कांग्रेस का दिल्ली के 24 अकबर रोड में करीब आधी सदी तक मुख्यालय रहने के बाद बुधवार को यह 9 ए कोटला रोड की नई बनी पांच मंजिला इमारत में शिफ्ट हो गया। दरअसल 8 कमरों वाला 24 अकबर रोड का बंगला 1978 में कांग्रेस के आंध्र प्रदेश से राज्यसभा के लिए निर्वाचित सदस्य जी.वेंकटस्वामी को आवंटित हुआ था। कांग्रेस तब सत्ता में नहीं थी। इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी 1977 में लोकसभा चुनाव हार चुके थे। तब इसी 24 अकबर रोड को कांग्रेस का पहले अस्थायी और फिर स्थायी हेड आफिस बना दिया गया था।
24 अकबर रोड का एक गेट 10 जनपथ में जाकर खुलता है। आमतौर पर इसी गेट से सोनिया गांधी 24 अकबर रोड में आती-जाती थीं। कांग्रेस मुख्यालय में 2014 के बाद से गहमागहमी लगातार घटने लगी थी। इस समय तक केन्द्र से यूपीए सरकार अपदस्थ हो गई थी और एनडीए सरकार सत्ता पर काबिज हो गई थी। फिर कांग्रेस का प्रदर्शन 2019 के लोकसभा चुनावों से लेकर अधिकतर राज्य विधानसभा क चुनावों में कमजोर रहा। नतीजा यह हुआ कि 24 अकबर रोड में पहले वाली नेताओं- कार्यकर्ताओं की भीड़ गुजरे जमाने की बातें हो गईं।
कभी बर्मा हाउस था 24 अकबर रोड में
24 अकबर रोड को 1960 के दशक में ‘बर्मा हाउस’ भी कहते थे। दरअसल म्यांमार (पहले बर्मा) के भारत में राजदूत को यही बंगला सरकारी आवास के रूप में आवंटित किया जाता था। राशिद किदवई ने अपनी पुस्तक ‘24 अकबर रोड’ में लिखा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर 24 अकबर रोड को बर्मा हाउस कहा जाने लगा था।
दरअसल बर्मा की राजदूत दा खिन केय और पंडित नेहरू के बीच बेहद मधुर संबंध थे। उस दौर में भारत-बर्मा संबंध में लगातार मजबूती आ रही थी। दा खिन केय की पुत्री हैं म्यांमार की शिखर नेता आंग सान सू। अकबर रोड में 26 बंगले हैं। इनमें कुछ प्राइवेट बंगले भी हैं। कहते हैं कि देश की सर्वाधिक शक्तिशाली हस्तियां इसी अकबर रोड में रहती हैं। कांग्रेस मुख्यालय से सटा 20 अकबर रोड का बंगला सटा हुआ है। यह 1952 से ही लोकसभा के स्पीकर को आवंटित होता आ रहा है।
लोकसभा के पहले स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा से लेकर मौजूदा स्पीकर श्री ओम बिरला का यह सरकारी आवास रहा है। यह डबल स्टोरी बंगला है। इसमें 1978 में लिफ्ट लगवा दी गई थी। लुटियन जोन में डबल स्टोरी बंगले गिनती के ही हैं। पूर्व में 20 अकबर रोड सरदार हुकुम सिंह, नीलम संजीव रेड्डी, बलराम जाखड़, रवि राय, शिवराज पाटिल, पीए संगमा, जीएमसी बालयोगी, मीरा कुमार और सुमित्रा महाजन को भी आवंटित हुआ। ये सब लोकसभा अध्यक्ष रहे।
भारत का बंटवारा और कांग्रेस का मुख्यालय
कांग्रेस के नए मुख्यालय से 7 जंतर-मंतर के बीच की दूरी कोई खास नहीं है। आप पूछेंगे कि कांग्रेस और 7 जंतर-मंतर का क्या संबंध है? संबंध बिलकुल है। दरअसल कांग्रेस का हेड आफिस सन 1947 से लेकर सन 1971 तक 7 जंतर मंतर ही था। इधर महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल वगैरह आते-जाते थे। यहीं श्रीमती इन्दिरा गांधी सन 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गई थी।
