पिछले सप्ताह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में हिंसक घटनाओं में बड़ी वृद्धि देखी गई। 100 से अधिक लोग मारे गए। इनमें से अधिकांश गुरुवार और शुक्रवार/शनिवार की रात को हुए दो हमलों में मारे गए। पुलिस सुरक्षा के तहत शियाओं को ले जा रहे 200 वाहनों के काफिले पर गुरुवार को तहरीक तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा किए गए हमले में कम से कम 50 लोग मारे गए।
खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान बने पाकिस्तान का सिरदर्द
गुरुवार के इस हमले के ठीक 24 घंटे बाद जो कुछ हुआ और कई घंटों तक जारी रहा, वह सांप्रदायिक शिया-सुन्नी झड़पें भी थीं। इस हिंसा ने कुर्रम जिले के अधिकांश हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया। पूरे खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से दर्जनों झड़पों की खबरें आईं और विरोध प्रदर्शन भी हुए। शियाओं ने बार-बार प्रांतीय और संघीय दोनों सरकारों से उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह किया है।
इससे करीब एक पखवाड़े पहले अशांत बलूचिस्तान में हुई हिंसा ने सुर्खियां बटोरी थीं। क्वेटा रेलवे स्टेशन पर घातक हमला हुआ। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया। इससे पाकिस्तानी सेना के वे सैनिक हताहत हुए जो इन्फैंट्री स्कूल में प्रशिक्षण के बाद स्टेशन पर मौजूद थे।
खैबर पख्तूनख्वा में पिछले महीने भी दो जनजातियों के बीच कुछ झड़पों और पेशावर-पाराचिनार हाईवे पर वाहनों की कई लूटपाट की घटनाओं में 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। इन घटनाओं के कारण इस हाईवे के कई हिस्सों को बंद करना पड़ा था, जिससे कई समस्याएं पैदा हो गई थी। स्पलाई चेन बाधित हुई और फिर इस वजह से दैनिक खाद्य पदार्थों, ईंधन और दवाओं की भारी कमी हो गई।
चीन भी आतंकी घटनाओं से नाराज
इन घटनाओं का मतलब साफ है कि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान ये दो प्रांत अब पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। बलूचिस्तान में बलूच विद्रोही लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को निशाना बना रहे हैं और इन घटनाओं ने इलाके में पाकिस्तान के सुरक्षा बलों की नींद उड़ा रखी है। इसमें भी पाकिस्तान सरकार के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात बलूचों का चीनी नागरिकों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजनाओं को निशाना बनाना है।
चीन अपने नागरिकों को निशाना बनाए जाने पर नाराजगी जता चुका है। उसकी चिढ़ खुल कर सामने आने लगी है। हालात लगभग ऐसे हैं कि यदि विकल्प मिले तो चीन अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों को लाना चाहेगा। हालांकि, पाकिस्तान जरूर अभी भी उन्हें (पीएलए) बलूचिस्तान या पाकिस्तान में कहीं भी लाने के लिए तैयार नहीं है। अगर चीनी नागरिकों पर कुछ और हमले हुए तो क्या पाकिस्तान चीनी दबाव का सामना कर पाएगा? या फिर चीन और अधिक निवेश करने के लिए तैयार होगा?
भारत के खिलाफ होता था तालिबान लड़ाकों का इस्तेमाल
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक इंसाफ (पीटीआई) द्वारा शासित खैबर पख्तूनख्वा में वह तहरीक तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) तबाही फैला रहा है, जिसे कभी ‘अच्छा तालिबान’ माना जाता था। प्रांत के अधिकांश हिस्सों पर वस्तुतः इन तालिबानों का ही शासन है जो छोटे, लेकिन शक्तिशाली गुटों में संगठित हैं। पड़ोसी अफगानिस्तान में तालिबान का उदय पाकिस्तानी तालिबान के लिए बहुत ज्यादा मनोबल बढ़ाने वाला रहा है और इसी का असर नजर आ रहा है।
यहां गौर करने वाली बात है कि 1989-90 से लेकर कुछ साल पहले तक पाकिस्तान ने तालिबान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया। भारत में बड़ी संख्या में आतंकवादी हमले पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) द्वारा इन्हीं तालिबान लड़ाकों का उपयोग करके किए गए थे। फरवरी 2019 के बालाकोट हमलों के बाद, भारत में तालिबानी लड़ाकों का उपयोग खत्म हो गया है।
पिछले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा किए गए कई हमलों के लिए पाकिस्तान की आईएसआई ही जिम्मेदार रही है। पाकिस्तानी एजेंसी भारत के खिलाफ इस तरह धद्म युद्ध का इस्तेमाल खूब करती रही है, लेकिन अब आतंकी हमलों की संख्या में कमी आ रही है। इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अपनी रणनीति के रूप में आतंक का इस्तेमाल छोड़ दिया है। केवल संख्या में कमी आई है लेकिन उसके इरादे और इस काम में उसकी क्षमता बरकरार है।
खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इस बीच इस्लामाबाद की एक अदालत ने खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अमीन अली गंडापुर को घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) कहा है। किसी कोर्ट का इस तरह केवल अपनी कार्यवाही से अनुपस्थित रहने के लिए किसी उच्च पदस्थ शख्स के बारे में इतना कठोर कदम उठाना अपने आप में असामान्य है। हालांकि, यह यह तथ्य इस बात का भी संकेत हो सकता है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय सरकार गंडापुर के खिलाफ बर्खास्तगी सहित कुछ अन्य कठोर कार्रवाई पर विचार कर रही है।
पाकिस्तान में अदालतों, निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से विपक्षी राजनेताओं को निशाना बनाना कोई नई बात नहीं है। 1958 में अयूब खान के तख्तापलट के बाद से पाकिस्तान की सभी अदालतें अक्सर सत्तारूढ़ दल और सेना की ‘दासी’ के रूप में काम करती रही हैं। कुछ अपवादों जरूर रहे हैं। मौजूदा दौर में इमरान खान के खिलाफ विभिन्न स्तरों पर इस्तेमाल की जा रही अदालतें उसी पुरानी और परखी हुई पद्धति को ही जारी रख रही हैं।
शाहबाज शरीफ पूरा नहीं कर सकेंगे कार्यकाल!
यह अभी दूर की कौड़ी लग सकती है लेकिन अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पीएम शहबाज शरीफ भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। यहां यह बताना जरूरी है कि 1947 से लेकर पिछले 76 वर्षों में आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
नवाज शरीफ तीन बार प्रधानमंत्री रहे, लेकिन तीन अलग-अलग कार्यकालों में, और किसी भी कार्यकाल में पूरे पांच साल की अवधि पूरी नहीं कर सके। बेनजीर भुट्टो दो बार पीएम रहीं, लेकिन उन्होंने भी एक भी कार्यकाल पूरा नहीं किया था। इस साल फरवरी के बाद से शहबाज शरीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। उनका कार्यकाल 2029 की शुरुआत तक है लेकिन इसके भी पूरा होने की संभावना नहीं है।