नई दिल्लीः मणिपुर में बुधवार को एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला। यहां जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। इसके कुछ ही घंटे बाद पार्टी ने इसे नकार दिया और स्पष्ट किया कि वह भाजपा सरकार का समर्थन जारी रखे हुए है। साथ ही पार्टी ने मणिपुर इकाई के अध्यक्ष क्षेत्रमयुम बीरेन सिंह को भी बर्खास्त कर दिया है।
पार्टी का अनुशासनहीनता पर सख्त रुख, भाजपा के साथ गठबंधन बरकरार
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि मणिपुर इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व को बिना सूचित किए यह कदम उठाया। उन्होंने पत्र को भ्रामक बताते हुए कहा, “यह पूरी तरह से राज्य इकाई का स्वतंत्र निर्णय था। पार्टी ने इसे अनुशासनहीनता माना और अध्यक्ष को उनके पद से हटा दिया गया।”
प्रसाद ने जोर देकर कहा, हमने एनडीए का समर्थन किया है और मणिपुर में एनडीए सरकार को हमारा समर्थन भविष्य में भी जारी रहेगा। मणिपुर इकाई ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई संवाद नहीं किया, उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। उन्होंने (मणिपुर जदयू प्रमुख) खुद ही पत्र लिखा था।”
उन्होंने कहा, “इसे अनुशासनहीनता मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है और उन्हें पद से हटा दिया गया है…हम एनडीए के साथ हैं और राज्य इकाई मणिपुर के लोगों की सेवा करना जारी रखेगी, ताकि राज्य का विकास हो सके।”
विवाद की जड़
विवाद तब शुरू हुआ जब क्षेत्रीमयुम बीरेन सिंह ने मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को पत्र लिखकर दावा किया कि जदयू भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के एकमात्र विधायक, मोहम्मद अब्दुल नासिर अब विपक्ष में बैठेंगे।
इस पत्र में 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद जेडीयू के छह में से पांच विधायकों के भाजपा में शामिल होने का उल्लेख किया गया था। साथ ही, इसे पार्टी के पहले विपक्षी गठबंधन (INDIA) से जुड़ने के फैसले से जोड़ा गया।
पत्र में लिखा गया था, “फरवरी/मार्च, 2022 में मणिपुर विधानसभा के लिए हुए चुनाव में जदयू के 6 उम्मीदवारों को वापस कर दिया गया। बाद में 5 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इनके खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत मुकदमा स्पीकर के न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित है।”
जदयू के फैसले के पीछे की वजह?
जदयू ने यह फैसला क्यों लिया, अभी तक इसका कोई आधिकारिक कारण सामने नहीं आया है। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम इस साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। इसे नीतीश कुमार की ओर से भाजपा पर सीट बंटवारे को लेकर दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है। गौरतलब है कि नीतीश कुमार पहले विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक का हिस्सा थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने एनडीए का दामन थाम लिया।
क्या मणिपुर में भाजपा सरकार गिर जाएगी?
मणिपुर विधानसभा में भाजपा की स्थिति मजबूत बनी हुई है। 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 37 विधायक हैं, और उन्हें नागा पीपल्स फ्रंट के 5 विधायकों और 3 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। जदयू ने इस मामले को पिछले साल की एक घटना से अलग बताते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट की। पिछले वर्ष कॉनराड संगमा की नेशनल पीपल्स पार्टी ने मणिपुर सरकार से समर्थन वापस लिया था। जदयू ने इसे कोई समानता देने से इनकार करते हुए कहा कि पार्टी का एनडीए के साथ गठबंधन मणिपुर, बिहार और केंद्र में मजबूत बना हुआ है।