आई थी और बाद में ये नीचे की ओर फैलती चली गई।
इससे पहले अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 तक हिमाचल प्रदेश में भारतीय वन सर्वेक्षण ने 2,050 आग की चेतावनी जारी की थी, जो पिछली सर्दियों की तुलना में सात गुना अधिक है। कुल्लू, मनाली, शिमला और किन्नौर से जंगल की आग की खबरें सामने आई थीं।
आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में एक नवंबर, 2023 से अब तक 575 छोटी-बड़ी घटनाओं की सूचना मिली है। इन घटनाओं से 689.89 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। यही नहीं, राज्य को 14 लाख रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। ऐसे में सवाल है कि भारत के जंगल आखिर क्यों आग की भट्टी बन गए हैं। जंगलों में आग नयी बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड सहित दूसरे राज्यों में ऐसे हादसों में काफी तेजी आई है और छोटी से छोटी आग भयावह रूप ले रही हैं। आखिर इसकी क्यों वजह है?
जंगल में आग क्यों लगते हैं?
विज्ञान कहता है कि कैसी भी आग के बने रहने और फैलने के लिए तीन स्थितियाँ मौजूद होनी चाहिए- ईंधन, ऑक्सीजन और एक ऊष्मा का स्रोत।’ जंगल के मामले में अगर बात करें तो ऑक्सीजन यहां प्रचुर मात्रा में होती है और ईंधन का काम यहां करतें हैं- सूखे पेड़-पत्ते, लकड़ियां, झाड़ियां, घास आदि। इन दो स्थितियों के मौजूदगी के बाद मौसम का शुष्क होना खासकर गर्मियों के मौसम में स्थिति को और चुनौतिपूर्ण बना देता है। इन सबके अलावा तेज हवाएं जंगल की आग को फैलने में और मदद करती हैं।
अब सवाल है कि जंगल में आग लगाता कौन है? भारत के पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वन अनुसंधान संस्थान की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 95 प्रतिशत जंगल की आग के मामलों के पीछे की वजह मनुष्य होते हैं। अक्सर चरवाहे या जंगल के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोग नई घास के लिए जमीन तैयार करने के मकसद से सूखी घास में आग लगा देते हैं। ऐसे में ध्यान नहीं देना, कूड़ा आदि जलाना या सिगरेट की एक चिंगारी भी जंगल में आग को भयावह रूप दे देती है।
कई बार कुछ शरारती तत्व जानबूझकर जमीन खाली करने के इरादे से भी एक हिस्से में आग लगाते हैं, जिसका खामियाजा वन के एक बड़े क्षेत्र को उठाना पड़ता है। इन सबके अलावा प्राकृतिक कारणों से भी कई बार आग लगती है। मसलन- सूखे पेड़ों या बांस के रगड़ से चिंगारी पैदा होती है तो कई बार पत्थरों से निकली चिंगारी या बिजली गिरने से भी आग लग जाती है जो जंगल के माहौल में तेजी से फैलती है। भारत में नवंबर से लेकर जून तक जंगल में आग के सबसे ज्यादा खतरे होते हैं।
उत्तराखंड के जंगल क्यों आग की चपेट में बार-बार आ रहे हैं?
