इस महीने के अंत तक (जनवरी 2025) कश्मीर के लिए ट्रेन का सपना सही मायनों में पूरा हो सकता है। दरअसल, इस सपने की आखिरी बाधा कटरा से रियासी की रेलवे कनेक्टिविटी पूरी हो गई है। रियासी से आगे 200 किमी से अधिक की रेलवे लाइन पूरी हो चुकी है लेकिन कटरा को रियासी से जोड़ना रेलवे के लिए एक बहुत कठिन चुनौती साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी ने अप्रैल 2003 में उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन (USBRL) की नींव रखी थी और नरेंद्र मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि इस परियोजना को तेजी से लागू किया जाए।
पिछले साल 20 फरवरी को पीएम मोदी ने जम्मू की यात्रा के दौरान 48 किलोमीटर लंबी बनिहाल-संगलदान रेलवे लाइन का उद्घाटन किया था। जब ट्रेन ने यह उद्घाटन यात्रा की तो बनिहाल और संगलदान दोनों स्थानों पर भारी बर्फबारी हो रही थी। इस ट्रेन में यात्रा करते समय महाराष्ट्र और गुजरात के पर्यटक बेहद उत्साहित थे। उनके लिए खास बात यह थी कि वे आने वाली सर्दियों में फिर से मुंबई, पुणे, नागपुर और अहमदाबाद आदि से ट्रेन से यात्रा कर सकते हैं।
जब 1890 में जम्मू पहुंची थी पहली ट्रेन
जम्मू में पहली ट्रेन महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में 13 मार्च 1890 को पहुंची थी। उस समय रेल मार्ग जालंधर, अमृतसर, लाहौर, सियालकोट और जम्मू से होकर गुजरता था। हालाँकि, पाकिस्तान के निर्माण के बाद अक्टूबर 1947 में ट्रेनों ने इन पटरियों पर अपनी अंतिम यात्रा की। इसके 25 साल बाद अक्टूबर 1972 में जम्मू को जालंधर, पठानकोट, कठुआ और सांबा के रास्ते अपनी ट्रेन फिर मिली।
दिलचस्प बात यह है कि जब 13 मार्च, 1890 को 38 किलोमीटर लंबे सियालकोट-जम्मू रेल ट्रैक को खोला गया, तो महाराजा ने पहले दो दिन के लिए सभी के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा की थी। उस समय तब करीब 10,000 से अधिक लोगों ने जम्मू और सियालकोट के बीच इस ट्रेन यात्रा का आनंद लिया। इसक बाद सियालकोट से जम्मू तक की रेलवे लाइन को अक्टूबर 1947 में बंद करना पड़ा। इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ था। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर को घेरने की अपनी रणनीति के तहत ट्रेन सेवाएं बंद कर दी थी।
1983 में घोषणा…2005 में शुरुआत
1983 में 54 किलोमीटर लंबी जम्मू-उधमपुर लाइन बनाने की घोषणा की गई थी। लेकिन दो दशक से भी अधिक समय बाद अप्रैल 2005 में पहली ट्रेन उधमपुर पहुंची। वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान उधमपुर से श्रीनगर और उससे आगे बारामूला तक ट्रेन पर काम सही ढंग से शुरू हुआ। दिलचस्प बात यह है कि इसमें तेजी लाने के लिए दोनों छोर पर एक साथ काम शुरू किया गया।
48 किमी लंबे बनिहाल-संगालदान खंड को 15,863 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से पूरा किया गया। इसका मतलब हुआ कि इसकी लागत प्रति किमी 330 करोड़ रुपये से अधिक थी। 272 किलोमीटर लंबे USBRL के निर्माण को गति मिली क्योंकि वाजपेयी ने 2002 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। कश्मीर घाटी को रेलवे नेटवर्क के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने की लागत भले ही बहुत अधिक रही है, लेकिन यह परिवर्तन के लिहाज से बेहद अहम है। इस मार्ग पर दर्जनों सुरंगें और लगभग 1,000 पुल हैं! इस मार्ग पर सबसे लंबी सुरंग 12.77 किमी तक फैली हुई है और सबसे ऊंचा पुल रियासी जिले में चिनाब पुल है जो 359 मीटर लंबा है।
दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल पर दौड़ेगी ट्रेन
जम्मू-उधमपुर रेल ट्रैक अप्रैल 2005 में चालू हो गया। वहीं, श्री माता वैष्णो देवी मंदिर के बेस कैंप कटरा तक 25 किलोमीटर लंबे रेल ट्रैक को जुलाई 2014 में पहली ट्रेन मिली। कटरा और रियासी रेलवे स्टेशनों के बीच स्थित चिनाब पुल दुनिया भर में सबसे ऊंचा रेल पुल है जिसकी ऊंचाई 359 मीटर (330 मीटर के एफिल टॉवर से भी ऊंचा) है और ये 1,315 मीटर तक फैला है।
रियासी के बाद (बनिहाल और उससे आगे की ओर), USBRL ट्रैक पर सभी रेलवे स्टेशनों पर सर्दियों में बर्फबारी होती है और इससे बड़ी संख्या में पर्यटकों के आकर्षित होने की उम्मीद है। रियासी और बनिहाल के बीच का क्षेत्र पर्यटकों के मामले में अब तक अछूता क्षेत्र है।
408 किलोमीटर लंबा होगी USBRL
यूएसबीआरएल जब पूरी तरह से चालू हो जाएगा, तो कठुआ से बारामूला तक रेलवे लाइन की कुल लंबाई लगभग 408 किमी होगी। (कठुआ-जम्मू: 81 किमी; जम्मू-उधमपुर: 55 किमी और उधमपुर-बारामूला: 272 किमी)। कश्मीर के लिए यह ट्रेन एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण होगा क्योंकि सैनिकों की आवाजाही भी वर्तमान की तुलना में कहीं अधिक आसान हो जाएगी। भारत में कहीं से भी कश्मीर घाटी में माल और लोगों की तैनाती और तेज आवाजाही, निश्चित रूप से गेम चेंजर साबित होगी।
आम लोगों के अलावा सभी सुरक्षा बलों की टुकड़ियों की तैनाती आसान और खर्च भी कम हो जाएगा। बर्फ जमा होने आदि के कारण काजीगुंड और अन्य जगहों पर सड़क यातायात में व्यवधान अक्सर इन तैनाती में बाधा उत्पन्न करते हैं। हालाँकि, कश्मीर के लिए ट्रेनें यह सुनिश्चित करेंगी कि वहां 24 घंटे कनेक्टिविटी हो।
रेलवे सुरक्षा आयोग (सीआरएस) के शीर्ष अधिकारी अंतिम निरीक्षण के लिए कटरा-रियासी रेल खंड का दौरा कर रहे हैं। यह आयोग भारत में रेल यात्रा और ट्रेन संचालन की सुरक्षा से संबंधित बातों का निरिक्षण करते हैं। यह हालांकि भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) के तहत काम करता है।
इस आयोग के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि यातायात के लिए खोली जाने वाली कोई भी नई रेलवे लाइन रेल मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानकों और विशिष्टताओं के अनुरूप होनी चाहिए। आयोग नए मार्गों पर नई ट्रेनों को चलाने की मंजूरी भी तभी देता है जब वह संतुष्ट हो जाए कि नई लाइन यातायात के लिए हर तरह से सुरक्षित है।
इसलिए, यहां सीआरएस अधिकारियों के निरीक्षण का मतलब यह है कि कटरा रेलवे स्टेशन से आगे, बनिहाल और वहां से कश्मीर घाटी तक ट्रेन सेवाएं जल्द ही शुरू हो जाएंगी।
गणतंत्र दिवस पर देश को मिलेगी सौगात!
कटरा-रियासी लिंक की शुरुआत के साथ, उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला (यूएसबीआरएल) लिंक जल्द ही वास्तविकता बन जाएगा। पूरी संभावना है कि गणतंत्र दिवस के आसपास कश्मीर के लिए ट्रेन सेवाएं शुरू हो जाएंगी और इसका उद्घाटन पीएम मोदी करेंगे।
कश्मीर घाटी के लिए नियमित ट्रेन सेवाएं शुरू करने के उद्देश्य से भारतीय रेलवे पहले ही कटरा-रियासी खंड पर यात्री और माल गाड़ियों के कई परीक्षण चला चुका है। इस महत्वपूर्ण रूट पर एक सुरंग के पूरा होने के बाद ये परीक्षण क्रिसमस (25 दिसंबर) के आसपास सही मायने में शुरू हुए थे।