सेंट्रल दिल्ली के शाहजहां रोड में जूनियर मॉडर्न स्कूल से चंदेक कदम आगे भारत सरकार के आला अफसरों की कॉलोनी के उस ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट से घुंघरुओं के बजने की आवाजें भी नहीं आती। यकीन नहीं होता कि अब कथक के पर्याय बन गए गुरू बिरजू महाराज यहां नहीं रहते। यह कल्पना से परे की स्थिति है कि अब बिरजू महाराज अपने फ्लैट में नहीं मिलेंगे। बिरजू महाराज यहां आधी सदी से भी अधिक समय तक रहे थे। उनके शिष्यों और प्रशंसकों के लिए उनका फ्लैट किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं था। बिरजू महाराज का असली नाम बृजमोहन मिश्र था। उनका 2022 में निधन हो गया था।
बिरजू महाराज के इसी फ्लैट में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, उस्ताद जाकिर हुसैन, सत्यजीत रे,पंडित रवि शंकर, संजय लीला भंसाली, कमलहासन,माधुरी दीक्षित और दूसरी तमाम कला की दुनिया की शख्सियतें आया करती थीं।
उस्ताद जाकिर हुसैन का एक चित्र बिरजू महाराज के ड्राइंग रूम में लगा हुआ था। उसमें उस्ताद जाकिर हुसैन और बिरजू महाराज खिलखिला रहे हैं। उसे देखकर बिरजू महाराज कहते थे, उस्ताद जाकिर हुसैन से बेहतर तबला वादक अब कोई पैदा नहीं होगा। ये दोनो ही अपनी-अपनी कलाओं के महारथी थे, और जब वे साथ में प्रस्तुति करते, तो एक जादुई माहौल बन जाता था। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और पंडित रवि शंकर की बात छिड़ने पर गुरु जी के चेहरे पर उदासी छाने लगती है। कुछ पल वो मौन मुद्रा में आ जाते थे।
बिरजू महाराज ने `डेढ़ इश्किया` फिल्म में माधुरी दीक्षित के नृत्य का निर्देशन किया था। तब माधुरी इधर शाहजहां रोड के फ्लैट में कई बार आई। बिरजू महाराज बताते हैं कि माधुरी में सीखने की गजब की ललक है। उन्होंने माधुरी को `देवदास` फिल्म के लिए भी तैयार किया था। बिरजू महाराज ने सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में दो गानों की कोरियोग्राफी की थी।
बिरजू महाराज के फ्लैट के पास लंबे समय से कपड़े प्रेस करने वाले बबलू कहते हैं कि “उन्हें हम अपने बचपन से देख रहे थे। वे हमारा हमेशा ख्याल रखते थे। हर संकट में सहारा देते थे।” स्वयं में संस्था बिरजू महाराज चोटी के कथक-गुरु होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय महत्व के कथक-नर्तक तथा नृत्य-रचनाकार (कोरियोग्राफर) भी रहे। वह समर्थ शास्त्रीय गायक भी थे और अपने ही ढंग के भावपूर्ण-लयनिबद्ध कवि भी तथा तबला, सितार, सारंगी, सरोद सहित अनेक वाद्यों को भी वह पूरी कुशलता से बजा लेते थे- किन्तु सबसे बढ़कर वह एक आला इंसान थे: स्नेहिल, मिलनसार, मनुष्यता से भरपूर, घमंड से दूर, पानी-पानी स्वभाव वाले, आत्मीयता से लबरेज़।
कौन लाया था बिरजू महाराज को दिल्ली
बिरजू महाराज को दिल्ली उनके चाचा और शिखर कथक गुरु शम्भू महाराज 1950 के दशक में लेकर आए थे। वे अपने चाचा के करोल बाग एरिया के पूसा रोड के मकान नंबर 7/36 में भी कुछ समय रहे थे। यहां पर रहते हुए बिरजू महाराज अपने चाचा से कथक की बारीकियों को सीख भी रहे थे और भारतीय कला केन्द्र में सीखा भी रहे थे। तब भारतीय कला केन्द्र कोटला रोड में बाल भवन के पास माता सुंदरी रोड पर हुआ करता था।
दिल्ली में बिरजू महाराज की पहली शिष्याओं में से एक शोभा दीपक सिंह थीं। शोभा दीपक सिंह के पिता लाला चरतराम और सुमित्रा चरत राम ने भारतीय कला केन्द्र और श्रीराम कला केन्द्र स्थापित किया था। वे इस बात को बार-बार कहते थे कि दिल्ली में उन्हें डॉ. कपिला वात्स्यायन का भी संरक्षण मिला।
डॉ. कपिला वात्स्यायन भारतीय शास्त्रिय संगीत,नृत्य,कला,वास्तुकला की उदभट विद्वान थीं। कपिला जी ने अपने जीवनकाल में जितने सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित किए उतने अन्य किसी ने नहीं किए। आजाद भारत की सांस्कृतिक नीति बनाने में कमलादेवी चटोपधाय, पुपुल जयकर और कपिला जी ने अविस्मरणीय योगदान दिया। देश इन तीनों का सदैव कृतज्ञ रहेगा।
पहले बताओ क्या नाश्ता करोगे?
कथक के संसार से हटकर बात करें तो गुरु जी के घर के ड्राइंग में पहुंचते ही वे वहां बैठे मिलते थे। आपका गर्मजोशी से स्वागत करते। आप से पूछते, “ पहले बताओ क्या नाश्ता करोगे?”
