इंदौर: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत को अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा दिवस पर ‘सच्ची आजादी ‘ मिली। उन्होंने कहा कि राम मंदिर प्रतिष्ठा दिवस को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाना चाहिए। मोहन भागवत ने सोमवार को कहा, “भारत को ब्रिटिश से 15 अगस्त 1947 से आजादी मिलने के बाद देश की ‘स्वयं’ से निकले उस विशिष्ट दृष्टिकोण के दिखाए रास्ते के अनुसार एक संविधान अपनाया गया लेकिन वह दस्तावेज उस समय के दृष्टिकोण की भावना के अनुसार नहीं चलाया गया।”
प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाना चाहिए
आरएसएस चीफ ने कहा कि इस तारीख को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी ‘ के रूप में मनाना चाहिए क्योंकि भारत को सच्ची स्वतंत्रता इसी दिन मिली थी जिसने सदियों पहले हुए ‘परचक्र’ (शत्रु हमला) को झेला था। आरएसएस चीफ इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के जनरल सेकेट्री चंपत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान’ देने के बाद बोल रहे थे।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पिछले साल पौष महीने के ‘शुक्ल पक्ष’ की द्वादशी तिथि राम मंदिर का प्रतिष्ठान हुआ था। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख 22 जनवरी थी। इस साल पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी 11 जनवरी को पड़ी। भागवत ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन किसी का विरोध करने के लिए शुरू नहीं किया गया था। आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि – ” यह आंदोलन भारत के ‘आत्म (स्वा)’ को जगाने के लिए शुरू किया गया था जिससे कि देश अपने पैरों पर खड़ा हो सके और दुनिया को रास्ता दिखा सके। ”
भागवत ने कहा कि आक्रमणकारियों ने भारत के मंदिरों को नष्ट कर दिया जिससे भारत की ‘आत्मा’ भी नष्ट हो जाए। उनके अनुसार, राम मंदिर आंदोलन इतने समय तक इसलिए चला क्योंकि कुछ ताकतें नहीं चाहती थीं कि भगवान राम के जन्मस्थान पर मंदिर बने।
प्रणब मुखर्जी से मुलाकात का किया जिक्र
मोहन भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उस वक्त की मुलाकात का जिक्र किया जब संसद में घर वापसी (धर्मांतरित लोगों की मूल धर्म में वापसी) का मुद्दा उठा। भागवत ने कहा- “इस वार्ता के दौरान, मुखर्जी ने मुझे कहा कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और इस परिस्थिति में दुनिया का क्या अधिकार है कि वह हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाए।” उन्होंने आगे कहा कि मुखर्जी ने धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा देने के लिए 5000 साल की भारतीय परंपरा को श्रेय दिया।
भागवत के अनुसार, मुखर्जी ने उनसे मुलाकात के दौरान जिस 5,000 साल पुरानी भारतीय परंपरा का जिक्र किया, उसकी शुरुआत भगवान राम, कृष्ण और शिव से हुई थी। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान, कुछ लोग उनसे “जरूरी प्रश्न” पूछते थे – कि “लोगों की आजीविका की चिंता छोड़कर मंदिर का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है?”
सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मैं उन लोगों से पूछता था कि 1947 में आजादी के बाद समाजवाद की बात करने, गरीबी हटाओ का नारा देने और हर समय लोगों की आजीविका की चिंता करने के बावजूद, 1980 के दशक में भारत कहां खड़ा था और इजराइल जैसे देश कहां हैं? और जापान पहुंच गया?” आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वह इन लोगों से कहते थे कि “भारत की आजीविका का रास्ता राम मंदिर के प्रवेश द्वार से होकर जाता है और उन्हें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए।”