लोक सभा चुनाव के लिए प्रचार लेकर रविवार को मुजफ्फरनगर स्थित जीआईसी मैदान में मयावती जनसभा करने पहुंची। इस दौरान मायावती ने कहा कि बसपा अकेले चुनावी मैदान में है और बड़ी जीत हासिल करेगी। साथ ही एक और बड़ी बात मायावती ने कही। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग लंबे समय से अलग राज्य की मांग करते आ रहे हैं। अगर केंद्र में वह मजबूत स्थिति में आती हैं तो पश्चिमी यूपी को एक अलग राज्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से बसपा के प्रजापति का मुकाबला भाजपा के संजीव कुमार बालियान और सपा के हरेंद्र सिंह मलिक से है। बहरहाल, पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने की मायावती की घोषणा ने एक बार फिर यूपी को तीन या चार हिस्से में बांटने की पुरानी चर्चा की याद दिला दी है।
यूपी का एक बंटवारा 9 नवंबर 2000 को किया जा चुका है। इसके बाद भारत का 27वां राज्य उत्तराखण्ड बना था। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश को कुछ और हिस्सों में बांटने की बात बार-बार कही जाती है। इसकी मांग भी कुछ नेताओं या पार्टियों द्वारा की जाती रही है। पिछले साल तो भाजपा नेता और मुजफ्फरनगर से पार्टी के उम्मीदवार संजीव बालियान ने ही जोर-शोर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मांग रखी थी।
मायावती सरकार ने 2011 में बंटवारे का प्रस्ताव किया था पारित
बहुजन समाज पार्टी प्रमुख और यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने यूपी के साल 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पास किया था। 21 नवंबर, 2011 को इस संबंध में प्रस्ताव भारी हंगामे के बीच यूपी विधानसभा में बिना चर्चा के बसपा सरकार द्वारा पास कराया गया था। इसमें कहा गया था यूपी को चार राज्यों- अवध प्रदेश, बुंदेलखण्ड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश में बांटा जाना चाहिए। उस समय विपक्षी दलों ने मायावती के इस फैसले को चुनावी शिगूफा करार दिया था।
बहरहाल, यूपी सरकार की ओर से तब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भी भेजा गया था ताकि आगे की कार्यवाही की जाए। हालांकि, इसमें स्पष्टीकरण की मांग करते हुए यूपीए सरकार की ओर से लौटा दिया गया था। बहरहाल, साल 2012 में मायावती यूपी का चुनाव हार गईं और सत्ता में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार आई। सपा मुख्य तौर पर यूपी के बंटवारे का विरोध करती रही और इस तरह यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
राज्य का बंटवारा कैसे किया जाता है?
किसी भी राज्य के बंटवारे से पहले संबंधित राज्य के विधानसभा को बंटवारे से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित करना होता है। इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। केंद्र तक बात पहुंचने के बाद गृह मंत्रालय इस मुद्दे को देखता है विचार करता है। इसके बाद प्रस्ताव को कानून मंत्रालय के पास भेजा जाता है।
कानून मंत्रालय के सुझाव और विचार के बाद इसे कैबिनेट को भेजा जाता है। संसद के दोनों सदनों में रखने से पहले केंद्रीय कैबिनेट इसे मंजूरी देती है। राज्य के बंटवारे के लिए राज्यसभा और लोकसभा को दो-तिहाई बहुमत के साथ इस प्रस्ताव को पारित करना होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक संविधान संशोधन होता है जो ‘नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन’ से संबंधित है।
संसद की मंजूरी के बाद नए राज्य के प्रशासन के लिए आवश्यक राशि, तमाम पहलुओं पर विचार आदि के लिए अधिकारियों की एक टीम भेजी जाती है। सबसे पहले सीमा का निर्धारण होता है। इसके अलावा प्रशासनिक और पुलिस कैडर की स्थापना, राजस्व दस्तावेजों का हस्तांतरण, नए कार्यालय भवनों की स्थापना आदि तमाम बुनियादी ढांचों पर काम होता है। सरकारी कर्मचारियों को दोनों राज्यों के बीच चयन करने का विकल्प दिया जाता है। साथ ही कर राजस्व का बंटवारा, धन का हस्तांतरण जैसे तमाम पेचिदगी वाले कामों को भी निपटाया जाता है।