काठमांडू: हाल ही में नेपाल और चीन के बीच ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस समझौते के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।
भारत ने नेपाल के इस कदम पर आपत्ति जताते हुए इसे चीन की पड़ोसियों पर अपना अधिकार जताने का एक और प्रयास बताया। हालांकि नेपाल सरकार ने भारत की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि इस समझौते पर तीसरे देश को बोलने का हक नहीं है।
अंग्रेजी वेबसाइट इंडिया टूडे की खबर के मुताबिक, यह समझौता नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की चीन यात्रा के दौरान हुआ और इसे नेपाल के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
बीआरआई एक बड़ी संपर्क परियोजना है, जो चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जोड़ने का उद्देश्य रखती है। इस परियोजना में सड़कें, रेलवे, बंदरगाह और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया जाएगा।
नेपाल के नेता ने समझौते से भारत को भी फायदा होने की बात कही
डेक्कन हेराल्ड की खबर के अनुसार, नेपाल के नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री रघुबीर महासेठ ने इस समझौते पर कहा कि भारत को इस परियोजना पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे भारत को भी फायदा हो सकता है।
रघुबीर ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर नेपाल और चीन के बीच सड़कें और रेलवे जैसी बुनियादी सुविधाएं बनती हैं, तो भारत भी इनका लाभ उठा सकता है। महासेठ ने यह भी कहा कि नेपाल को चीन से ऋण लेने पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, अगर यह नेपाल के हित में हो।
महासेठ ने यह भी कहा कि नेपाल अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए किसी भी बाहरी ताकत को अपनी विदेश नीति में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा। उनका कहना था कि नेपाल को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति निर्धारित करने का पूरा अधिकार है।
भारत बीआरआई का क्यों करता है विरोध
खबर में कहा गया है कि भारत ने हमेशा बीआरआई का विरोध किया है, क्योंकि इसे चीन के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के एक साधन के रूप में देखा जाता है। भारत का यह मानना है कि बीआरआई के जरिए चीन छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसा सकता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर संकट आ सकता है।
इसका उदाहरण श्रीलंका है, जहां चीन के कर्ज के कारण वह अपने महत्वपूर्ण बंदरगाह को चीन को पट्टे पर देने पर मजबूर हो गया।
नेपाल में कुछ लोग मानते हैं कि बीआरआई समझौते से नेपाल के विकास में तेजी आएगी। नेपाल को समुद्र के रास्ते व्यापार और परिवहन के लिए चीन द्वारा दिए गए बुनियादी ढांचे के निर्माण से फायदा हो सकता है। इससे नेपाल को वैश्विक बाजारों से जुड़ने का मौका मिलेगा, जो भारत के बाहर के देशों से व्यापार बढ़ाने के लिए जरूरी है।
हालांकि, कई लोगों का कहना है कि नेपाल को इस समझौते के खतरों को भी समझना होगा। चीन द्वारा दिए गए भारी ऋण से नेपाल पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है, जैसा कि अन्य देशों में देखा गया है।
इसके अलावा, बीआरआई परियोजनाओं में शामिल होने से नेपाल को चीन पर राजनीतिक और आर्थिक निर्भरता बढ़ सकती है, जो उसकी संप्रभुता के लिए खतरे का कारण बन सकता है।