नई दिल्लीः केंद्र सरकार द्वारा मंगलवार को लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) के तहत दो अहम विधेयक पेश किए गए, जिनमें संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्रशासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 शामिल थे। ये विधेयक देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से पेश किए गए। लेकिन इस बहस और मतदान के दौरान भाजपा के 20 सांसदों की गैरहाजिरी ने पार्टी नेतृत्व को नाराज कर दिया है।
गैरहाजिर सांसदों में बड़े नाम भी शामिल
समाचार एजेंसी ANI ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भाजपा नेतृत्व इन 20 सांसदों को कारण बताओ नोटिस जारी करने की तैयारी में है। अनुपस्थित सांसदों में वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी, गिरिराज सिंह, और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। गौरतलब है कि पार्टी ने इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा और मतदान के लिए तीन-पंक्ति का व्हिप जारी किया था। बावजूद इसके, सांसदों की गैरहाजिरी ने पार्टी की रणनीति और अनुशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ये विधेयक पेश किए। सरकार का दावा है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार देश की चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और खर्च में कटौती करेगा। कानून मंत्री ने बताया कि यह विधेयक न केवल लोकतंत्र को मजबूत करेगा, बल्कि चुनावी खर्च और बार-बार चुनाव की समस्याओं को भी खत्म करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विधेयक संविधान के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है और राज्यों की स्वायत्तता को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
लोकसभा में विधेयक का समीकरण
बिल पर हुई वोटिंग में सरकार को 269 मतों का समर्थन मिला, जबकि 198 मत इसके विरोध में पड़े। हालांकि, इसे पारित कराने के लिए जरूरी दो-तिहाई बहुमत (307 मत) सरकार हासिल नहीं कर पाई।
विपक्ष ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा-एनडीए बहुमत का दावा करने के बावजूद आवश्यक समर्थन जुटाने में विफल रही। शशि थरूर ने इसे सरकार का “तानाशाही रवैया” करार देते हुए कहा कि यह बिल संघीय ढांचे पर हमला है।
विपक्ष का विरोध और सरकार की सफाई
विपक्षी दलों ने इन विधेयकों को संविधान पर हमला और लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कदम बताया। विपक्षी दलों का कहना था कि बार-बार चुनाव कराने से देश के संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि यह लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखता है।
दूसरी ओर, गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट में ही सुझाव दिया था कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाना चाहिए, ताकि व्यापक चर्चा हो सके। शाह ने विपक्ष से अपील की कि वे बिना पक्षपात के इस विधेयक की समीक्षा करें।
क्या कहता है आंकड़ों का गणित?
वर्तमान में भाजपा-एनडीए के पास लोकसभा में 293 सांसद हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के पास 234 सांसद हैं। संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए सरकार को दो-तिहाई बहुमत यानी 307 मतों की जरूरत है।
सरकार को वाईएसआर कांग्रेस (4 सांसद) और अकाली दल (1 सांसद) जैसे गैर-गठबंधन दलों का समर्थन प्राप्त है। इसके बावजूद, विपक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि एनडीए के पास अकेले इस विधेयक को पास कराने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है।
संविधान संशोधन के लिए चुनौतियां
संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए राज्यसभा और आधे राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन भी आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक विधायी प्रक्रिया के एक लंबे दौर से गुजरेगा, और इसमें सरकार के लिए हर स्तर पर समर्थन जुटाना एक बड़ी चुनौती होगी।
अब यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा। इस समिति में प्रत्येक पार्टी का प्रतिनिधित्व उनकी संसदीय ताकत के आधार पर होगा। भाजपा को इसमें सबसे अधिक सदस्य मिलेंगे, जिससे समिति में उसका प्रभाव अधिक रहेगा।