नई दिल्ली: किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान के साथ विवाद के मुद्दे पर भारत को बड़ी सफलता मिली है। सिंधु जल संधी के तहत विश्व बैंक द्वारा नियुक्त नियुट्रल एक्सपर्ट ने इन परियोजनाओं पर जारी कुछ विवादों को हल करने के तरीकों पर भारत के स्टैंड का समर्थन किया है।
भारत जहां दोनों देशों के बीच विवाद के हल के लिए दशकों पहले हुए सिंधु जल संधि (IWT) के मुताबिक न्यूट्रल एक्सपर्ट की सलाह लेने का दबाव डालता रहा है। वहीं पाकिस्तान इसके लिए हेग में स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) की सलाह लेने का समर्थन कर रहा है।
न्यूट्रल एक्सपर्ट ने किया भारत का समर्थन
भारत ने मंगलवार को न्यूट्रल एक्सपर्ट माइकल लिनो (Michel Lino) के फैसले का स्वागत किया। एक बयान में विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा, ‘भारत सिंधु जल संधि-1960 के अनुबंध F के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा दिए गए निर्णय का स्वागत करता है। यह निर्णय भारत के रुख को बरकरार रखता है और पुष्टि करता है कि सभी सात (07) सवाल जो किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए थे, वे संधि के अनुसार उनकी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मतभेद हैं।’
भारतीय विदेश मंत्रालय ने आगे कहा, ‘यह भारत की हमेशा से और सैद्धांतिक स्थिति रही है कि संधि के तहत केवल न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास ही इन मतभेदों को दूर करने की क्षमता है। न्यूट्रल एक्सपर्ट अब अपनी कार्यवाही के अगले (मेरिट्स) चरण में आगे बढ़ेंगे। यह चरण सात मतभेदों में से प्रत्येक के गुण-दोष पर अंतिम निर्णय के साथ समाप्त होगा।’
मंत्रालय ने अपने बयान में इस बात को भी दोहराया कि भारत और पाकिस्तान संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत सिंधु जल संधि में संशोधन और समीक्षा के मामले पर संपर्क में बने हुए हैं। इससे पहले सोमवार (20 जनवरी) को न्यूट्रल एक्सपर्ट ने सिंधु जल संधि के तहत परियोजनाओं से संबंधित कुछ मुद्दों को संबोधित करने की अपनी क्षमता पर एक बयान जारी किया था। न्यूट्रल एक्सपर्ट ने पिछले साल किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण स्थल का दौरा भी किया था।
भारत के प्रोजेक्ट पर क्यों है पाकिस्तान को आपत्ति?
भारत दरअसल दो जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है। इसमें झेलम की सहायक नदी किशनगंगा नदी पर किशनगंगा जलविद्युत परियोजना और चिनाब नदी पर रतले जलविद्युत परियोजना शामिल है।
हालाँकि, पाकिस्तान ने इन दोनों परियोजनाओं के निर्माण पर आपत्ति जताई है। पाकिस्तान का मानना है कि ये परियोजनाएं उसके क्षेत्र में जल प्रवाह को कम कर सकती हैं, जिससे विशेष रूप से उसकी सिंचाई व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
2015 में पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रतले हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजनाओं पर अपनी तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक न्यूट्रल एक्सपर्ट की नियुक्ति का अनुरोध किया।
2016 में हालांकि पाकिस्तान ने एकतरफा रूप से इस अनुरोध को वापस ले लिया और मध्यस्थता अदालत में मामले पर सुनवाई का प्रस्ताव दिया। पाकिस्तान की यह एकतरफा कार्रवाई हालांकि, सिंधु जल संधि के अनुच्छेद-9 के तहत विवाद निपटान के लिए उल्लेखित शर्तों का उल्लंघन है। पाकिस्तान के कदम के बाद भारत ने इस मामले को एक न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास भेजने के लिए एक अलग अनुरोध किया।
क्या है सिंधु जल संधि और न्यूट्रल एक्सपर्ट की कहानी?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को हुई थी। कराची में तब भारत के प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इस अवसर पर भारत और पाकिस्तान के अलावा संधि को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभाने वाले विश्व बैंक के अधिकारी भी उपस्थित थे।
