लंदन: दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक गूगल पर यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (ईसीजे-ECJ) द्वारा लगभग 26 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। टेक कंपनी को अपनी बाजार शक्ति का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया है।
करीब 15 साल तक चले इस केस में यूके स्थित उद्यमी शिवौन और एडम रैफ के लिए यह एक बड़ी जीत है जिसने गूगल के खिलाफ कोर्ट का रुख किया था। कोर्ट ने यह पाया कि गूगल ने अपने मार्केट पावर को इस्तेमाल कर प्रतिस्पर्धियों के वेबसाइटों के बदले अपनी शॉपिंग सर्विस को ज्यादा तरजीह दी है।
ईसीजे ने यूरोपीय कमीशन के साल 2017 वाले एंटी-ट्रस्ट के उल्लंघन वाले फैसले को बरकरार रखा है। यही नहीं दंपति गगूल के खिलाफ दीवानी मुकदमा भी कर रहे हैं जिसकी सुनवाई 2026 की पहली छमाही में होने वाली है। कोर्ट केस और जांच के बीच दंपति ने साल 2016 में साइट को बंद भी कर दिया था।
यह पहली बार नहीं है जब गूगल पर अपनी मार्केट पावर का गलत इस्तेमाल का आरोप लगा है। इससे पहले साल 2020 में अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा गूगल के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था जिसमें कोर्ट का फैसला इस साल आया है।
कोर्ट ने टेक कंपनी को ऑनलाइन सर्च बाजार पर एकाधिकार बनाने रखने और इस पर लगभग 90 फीसदी कंट्रोल करने का दोषी पाया है जो अमेरिका के एंटीट्रस्ट कानूनों का उल्लंघन है।
फाउंडेम के मालिकों ने गूगल के खिलाफ किया था केस
हाल ही में यूके के एक रेडियो साक्षात्कार में हिस्सा लेने वाले शिवौन और एडम रफ ने गूगल के साथ सालों पुरानी अपनी लड़ाई का जिक्र किया है। साल 2006 में शिवौन और एडम रैफ ने फाउंडेम नामक एक वेबसाइट शुरू की थी। वेबसाइट इलेक्ट्रॉनिक्स, उड़ानों और अन्य चीजों पर मिलने वाली डील्स की जानकारी देती थी।
कुछ महीने बाद दंपति ने पाया कि उनकी वेबसाइट गूगल सर्च रिजल्ट में नहीं दिख रही है। इस कारण उनकी साइट के ट्रैफिक और रेवेन्यू में गिरावट दर्ज की गई थी। दंपति ने पहले माना था कि शायद उनकी साइट में कोई तकनीकी दिक्कत होगी जिससे उनकी साइट गूगल पर रैंक नहीं कर रही है।
दंपति को यह भी लगा कि शायद साइट को गूगल सर्च के ऑटोमैटिक फिल्टर ने स्पैम घोषित कर रखा है जिससे साइट गूगल सर्च रिजल्ट में नहीं दिख रही है और न ही उस पर कोई ट्रैफिक आ रही है।
वास्तव में फाउंडेम पर सर्च इंजन के एक ऑटोमैटिक स्पैम फिल्टर्स के कारण साइट पर गगूल द्वारा सर्च पेनल्टी लगाई गई थी। गूगल के इस पेनल्टी के कारण फाउंडेम ‘प्राइस कम्पेरिजन’ और ‘कम्पेरिजन शॉपिंग’ जैसे सर्च रिजल्ट में वह डाउन दिख रही थी जिससे दंपति की साइट रैंक करने से पिछड़ रही थी।
दंपति को गूगल के पेनल्टी के बारे में जब जानकारी मिली तो उन लोगों ने टेक कंपनी से संपर्क कर उसे हटाने का अनुरोध किया था। करीब दो साल तक कई बार अनुरोध करने के बाद भी गूगल द्वारा फाउंडेम से पेनल्टी नहीं हटाई गई थी।
यूरोपीय कमीशन ने जांच में क्या पाया था
इस बीच साल 2008 में दंपति के साइट को चैनल 5 के द गैजेट शो द्वारा “यूके के सर्वश्रेष्ठ प्राइस कंपेरिजन वेबसाइट” के रूप में चुना गया था। इससे फाउंडेम की लोकप्रियता बढ़ी थी लेकिन इसके बावजूद गूगल ने साइट से पेनल्टी नहीं हटाई थी।
इसके बाद दंपति ने मामले को ब्रिटेन, अमेरिका और ब्रसेल्स के रेग्युलेटर्स के सामने रखा और इसमें साल 2010 में जांच आगे बढ़ी थी। जांच में यूरोपीय कमीशन ने पाया कि गूगल वास्तव में अपनी सेवाओं के पक्ष में न केवल फाउंडेम बल्कि केल्कू, ट्रिवागो और येल्प जैसे अन्य प्रतिस्पर्धियों को भी सर्च रिजल्ट में नहीं दिखा रहा है।
हालांकि गूगल ने अपना बचाव भी किया है लेकिन कोर्ट ने टेक कंपनी को एंटी-ट्रस्ट के उल्लंघन का दोषी पाया है और उसके खिलाफ यह जुर्माना लगाया है। आयोग के जून 2017 के फैसले के खिलाफ गूगल ने सात सालों तक कोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी है लेकिन यूरोपियन कोर्ट ने गगूल की अपील को खारिज करते हुए आयोग के फैसले को बरकरार रखा है।