मध्य प्रदेश के राजगढ़ लोकसभा सीट से सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह 33 साल बाद चुनावी मैदान में हैं। उनका सीधा मुकाबला भाजपा के रोडमल नागर से है जो 2014 और फिर 2019 में यहां से सांसद बने थे। नागर इस सीट से क्या जीत की हैट्रिक बना पाएंगे, यह बड़ा सवाल है। वहीं, कांग्रेस के सामने अपने गढ़ पर फिर से कब्जा जमाने की चुनौती है। यही वजह है कि कांग्रेस ने इस सीट से 77 साल के दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है।
इस सीट पर कई बार चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिलते रहे हैं। यहां निर्दलीय भानु प्रकाश सिंह 1962 में जीते थे तो वहीं, भारतीय जनसंघ ने 1967 और 1971 के चुनाव में यहां पर कब्जा जमाया था। 1977 और 1980 में जनता पार्टी के खाते में यह सीट गई थी लेकिन इसके बाद ज्यादातर मौकों पर यह सीट कांग्रेस के पास गई। 1984 में पहली बार दिग्विजय सिंह यहीं से जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद आखिरी बार वे इस सीट से 1991 में चुनाव लड़े थे और जीतने में भी कामयाब रहे। बाद के वर्षों में (1994, 1996, 1998, 1999, 2004) में दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट पर जीत हासिल करते रहे। इसमें भी 2004 का चुनाव लक्ष्मण ने भाजपा के टिकट पर लड़ा था। इसके पिछले चार चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था।
राजगढ़ लोकसभा सीट के बारे में
इस लोकसभा क्षेत्र की पहचान राघौगढ़ राजपरिवार से भी होती है। दिग्विजय सिंह इसी परिवार से आते हैं। यहां से अधिकांश चुनाव राघौगढ़ राजपरिवार या उनका उतारा प्रत्याशी ही जीतता रहा है। साल 1948 में राजगढ़ जिले का गठन हुआ। पहले इसका नाम झंझारपुर हुआ करता था। साल 1962 में जब राजगढ़ संसदीय क्षेत्र बना तो नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह एक साथ निर्दलीय लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े और जीत हासिल करने में कामयाब रहे। बाद में उन्होंने विधानसभा सीट छोड़ दी थी।
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में चाचौड़ा, राघौगढ़, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सुसनेर और सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से छह पर भाजपा का कब्जा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से अधिक सीट मिलने की वजह से माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भी उसका जादू चलेगा। हालांकि, कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबला रोचक कर दिया है। 2019 के चुनाव में दिग्विजय सिंह भोपाल से चुनावी मैदान में थे और उन्हें भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर से करारी हार का सामना करना पड़ा था। अब हालांकि दिग्विजय अपने गढ़ में ताल ठोक रहे हैं तो कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ी हुई हैं।
भाजपा के रोडमल नागर को हरा पाएंगे दिग्विजय सिंह
रोडमल नागर यहां पिछले 10 सालों से सांसद है। ऐसे में एंटी इनक्मबेंसी का माहौल उनके खिलाफ जा सकता है। हालांकि, दिग्विजय सिंह के लिए राह फिर भी आसान नहीं होगी। भाजपा की ओर से जीत पक्की करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद, राम मंदिर और हिंदुत्व के मुद्दे भी खूब उछाले जा रहे हैं।
नागर की बात करें तो उनका जन्म मध्य प्रदेश के रायपुरिया में हुआ था। उज्जैन के माधव साइंस कॉलेस से बीएससी करने वाले नागर का आरएसएस से पुराना नाता है। इसी वजह से 2014 में उन्हें पहली बार चुनावी मैदान में उतरने का मौका मिला और वे राजगढ़ में कांग्रेस के नारायण सिंह को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे।
रोडमल नागर को 2014 के लोकसभा चुनावों में 5,96,727 वोट मिले थे। उन्होंने 3,67,990 वोट पाने वाले कांग्रेस प्रत्याशी नारायण सिंह तब को बड़े अंतर से हराया था। वहीं, 2019 के चुनावों में रोडमल के सामने कांग्रेस की मोना सुस्तानी खड़ी थी और उन्हें बीजेपी प्रत्याशी ने 4 लाख से भी ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया। मोना सुस्तानी पिछले साल भाजपा में शामिल हो गई थीं। बहरहाल, रोडमल के रिकॉर्ड को देखा जाए तो उनसे पार पाना दिग्विजय सिंह के लिए बहुत आसान भी नहीं होगा। राजगढ़ में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख है। यहां 7 मई को वोट डाले जाएंगे।