1960 में हुए सिंधु जल संधि (IWT) के तहत सूबे में पूर्वी नदी कही जाने वाली सतलज, ब्यास और रावी को पूरी तरह से भारत के उपयोग के लिए दी गई थीं। वहीं, पश्चिमी नदियां चिनाब, झेलम और सिंधु को पाकिस्तान को दी गई। हालांकि, भारत के पास पाकिस्तान को मिली पश्चिमी नदियों पर भी रन ऑफ रिवर (RoR) हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स लगाने का अधिकार है क्योंकि ये नदियां भारत से ही होकर पाकिस्तान की ओर बहती है। रन ऑफ रिवर का मतलब है कि भारत हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के लिए पानी को अत्यधिक मात्रा में नहीं रोक सकता।
इसी संधि के तहत विवादों के निपटारे के लिए तीन अलग-अलग चरण के तरीके भी तय किये गये हैं। पहले चरण में भारत और पाकिस्तान के अधिकारी आपसी सहमति से विवाद के निपटारे के लिए बात करते हैं। यहां मामला नहीं सुलझने परन्यूट्रल एक्सपर्ट की भूमिका अहम हो जाती है।
यदि भारत और पाकिस्तान सिंधु जल संधि से जुड़े विषयों पर मतभेदों को आपसी स्तर पर सुलझाने में नाकाम होते हैं, तब मामले को विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट के सामने रखा जाता है। न्यूट्रल एक्सपर्ट एक जलविद्युत विशेषज्ञ होता है जो दोनों पक्षों से अलग होता है। वह इनकी बात सुनता है, अपने हिसाब से विषय को जांचता और जानकारी लेता है और फिर अपना फैसला देता है। हालांकि, यहां इसे फैसला या किसी की हार-जीत नहीं बल्कि award (अवॉर्ड) कहा जाता है।
अगर बात यहां भी नहीं बनी तब मध्यस्थता न्यायालय या कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन (सीओए) की भूमिका आती है। यदि दोनों पक्ष न्यूट्रल एक्सपर्ट के फैसले पर भी सहमत नहीं हो पाते हैं तो मामले को कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन में ले जाया जाता है।
पाकिस्तान पहले ही चला गया है सीओए के पास
सिंधु जल संधि के तहत किसी भी विवाद के समाधान के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया तय है। पाकिस्तान ने हालांकि किशनगंगा और रतले दोनों परियोजनाओं के मामले में दूसरे चरण यानी न्यू्ट्रल एक्सपर्ट की प्रक्रिया पूरी किए बिना ही तीसरे चरण की शुरुआत कर दी।
ऐसे में भारत ने सीओए की कार्यवाही का ही बहिष्कार कर दिया है। इस तरह मामले में सीओए के समक्ष कार्यवाही एकतरफा (भारत की भागीदारी के बिना) ही जारी है।
सिंधु जल संधि में बदलाव की भी मांग कर रहा है भारत
पिछले साल भारत ने सिंधु जल संधि की “समीक्षा” की मांग करते हुए पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजा था। पाकिस्तान को संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत 30 अगस्त 2024 को नोटिस जारी किया गया था। इससे पहले जनवरी 2023 में भी भारत ने इसी अनुच्छेद के तहत संधि में “संशोधन” के लिए इस्लामाबाद को एक नोटिस जारी किया था।भारत की ओर से संधि की समीक्षा की मांग लेकर कुछ ठोस वजहें भी जानकार गिनाते रहे हैं। इसे समझिए-
1. सिंधु जल संधि (IWT) लगभग एक सदी पहले 1920 और 1925 के बीच छह नदियों में पानी के प्रवाह के एकत्र आंकड़ों पर आधारित एक संधि है। सिंधु जल समझौते के लिए प्रयास की शुरुआत 1951 में हुई थी और 1960 में यह लागू हुआ। ऐसे में तब भारत और पाकिस्तान के इंजीनियरों ने जिन आंकड़ों पर गौर किया, वे केवल 25 साल पुराने थे।
2. करीब 100 साल पुराने उस डेटा के अनुसार, सभी छह नदियों- सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब, झेलम और सिंधु में कुल उपलब्ध पानी 168 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) था।
3. पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी में कुल प्रवाह केवल 33 एमएएफ था और यही भारत को मिला।
4. इसकी तुलना में पश्चिमी नदियों चिनाब, झेलम और सिंधु में कुल प्रवाह 136 एमएएफ था। इस तरह यह पूर्वी नदियों की तुलना में चार गुना अधिक था।
5. इस लिहाज से देखा जाए तो सिंधु जल संधि के तहत भारत को 19.48% पानी मिला और पाकिस्तान को नदियों का 80.52% पानी मिला।