मशहूर लेखक राज खन्ना ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘आजादी के पहले, आजादी के बाद में’ 7 जंतर-मंतर पर स्थित कांग्रेस मुख्यालय में 15 जून, 1947 को ब्रिटिश सरकार की विभाजन योजना के मसले पर हुई बैठक की विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया की किताब Guilty Men of India’s Partition के हवाले से लिखा है- “कांग्रेस की इस बैठक के दौरान पूरे दो दिनों तक, कांग्रेस के नेताओं से ठसाठस भरे हाल के एक कोने में एक कुर्सी पर बैठे मौलाना आजाद लगातार अबाध गति से सिगरेट का धुंआ उड़ाते रहे। एक शब्द भी नहीं बोले।”
राजधानी के 7 जंतर- मंतर पर स्थित कांग्रेस मुख्यालय में 15 जून, 1947 को हुई अहम बैठक के बारे में राम मनोहर लोहिया ने लिखा है ‘आचार्य कृपलानी जी बैठक में झुक कर बैठे रहे थे।’
7 जंतर मंतर में कौन-कौन?
7 जंतर मंतर जनता दल यूनाइटेड़ और अखिल भारतीय सेवा दल, जिसकी स्थापना मोरारजी देसाई ने की थी, का भी मुख्यालय रहा। कांग्रेस में दो फाड़ होने के बाद 7 जंतर मंतर पर कांग्रेस (ओ) का कब्जा हो गया था। कांग्रेस (ओ) का आगे चलकर जनता पार्टी में विलय हुआ। कांग्रेस की 1980 में सत्ता में वापसी हुई तो भी इंदिरा गांधी ने 7 जंतर मंतर पर दावा नहीं किया।
बहरहाल, 7 जंतर मंतर से ही पत्रकारों के संगठन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट का भी लंबे समय से दफ्तर चल रहा है।
अब लगता तो नहीं है कि कांग्रेस के बहुत से नेताओं और कार्यकर्ताओं को 7 जंतर मंतर के पार्टी से संबंधों की कायदे से जानकारी होगी। फिलहाल इस बंगले की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है।
इसके आसपास देश भर से आए प्रदर्शनकारी अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी कर रहे होते हैं। इन्हें देखते हुए दिल्ली वाले लगभग निर्विकार भाव से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे होते हैं। 7 जंतर मंतर रोड के आगे खड़े होने के बाद कुछ इस तरह का अनुभव होता कि मानो अब भी स्वाधीनता आंदोलन चल रहा है। यहां गेट के बाहर कुछ खादी के वस्त्र पहने बुजुर्ग राजनीतिक कार्यकर्ता खड़े मिल जाते हैं। इनकी बातचीत में किसान, युवा, बेरोजगारी, समता, रचनात्मक जैसे शब्द बार-बार आ रहे होते हैं। कुछ देर के बाद ये सड़क के उस पार चलने वाले एक दक्षिण भारतीय ढाबे में भोजन कर रहे होते हैं।
शेख अब्दुल्ला भी कोटला लेन में
कांग्रेस के नए मुख्यालय से करीब ही है 4-ए कोटला लेन। यहां पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला 1964 से 1968 तक राजनीतिक बन्दी के रूप में रहे। उस दौरान कोटला रोड और कोटला लेन में सरकारी बंगले हुआ करते थे। दरअसल सरकार ने बाद में 4-ए कोटला लेन को शेख अब्दुल्ला को आवंटित कर दिया था। कहते हैं कि अब्दुल्ला परिवार के मित्र और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल चाहते थे कि 4-ए कोटला लेन को शेख अब्दुल्ला स्मारक के रूप में विकसित कर दिया जाए, पर यह हो न सका।