नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के कड़े कानून के संबंध में एक और अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है। साथ ही कोर्ट ने माना कि मंजूरी पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 पीएमएलए मामलों में भी लागू होगी।
जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय की इस दलील को खारिज कर दिया कि मंजूरी के मुद्दे पर सीआरपीसी सहित अन्य कानूनों के प्रावधानों पर पीएमएलए का प्रावधान ज्यादा प्रभावी है।
धारा 197(1) के दायरे को मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए बने पीएमएलए तक बढ़ाते हुए, पीठ ने कहा कि इसका उद्देश्य ईमानदार लोक सेवकों को अभियोजन से बचाना है और यह सुनिश्चित करना है कि वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में जो कुछ भी करते हैं उसके लिए उन पर मुकदमा न चलाया जाए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा, ‘यह प्रावधान ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा के लिए है। हालांकि उचित सरकार से पूर्व मंजूरी के साथ उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है।’ ईडी की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह बात कही।
‘सीआरपीएसी के प्रावधान पीएमएलए पर लागू बशर्ते…’
पीठ ने कहा, ‘धारा 65 सीआरपीसी के प्रावधानों को पीएमएलए के तहत सभी कार्यवाहियों पर लागू करती है, बशर्ते वे पीएमएलए में निहित प्रावधानों के साथ असंगत नहीं हों। हमने पीएमएलए के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया है, हमें नहीं लगता कि इसमें कोई प्रावधान है जो सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधानों के साथ असंगत है…। इसलिए, हमारा मानना है कि पीएमएलए की धारा 44(1)(बी) के तहत किसी शिकायत पर सीआरपीसी की धारा 197(1) के प्रावधान लागू होते हैं।
सीआरपीसी की धारा 197(1) कहती है कि कोई शख्स जो जज या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, और उस पर किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया जाता है जो उसके द्वारा अपना कर्तव्य किए जाने का आरोप है, उसे सरकार द्वारा या उसकी अनुमति के अलावा अपने पद से हटाया नहीं जा सकता है। साथ ही कोई भी न्यायालय पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
वहीं, एजेंसी (ईडी) ने तर्क दिया था कि पीएमएलए की धारा 71 का सीआरपीसी सहित अन्य कानूनों पर प्रभाव है और इसके तहत मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता पीएमएलए के प्रावधानों के अनुसार असंगत होगी। इसमें कहा गया है कि मनी लॉन्ड्रिंग के कृत्य को कर्तव्यों के निर्वहन में किया गया अपराध नहीं माना जा सकता है, जिसके खिलाफ कार्रवाई के लिए मंजूरी की आवश्यकता हो। सुप्रीम कोर्ट की पीठ हालांकि सहमत नहीं हुई और मंजूरी नहीं मिलने के कारण एक वरिष्ठ नौकरशाह के खिलाफ मुकदमा रद्द कर दिया।