भुवनेश्वर: ओडिशा एक बार फिर चक्रवाती तूफान का सामना करने के लिए तैयार है। चक्रवाती तूफान ‘दाना’ का असर ओडिसा समेत पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा सहित झारखंड, बिहार और कुछ अन्य राज्यों पर भी नजर आएगा। हालांकि, ओडिशा और बंगाल इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इसमें भी ओडिशा ज्यादा खतरे में रहेगा। तूफान के तट से टकराने के बाद हवाओं की गति 100 से 120 किलोमीटर प्रतिघंटे तक हो सकती है।
हालांकि, ओडिशा के लिए चक्रवाती तूफान का सामना करना कोई नई बात नहीं है। पिछले 100 सालों में ओडिशा ने 260 से अधिक तूफानों का सामना किया है। इससे जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। वैसे, पिछले करीब दो दशकों में ओडिशा ने इन चक्रवाती तूफानों से निपटने के लिए ऐसी तैयारियां की है, जिसके चलते होने वाले नुकसान की मात्रा काफी कम हो गई है। इसके पीछे 1999 के उस सुपर साइक्लोन की कहानी भी जिसने ओडिशा को बड़ा सबक दिया और यहीं से सीख कर इस राज्य ने तूफान जैसे बड़े मुसीबत से निपटने का रास्ता खोजा।
1999 में आया था ‘महातूफान’
साल 1999 में आए उस चक्रवात को उत्तरी हिंद महासागर में दर्ज सबसे तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात में गिना जाता है। यह चक्रवाती तूफान बेहद विनाशकारी था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उस तूफान में करीब 10 हजार लोग मारे गए थे। 4 लाख जानवकों की मौत हुई थी। इसके अलावा कई हजार स्कूल और 10 हजार किलोमीटर से ज्यादा की सड़कें बर्बाद हो गई थी। तूफान के बाद डायरिया और हैजा जैसी बीमारियों में वृद्धि देखी गई। चक्रवात के एक महीने के भीतर ओडिशा राज्य सरकार ने डायरिया संबंधी बीमारी के 22,296 मामले दर्ज किए।
1999 के बाद ओडिशा की तैयारी
ओडिशा में आए इस सबसे भयानक तूफान के बाद ओडिशा ने खुद को भविष्य में ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयारी शुरू की। ओडिशा स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (OSDMA) का गठन किया। इस तरह ये देश का पहला ऐसा राज्य बना जहां इस तरह के आपदा प्राधिकरण का गठन हुआ। यहां तक कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) का गठन 2005 में हुआ था।
ओडिशा की सरकार ने साथ ही लोगों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए ट्रेनिंग देने का भी काम शुरू किया। तूफानों के समय किस तरह खुद को सुरक्षित रखा जाए, इसे लेकर मॉक ड्रिल भी हर साल ओडिशा में किया जाता है।
इसके अलावा सरकार ने तटीय इलाकों के पास बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर काम किया। ऐसे रोड नेटवर्क तैयार किए गए, जिसका इस्तेमाल आपदा के समय लोगों को तेजी से सुरक्षित स्थान पर लेकर जाने के लिए किया जा सके। साथ ही 800 से ज्यादा शेल्टर होम बनाए गए, जहां प्रभावित स्थान से लाए लोगों को रखा जा सके।
कई तटीय गांवों में छोटे तटबंध भी बनाए गए हैं, ताकि समुद्र के पानी को गांवों में आने से रोकने में मदद मिले। मॉनिटरिंग टॉवर भी लगाए गए हैं। कई पक्के घर तैयार किए गए। यही नहीं, तटीय इलाकों के करीब 1200 से ज्यादा गांवों में वॉर्निंग सिस्टम लगाया गया है, जिसकी मदद से आपदा के समय सायरन बजाकर अलर्ट किया जाता है।
2013 और 2019 में दिखा तैयारी का असर
ओडिशा को वैसे तो लगभग हर साल चक्रवाती तूफानों का सामना करना पड़ता है लेकिन 1999 की घटना के बाद 2013 और 2019 में दो बहुत खतरनाक तूफान आए। 2013 में ‘फैलिन’ नाम का तूफान आया। इसे भी 1999 की तरह खतरनाक माना जा रहा था। इस तूफान के दौरान हवाओं की गति 250 किमी प्रतिघंटे से भी ज्यादा थी।
सरकार की तैयारियों की बदौलत उस तूफान में केवल 44 लोगों की मौत हुई। 11 लाख से ज्यादा लोगों को पहले ही प्रभावित इलाकों से निकाल लिया गया था। ऐसे ही 2019 में फोनी तूफान आया। इसे भी बेहद खतरनाक माना गया। इसमें 64 लोगों की जान गई। इस तूफान के समय भी 12 लाख लोगों को प्रभावित इलाके से समय रहते निकाल लिया गया था।