सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईवीएम के वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के पर्चे के साथ 100 प्रतिशत मिलान की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, साथ ही मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग से इस विकल्प की जांच करने को कहा कि क्या वीवीपैट पर्चियों पर पार्टी के चुनाव चिन्ह के अलावा कोई बारकोड लगाया जा सकता है, जिससे इसे मशीन से गिना जा सके।
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा, ‘तीन याचिकाएं दी गई हैं – कि हमें पेपर बैलेट सिस्टम पर वापस लौटना चाहिए, वीवीपैट मशीन की पर्चियों को मतदाताओं को सत्यापित करने और गिनती के लिए मतपेटी में डालने के लिए दिया जाना चाहिए, और वीवीपैट की 100% गिनती होनी चाहिए। हमने मौजूदा प्रोटोकॉल, तकनीकी पहलुओं और रिकॉर्ड पर मौजूद डेटा का हवाला देने के बाद इन सभी को खारिज कर दिया है।’
इस फैसले के साथ कोर्ट ने कुछ विशेष बदलाव करने का निर्देश भी दिया है। आईए जानते हैं कोर्ट ने क्या कहा है और इससे क्या बदलेगा और क्या कुछ नहीं बदलेगा।
चुनाव और वोटिंग की प्रक्रिया में क्या नहीं बदला है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसला मतदाताओं के लिए कोई बदलाव नहीं लेकर आया है। यानी पहले की तरह कोई भी वोटर मतदान केंद्र पर मत उसी तरह डाल सकेगा, जैसा पिछले चुनाव में वह करता आया है। ईवीएम का उपयोग मतदाता करेगा, जिसमें 100% सभी ईवीएम मशीनें वीवीपैट से जुड़ी होंगी। इसके अलावा, मौजूदा प्रावधानों के अनुसार ईवीएम की गिनती के साथ सत्यापन के लिए पांच रैंडम तरीके से चुने गए वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती भी की जाएगी। इस मामले में याचिकाकर्ता असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने वीवीपैट पर्चियों की 100% गिनती की मांग की थी।
क्या अब बदल गया है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चुनाव आयोग के लिए भी हालांकि कुछ विशेष नहीं बदला है। हालांकि शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को चुनाव के बाद कुछ नई प्रक्रियाएं अपनाने का निर्देश जरूर दिया है।
इसमें पहली बात ये है कि अदालत ने चुनाव आयोग को परिणाम घोषित होने के बाद भी 45 दिनों तक सिंबल लोडिंग यूनिट्स (एसएलयू) को सील रखने और डेटा को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया है। एसएलयू दरअसल मेमोरी यूनिट्स हैं जिसे सबसे पहले कंप्यूटर से जोड़कर उस पर चुनाव चिन्ह लोड किए जाते हैं, और फिर वीवीपैट मशीनों पर उम्मीदवारों के चुनाव चिन्ह को लोड करने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इन एसएलयू को ईवीएम की तरह ही खोला और जांचा जाएगा।
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार हर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में वीवीपैट पर चुनाव चिन्ह को लोड करने के लिए एक से दो एसएलयू का उपयोग किया जाता है। सूत्रों ने कहा कि इन्हें अब 45 दिनों तक संग्रहीत किया जाएगा ताकि यदि कोई विवाद की स्थिति आए तो उसका निपटारा हो सके।
इसके अलावा उम्मीदवार ईवीएम के सत्यापन की मांग कर सकते हैं। यह पहली बार है। कोर्ट ने कहा है कि दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवार प्रत्येक संसदीय क्षेत्र के प्रति विधानसभा क्षेत्र में 5% ईवीएम के जले हुए मेमोरी सेमीकंट्रोलर के सत्यापन की मांग कर सकते हैं। यह सत्यापन उम्मीदवार द्वारा लिखित अनुरोध किए जाने के बाद किया जाएगा और इसे ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों की एक टीम द्वारा किया जाएगा।
फैसले के मुताबिक उम्मीदवार या प्रतिनिधि मतदान केंद्र या सीरियल नंबर से ईवीएम की पहचान कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि सत्यापन के लिए अनुरोध परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर करना होगा और उम्मीदवारों को खर्च वहन करना होगा, जो ईवीएम के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ के सबूत पाए जाने पर वापस कर दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने और क्या सलाह दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम निर्देशों के साथ चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि वह इस विकल्प को देख सकता है कि क्या वीवीपैट पर्चियों की गिनती के लिए इंसानों के बजाय क्या मशीन की मदद ली जा सकती है। सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया गया कि वीवीपैट पर्चियों पर बारकोड मुद्रित हो सकता है, जिससे मशीन से इसकी गिनती करना आसान हो जाएगा। अदालत ने कहा कि चूंकि यह एक तकनीकी पहलू है जिसके मूल्यांकन की आवश्यकता है, इसलिए उसने किसी भी तरह की टिप्पणी करने से परहेज किया।