मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा को गुजरात की सूरत सीट पर जीत मिल गई है। पार्टी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित होने वाले भाजपा के पहले सांसद बने हैं। मुकेश दलाल के सभी प्रतिद्वंद्वी अब मैदान से बाहर हो गए हैं। जहां कांग्रेस उम्मीदवार का फॉर्म रिटर्निंग अफसर ने खारिज कर दिया, वहीं इस सीट के अन्य आठ उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया।
क्या हुआ?
सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी को अपने तीन प्रस्तावकों को चुनाव अधिकारी के सामने पेश करना था लेकिन एक को भी वे पेश नहीं कर पाए, जिसके बाद उनका नामांकन फॉर्म रद्द कर दिया गया। कुंभानी के नामांकन फॉर्म में तीन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में गड़बड़ी को लेकर बीजेपी ने सवाल उठाए थे। सूरत से कांग्रेस के स्थानापन्न उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन फॉर्म भी अमान्य कर दिया गया, जिससे पार्टी चुनाव मैदान से बाहर हो गई। इसके बाद बसपा समेत अन्य आठ उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया। जिसके बाद मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए।
1951-52 और 1957 में पांच-पांच उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए
लोकसभा के चुनाव इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई पार्टी के उम्मीदवार आम चुनाव में निर्विरोध जीतते रहे हैं। लेकिन भाजपा के किसी उम्मीदवार की यह पहली निर्विरोध जीत है। आंकड़ों की बात करेंं तो 1951-52 में पहला आम चुनाव हुआ था जिसमें के पांच सांसद निर्विरोध चुने गए थे। आनंद चंद (बिलासपुर), टी.ए. रामलिंगम चेट्टियार (कोयंबटूर), मेजर जनरल एच.एस. हिम्मासिंहजी (हलार, सौराष्ट्र), टी. सांगना (रायगड़ा-फुलबनी) और यादगीर, हैदराबाद से कृष्णा चार्य जोशी।
इसके बाद 1957 में फिर से पांच उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए जिनमें- मंगरूबाबू उइके (मंडला, मध्य प्रदेश), एच.जे. सिद्दनंजप्पा (हसन, मैसूर), डी. सत्यनारायण राजू (राजमुंदरी, आंध्र प्रदेश), संगम लक्ष्मी बाई (विकाराबाद, आंध्र प्रदेश) और दारांंग (असम) से चंद्र भगवती शामिल हैं। 1962 में केवल तीन लोकसभा सदस्य निर्विरोध जीते थे। इनमें पूर्व वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णमाचारी भी शामिल थे जो मद्रास राज्य के तिरुचेंदूर से जीते थे। 1962 के अन्य दो निर्विरोध विजेताओं में हरेकृष्ण महताब (अंगुल, ओडिशा) और मनबेंद्र शाह (टिहरी गढ़वाल, उत्तर प्रदेश) शामिल थे।
1967 के चौथी लोकसभा चुनाव में लिए पांच सदस्य चुने गए, जिनमें दो जम्मू और कश्मीर से थे। एमएस. कुरेशी अनंतनाग से जीते जबकि लद्दाख के प्रमुख लामाओं में से एक कुशोक बाकुला रिनपोछे निर्विरोध चुने गए थे। नागालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री एस.सी. जमीर भी नागालैंड से निर्विरोध जीते थे। वे नेशनलिस्ट ऑर्गनाइजेशन (एनएनओ) के टिकट पर चुनाव लड़े थे और निर्विरोध जीतकर राज्य के पहले लोकसभा सांसद बने थे। कोकराझार लोकसभा सीट से पहले सांसद आर. ब्रह्मा ने भी निर्विरोध जीत हासिल की थी।
1971 में निर्विरोध जीतने वाले सांसदों में कमी आई
1971 में निर्विरोध जीतकर संसद में जाने वाले सदस्यों में गिरावट आई। इस साल केवल एक सदस्य ने निर्विरोध जीत हासिल की थी, जो लक्षद्वीप से पदनाथ मोहम्मद सईद थे। छह साल बाद, लोकसभा में अरुणाचल प्रदेश के शुरुआती सांसदों में से एक, कांग्रेस के रिनचिन खंडू खिमरे ने निर्विरोध जीत हासिल की, जबकि सिक्किम के पहले लोकसभा सांसद, छत्र बहादुर छेत्री भी उसी साल निर्विरोध चुने गए थे।
लोकसभा चुनावों में सबसे हाई-प्रोफाइल निर्विरोध जीत में से एक 1980 में आई, जब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर में अपनी सीट निर्विरोध जीती। वहीं अगली निर्विरोध जीत आठ साल बाद 1989 में हुई। नेशनल कॉन्फ्रेंस के मोहम्मद शफी भट ने अब्दुल्ला की उपलब्धि को दोहराया और उसी तरीके से उसी सीट पर जीत हासिल की। 1989 के बाद 2012 में कन्नौज से सपा प्रत्याशी डिंपल यादव निर्विरोध विजयी हुई थीं।