इससे पहले कि आप कुछ कहे, वो आवाज दे देते, “अरे, मिठाई भिजवाओं। पहले मिठाई खाएंगे, उसके बाद करेंगे बात।” उन्हें दिल्ली का बरसात का मौसम बहुत दिलकश लगता था। बारिश में पहले तो वे नहाते भी थे। वे बचपन और जवानी में छप-छप पानी के बीच चलने के सुख को याद करते थे।
कहते थे, “दिल्ली की हरियाली में बारिश का आनंद दोगुना बढ़ जाता है।” एक दौर में वे मूसलाधार बारिश में लोधी रोड और इंडिया गेट घूमने निकल जाते थे। दिल्ली को भी खूब चाहते हैं। इस शहर ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया था।
कैसे बना कथक से रिश्ता
कथक से कैसे रिश्ता बना? ड्राइंग में रखे अपने दीवान से सटी दिवार पर पीठ को टिकाते हुए बिरजू महाराज बताने लगते थे, “मेरा जन्म लखनऊ के एक बड़े कथक घराने में हुआ। पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज का ख़ासा नाम था। मैं केवल नौ वर्ष का था, पिता जी गुज़र गए। एक वक़्त घर में नौकर थे, पर पिताजी के देहांत के बाद कर्ज़ और ग़रीबी का दौर झेला। उन दिनों चाचा दिल्ली ले गए। इस तरह मेरी कथक यात्रा शुरू हुई”।
मिष्ठान प्रेमी गुरू जी
नृत्य सम्राट’ कहे जाने वाले बिरजू महाराज घनघोर मिष्ठान प्रेमी थे। उनके घर में बंगाली मार्केट की प्रसिद्ध मिठाई की दुकानों की भांति-भांति की मिठाइयों का पर्याप्त स्टाक रहता था। हरेक अतिथि के लिए भोजन, नाश्ता और मिष्ठान का सेवन अनिवार्य होता था। मना करने पर गुरू जी की नाराजगी झेलने की किसी में हिम्मत नहीं थी। गुरूजी ने अपने घर के सदस्यों और सेवकों को निर्देश दे रखा था कि उनके घर के गेट कम से कम समय के लिए बंद होंगे। वे देर रात एक-डेढ़ बजे बंद होते और भोर में खुल जाते। तब ही गुरुजी का नृत्य और संगीत का अभ्यास प्रारंभ हो जाता। उस समय से उनके कुछ शिष्य भी आने लगते।
पसंद था अमीनाबाद का पान
बिरजू महाराज की आंखों में यादों का सागर लहराने लगता था लखनऊ का जिक्र आते ही। उन्हें अमीनाबाद का मेहरोत्रा पान वाला याद आता था। वहां की रबड़ी मलाई भी उन्हें खूब याद आती थी। वे दिल्ली और लखनऊ जान निसार थे।
कथक की लोकप्रियता में बिरजू महाराज का योगदान
बिरजू महाराज कथक के एक महान नर्तक, संगीतकार और शिक्षक थे। कथक में उनका योगदान अद्वितीय और बहुआयामी था। पर वे हमेशा यह कहते थे “मेरा कोई खास योगदान नहीं है। सब ईश्वर मेरे से करवाता है।” कला मर्मज्ञ प्रेम भूटानी कहते हैं कि बिरजू महाराज ने कथक में अभिनय (भावनात्मक अभिव्यक्ति) पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने अपनी नृत्य प्रस्तुतियों में भावनाओं को जीवंत रूप से व्यक्त करने की कला को विकसित किया। उन्हें लय और ताल की गहरी समझ थी, जिसका उपयोग वे अपनी प्रस्तुतियों में विविधता और जटिलता लाने के लिए करते थे।
कथक के जानकार यह भी कहते हैं कि उन्होंने कथक की पारंपरिक शैली को बनाए रखते हुए, उसमें समकालीन तत्वों को जोड़ा, जिससे यह अधिक प्रासंगिक और आकर्षक बना।
बिरजू महाराज सिद्ध गायक भी थे। वे जब मूड में होते तो अपने घर में ही कोई गीत सुनाने लगते। वे अपनी प्रस्तुतियों में स्वयं गाते थे, जिससे दर्शकों को एक अलग अनुभव मिलता था।
शिष्यों की फौज
बिरजू महाराज के घर में हमेशा उनके शिष्यों की भीड़ लगी रहती थी। उन्होंने कथक को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रतिभाशाली शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जो आज इस कला को विश्व स्तर पर प्रस्तुत कर रहे हैं। उनकी शिक्षण शैली सरल और प्रभावी थी, जिससे उनके शिष्यों को नृत्य की बारीकियों को समझने में मदद मिलती थी। इसके अलावा, उनके शिष्यों में कई विदेशी भी होते थे। बिरजू महाराज ने दुनिया भर में प्रदर्शन करके कथक को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
बिरजू महाराज के साथ बातचीत के दौरान शम्भू महाराज का जिक्र आ ही जाता था। शम्भू महाराज को वे अपना गुरु मानते थे। वे बताते थे कि शम्भू महाराज जी के पूसा रोड वाले घर में पंडित भीसमेन जोशी, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित जसराज जैसे भारतीय संगीत के मर्मज्ञ नियमित रूप से आते थे और उनमें रात भर चर्चाएं चलती। ये घर दिल्ली में संगीत और ऩृत्य की काशी हो गया था।
घुंघरू की झंकार
बिरजू महाराज को पता था कि कथक नृत्य में घुंघरू की झंकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। दर्शक तबले की थाप के साथ घुंघरू तालबद्ध पदचाप व विहंगम चक्कर पर मोहित हो जाते हैं। वे नृत्य के इस पक्ष में अतुल्नीय थे। बिरजू महाराज के फ्लैट के आसपास से गुजरते हुए उनके ना जाने कितने चाहने वाले और शिष्य उन्हें याद करके उदास हो जाते होंगे।