जम्मू: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को पत्र लिखकर उन पूर्व सरकारी कर्मचारियों के मामलों की समीक्षा के लिए एक समिति बनाने का आग्रह किया, जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, कई कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत अलगाववादी कृत्यों में शामिल होने और अलगाववादियों के साथ संबंधों के कारण बर्खास्त किया गया है।
यह अनुच्छेद-311 सरकार को ऐसी कार्रवाई के कारणों का विवरण दिए बिना कर्मचारियों को बर्खास्त करने का अधिकार देता है। दिवंगत अलगाववादी नेता एसएएस गिलानी के पोते अनीस उल इस्लाम भी अनुच्छेद 311 के तहत बर्खास्त किए गए सरकारी अधिकारियों में से एक थे। अनीस उल इस्लाम को महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान पिछले दरवाजे से एक वरिष्ठ सरकारी पद पर नियुक्त किया गया था। ज्यादातर रिपोर्टों के अनुसार, महबूबा के सहयोगी और अब एक पार्टी के विधायक वहीद पारा ने इस नियुक्ति में मदद की थी।
इसके अलावा नवंबर 2021 में अनुच्छेद-311 के तहत बर्खास्त किए गए कर्मचारियों में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन (एचएम) के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के दो बेटे भी शामिल थे। सैयद अहमद शकील और शाहिद यूसुफ जम्मू-कश्मीर के उन 11 सरकारी कर्मचारियों के ग्रुप में शामिल थे जिनकी सेवाएं ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधियों’ के कारण समाप्त कर दी गई थीं।
इस तरह की बर्खास्तगी का एक और प्रसिद्ध मामला कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) अधिकारी असबाह-उल-अर्जमंद खान का है, जो आतंकवादी फारूक अहमद डार (उर्फ बिट्टा कराटे) की पत्नी है, जो सलाखों के पीछे है। बिट्टा कराटे कश्मीर और पूरे भारत में उस समय एक जाना-पहचाना नाम बन गया जब उसने मनोज रघुवंशी को दिए एक इंटरव्यू में कई कश्मीरी पंडितों की हत्या करने की बात स्वीकार की। (उस इंटरव्यू का वीडियो फेसबुक पर उपलब्ध है- https://www.facebook.com/watch/?v=513918313636550)
महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि सीएम उमर अब्दुल्ला इन परिवारों की तकलीफों को कम करने के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कथित तौर पर इस तरह से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में दर्जनों कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है। उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी के ऐसे मामलों की प्रस्तावित समिति द्वारा समीक्षा और जांच की जानी चाहिए।
महबूबा मुफ्ती ने अपने पत्र में लिखा, ‘समीक्षा ही नहीं, समिति को बर्खास्त कर्मचारियों के परिवारों की वित्तीय सहायता भी प्रदान करनी चाहिए।’ महबूबा मुफ्ची ने इस चिट्ठी को अपने एक्स अकाउंट पर भी पोस्ट किया है। जाहिर है इसके पीछे की मंशा इस मुद्दे का व्यापक प्रचार करना है।
यही नहीं, एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि भविष्य में इसी तरह की कार्रवाई को रोकने के लिए ‘स्पष्ट दिशानिर्देश’ बनाए जाने चाहिए। उन्होंने दावा किया है कि इन सरकारी कर्मचारियों को पूरी जांच और निष्पक्ष सुनवाई के बिना, मनमाने ढंग से, मामूली बातों के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि, महबूबा मुफ्ती के ऐसे दावे बगैर किसी सबूत के हैं क्योंकि ये बर्खास्तगी जम्मू कश्मीर पुलिस (जेकेपी) की सीआईडी विंग सहित खुफिया एजेंसियों के इनपुट पर आधारित थे।
ऐसे कर्मचारियों के संबंध में अधिकांश प्रतिकूल रिपोर्टों की पुष्टि इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी), मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) और अन्य खुफिया एजेंसियों के इनपुट से भी हुई। नाम न छापने का अनुरोध करने वाले कुछ अधिकारियों ने बताया कि इसके बाद ही अनुच्छेद-311 के तहत बर्खास्तगी शुरू की जाती है।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सीएम के रूप में उमर अब्दुल्ला के पास सीमित शक्तियां हैं और उनका सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) और पुलिस पर कोई नियंत्रण नहीं है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि जीएडी और पुलिस दो विभाग हैं जो सीधे तौर पर इन बर्खास्तगी की कार्रवाई में शामिल होते हैं। उमर अब्दुल्ला का आईएएस और आईपीएस कैडर पर भी कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है, जो जीएडी के माध्यम से उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रति जवाबदेह हैं।
सवाल है कि इन जमीनी हकीकतों को देखते हुए अनुच्छेद 311 के तहत बर्खास्त किए गए कर्मचारियों के मामलों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित करने के लिए उमर अब्दुल्ला को पत्र लिखने में महबूबा की मंशा क्या हो सकती है? ऐसा प्रतीत होता है कि वह हाल के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की हार के बाद राजनीतिक लाभ उठाने में लगी हुई हैं। उनकी पार्टी पीडीपी ने इस साल जुलाई में अपने औपचारिक अस्तित्व के 25 साल पूरे किए। इस बार के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी 2014 के 28 सीटों के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से गिरकर केवल तीन विधायकों पर आ गई।
ऐसा लगता है कि महबूबा निकट भविष्य में संभावित पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। वह उन्हें यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि केवल ऐसे अप्रासंगिक भावनात्मक मुद्दों को उठाकर ही, कश्मीर की राजनीति में उनका कद और बढ़ सकता है।