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की हर दो साल में आने वाली एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 53,483 वर्ग किमी भौगोलिक क्षेत्र में से 24,305 वर्ग किमी वन क्षेत्र हैं। यह कुल क्षेत्र का 44.5 प्रतिशत है। इन वनों क्षेत्रों में भी 0.2 प्रतिशत को अत्यधिक आग के खतरे वाला बताया गया है। इसके अलावा 1.6 फीसदी में आग के खतरे को बहुत ज्यादा, 9.3 फीसदी को ज्यादा खतरा वाला बताया गया है। साथ ही 21.7% को आग के मध्यम खतरे और 67.25% को कम खतरे की श्रेणी में रखा गया है।
उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में पाइंस यानी चीड़ के पेड़ों की भरमार है। ये करीब 3.94 लाख हेक्टेयर में फैले हैं। इनकी पत्तियां सुखी और सूई की तरह होती हैं। जानकारों का मानना है कि आग के फैलने में चीड़ के पेड़ की भूमिका सबसे ज्यादा होती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के वन विभाग में जंगल की आग और आपदा प्रबंधन के नोडल अधिकारी निशांत वर्मा ने बताया, ‘उत्तराखंड का ग्रामीण समुदाय अपने सामाजिक-आर्थिक जीवन के लिए वनभूमि पर निर्भर है। नई घास के लिए जंगल के पास के इलाकों की जमीन को जलाने का पारंपरिक चलन, जंगल के पास कृषि अवशेषों को जलाने आदि जैसी आदतें आग के जंगल में फैलने के सबसे अहम कारण हैं।’
हालांकि, ऐसी चीजों को रोकने के लिए काननू भी है लेकिन इसका पालन नहीं होता। इसी महीने जंगलों में आग लगाते हुए तीन लोगों को वन विभाग के अधिकारियों ने पकड़ा है। उन पर भारतीय वन अधिनियम 1927 के अन्तर्गत वन अपराध में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा गया है।
रुद्रप्रयाग प्रभागीय वनाधिकारी के नेतृत्व में गठित वनाग्नि सुरक्षा दल की ओर से नरेश भट्ट नाम के शख्स को जंगल में आग लगाते हुए जखोली तहसील के तडियाल गांव से पकड़ा गया है। आरोपी ने बताया कि बकरियों की घास के लिए उसने जंगल में आग लगायी। वहीं उत्तरी जखोली के डंगवाल गांव में हेमन्त सिंह और भगवती लाल को जंगल में आग लगाते हुए मौके से पकड़कर जेल भेजा गया।
भारत के जंगलों में आग की समस्या
भारत में जंगल में आग की समस्या अक्सर नवंबर से जून के बीच देखी जाती है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की वेबसाइट बताती है कि भारत के लगभग 36 प्रतिशत जंगलों में अक्सर आग लगने का खतरा बना रहता है। सर्दियों की समाप्ति के बाद और गर्मी के मौसम के बीच शुष्क बायोमास की पर्याप्त उपलब्धता के कारण मार्च, अप्रैल और मई में आग की अधिक घटनाएं दर्ज की जाती हैं।
एफएसआई के अनुसार विशेष रूप से शुष्क वनों में भीषण आग का खतरा रहता है। एफएसआई के एक विश्लेषण में यह भी पाया गया कि पूर्वोत्तर भारत के जंगल में आग की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़, मध्य ओडिशा के कुछ हिस्सों और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के क्षेत्रों में भी अत्यधिक आग का खतरा रहता है।
भारत के जंगलों में क्यों बढ़ रही है आग की घटनाएं?
एफएसआई की 2021 की एक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 2013 से 2021 के बीच भारत के कुल वन क्षेत्र में 0.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं, सैटेलाइट द्वारा पता लगाई गई जंगल की आग की समस्या हालांकि इसी अवधि में 186 प्रतिशत तक बढ़ गई। विशेषज्ञ जंगल की आग में इस वृद्धि के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश में अभी भी जुटे हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख वजह माना जा रहा है। गर्म तापमान से भूमि सूख जाती है, जो जंगल की आग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा होती हैं। यही नहीं, आग लगने के बाद ये गर्मी और तेजी से बढ़ती है जिससे समस्या और बढ़ती जाती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन और भूमि-उपयोग में बदलाव जंगल की आग को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न, भूमि के इस्तेमाल के लिए जंगलों की अनियंत्रित छंटाई जैसी वजहें मिलकर भारत सहित एशियाई देशों के जंगल में आग के खतरे को तेजी से बढ़ा रहे हैं।
जंगल में लगने वाली आग पर काबू कैसे पा सकते हैं?
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय जंगल की आग को रोकने और नियंत्रित करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करता है। इसमें आग के बारे में शीघ्र पता लगाने के लिए वॉच टावरों का निर्माण, अग्नि निगरानीकर्ताओं की तैनाती, स्थानीय समुदायों की भागीदारी, और अग्नि लाइनों (फायरलाइंस) का निर्माण और रखरखाव शामिल है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की वेबसाइट के अनुसार दो प्रकार की फायर लाइन्स अभी प्रचलन में हैं – कच्चा फायर लाइन और पका फायर लाइनें। कच्चा फायर लाइन में झाड़ियों को हटाना आदि शामिल है। पक्के फायर लाइन के तहत आग को बढ़ने से रोकने के लिए जंगल को हिस्सों में बांट दिया जाता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार सैटेलाइट आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक और जीआईएस उपकरण आदि की मदद से भी अग्नि संभावित क्षेत्रों के लिए प्रारंभिक चेतावनी जारी की जाती है।
इसके अलावा सीमित और नियंत्रित स्थिति में जंगल के कुछ उन हिस्सों को जलाया जाता है, जिससे सूखे पेड़, झाड़ियों आदि को हटाया जाए और ताजे स्वस्थ पौधे और पेड़ उनका स्थान ले लेते हैं।