काबुल: ब्रिटिश अखबार दि गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार अफगान तालिबान राजधानी काबुल के रीडवलेपमेंट के नाम पर वहाँ मौजूद ‘ताजिक’ और ‘हाजरा’ बस्तियों को उजाड़ रहे हैं। काबुल के नवनिर्माण की आड़ में तालिबान सुनियोजित तरीके से शहर में मौजूद इन मुस्लिम नस्ली अल्पसंख्यकों की बस्तियों को खाली करा रहे हैं। गार्डियन के अनुसार तालिबान द्वारा ढहाए गए एक घर में दो बच्चों के अन्दर होने के कारण मौत हो गयी।
अफगानिस्तान तालिबान ने तीन साल पहले अशरफ गनी सरकार के खिलाफ हथियारबन्द बगावत करके तख्तापलट किया था। तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों, सामुदायिक अल्पसंख्यकों और नस्ली अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की रिपोर्ट आती रही हैं।
द गार्डियन ने सेटेलाइट इमेज, सोशल मीडिया फुटेज और अफगान लोगों की गवाही के आधार पर की गई जांच के बाद नतीजा निकला है कि तालिबान के काबुल के महत्वाकांक्षी पुनर्विकास कार्यक्रम में लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।
सैटेलाइट विश्लेषण से पता चलता है कि काबुल शहर का करीब 1.56 वर्ग किमी (385 एकड़, 220 से अधिक फुटबॉल मैदान के बराबर) अगस्त 2021 और अगस्त 2024 के बीच समतल करा दिया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो यहां बसी बस्तियां, घरों आदि को उजाड़ दिया गया है।
अल्पसंख्यकों, कमजोर समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित
द गार्डियन, सेंटर फॉर इंफॉर्मेशन रेजिलिएंसेस अफगान विटनेस प्रोजेक्ट, लाइटहाउस रिपोर्ट्स और अफगान समाचार आउटलेट जान टाइम्स (Zan Times) और एटिलाट रोज के सहयोग से की गई जांच में यह भी संकेत मिले हैं कि विकास के नाम पर हुआ विनाश आंशिक रूप से जातीयता से भी जुड़ा हुआ है।
अफगान विटनेस द्वारा सैटेलाइट इमेज के विश्लेषण से पता चला कि पुनर्विकास के नाम पर छह सबसे अधिक प्रभावित जिलों में कम से कम 50,000 वर्ग मीटर (12 एकड़) आवासीय संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। इनमें तीन अल्पसंख्यक हजारा समुदाय की आबादी वाले क्षेत्र थे और दो अल्पसंख्यक ताजिक समुदाय से जुड़े इलाके थे।
इनमें भी सबसे अधिक प्रभावित काबुल का जिला 13 था जहां मुख्य रूप से हजारा समुदाय के लोग रहते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इस इंवेस्टिगेशन में ‘अनौपचारिक बस्तियों’ को बड़े पैमाने पर तोड़े जाने का भी विश्लेषण किया गया। कुछ मामलों में झुग्गियों और घरों का विनाश इतनी क्रूरता से किया गया है कि निवासियों ने चोटों और मौतों की सूचना दी है। इन घरों में ज्यादातर संघर्ष या जलवायु परिवर्तन से विस्थापित हुए बेहद गरीब परिवार रहते थे।
घरों में लोग थे, फिर भी गिरा दिया…बच्चों की मौत
कम से कम दो बस्तियों में निवासियों का आरोप है कि घरों को ध्वस्त कर दिया गया जबकि लोग अभी भी अंदर थे। काबुल के जिला-22 में एक बड़ी झुग्गी बस्ती से बेदखल किए गए 22 परिवारों ने आरोप लगाया कि ध्वस्तीकरण के दौरान एक चार वर्षीय और एक 15 वर्षीय बच्चे की मृत्यु हो गई।
पाकिस्तान से विस्थापित होने के बाद इस बस्ती में एक दशक बिता चुके एक निवासी ने कहा, ‘महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग उनसे विनती कर रहे थे कि जब तक हमें आश्रय नहीं मिल जाता तब तक वे ध्वस्तीकरण को रोक दें, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी।’
उन्होंने दावा किया कि घर ध्वस्त किए जाने के बाद अत्यधिक गर्मी से और उचित आश्रय नहीं मिल पाने के कारण उनकी युवा भतीजी की भी मृत्यु हो गई। ये बातें भी सामने आई हैं कि जिन निवासियों ने इस तरह के विध्वंस का वीडियो बनाने का प्रयास किया, उन्हें कथित तौर पर पीटा गया।
कुछ निवासियों ने ध्वस्तीकरण की बात बताते हुए कहा कि यह दृश्य हेरात में आए भूकंप जैसा था (जिसमें पिछले साल हजारों लोगों की मौत हुई थी)। एक शख्स का कहना था कि मकान दफन कर दिये गये, यहां तक कि लोगों के सारे सामान भी दफन कर दिए गए।
घर गिराए जाने से महिलाओं की बढ़ी मुश्किलें
कई मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इस तरह घरों और सपंत्तियों को गिराए जाने के बाद महिलाएं विशेष रूप से असुरक्षित हो गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि इससे लिंग आधारित हिंसा बढ़ सकती है।
जान टाइम्स की ओर से लिए गए एक इंटरव्यू में महिला ने महिला-प्रधान घरों की कठिनाइयों के बारे में बात की। घर-घर सफाई कर ये महिला हर दिन एक से तीन डॉलर तक कमाती है। यह महिला उत्तरी काबुल के एक आवासीय क्षेत्र में अपना घर ध्वस्त हो जाने के बाद तालिबान से मुआवजा पाने के लिए संघर्ष कर रही है।
इसकी एक वजह यह भी है कि तालिबान के नियमों के तहत उसे काबुल के नगरपालिका कार्यालयों में बिना किसी पुरुष अभिभावक के प्रवेश की अनुमति नहीं है।
इसी क्षेत्र में अपना घर खोने वाली एक अन्य महिला अब तालिबान प्रतिबंधों के कारण काम नहीं कर सकती है। मुआवजे से वंचित होने के कारण उसके परिवार को अब केवल उसके पति की जूतों की मरम्मत की दुकान से होने वाली मामूली आय पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
बेदखल किए गए एक दर्जन लोगों से किए गए इंटरव्यू में केवल एक ऐसा उदाहरण मिला जिसे स्थायी आवास दिया गया था। निवासियों का कहना है कि डर की वजह से वे अपने घरों को ध्वस्त किए जाने का विरोध भी ठीक तरह से नहीं कर पाते हैं।
एक महिला, जिसका 40 साल पुराना पारिवारिक घर अगस्त 2023 में ध्वस्त कर दिया गया था, उसने बताया, ‘पहले, उन्होंने हमसे कहा कि वे हमें मुआवजा देंगे और हमें बेघर नहीं छोड़ेंगे, लेकिन एक बार घर ध्वस्त हो जाने के बाद, किसी ने हमारी सुध नहीं ली।’