नई दिल्लीः भारत ने अपने दुश्मनों के खिलाफ समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में एक और कदम बढ़ा दिया है। इस हफ्ते विशाखापट्टनम के शिप बिल्डिंग सेंटर (एसबीसी) में चुपचाप अपनी चौथी परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) लॉन्च की। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव चल रहे हैं। चौथी एसएसबीएन, जिसे एस4* कोडनाम दिया गया है, 16 अक्टूबर को लॉन्च की गई। इससे देश की परमाणु निवारक क्षमताओं को और बल मिला है।
भारत की समुद्री शक्ति में विस्तार
इससे पहले, 29 अगस्त 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत की दूसरी एसएसबीएन पनडुब्बी ‘अरिघाट’ को कमीशन किया था। वहीं, तीसरी बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी ‘अरिधमान’ को अगले साल कमीशन किए जाने की योजना है। इस बीच, 9 अक्टूबर को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने दो और परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियों के निर्माण की योजना को मंजूरी दी, जिससे भारत की इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उपस्थिति और भी मजबूत होगी।
बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी एस4* की क्या हैं विशेषताएं?
मोदी सरकार भले ही परमाणु निवारक रणनीति पर चुप्पी साधे हुए हो, लेकिन चौथी बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी एस4* की लॉन्चिंग ने समुद्री सुरक्षा में भारत की आत्मनिर्भरता को उजागर किया है। यह पनडुब्बी लगभग 75% स्वदेशी सामग्री से बनी है और इसमें 3,500 किमी की रेंज वाली के-4 बैलिस्टिक मिसाइलें हैं, जिन्हें वर्टिकल लॉन्चिंग सिस्टम के माध्यम से दागा जा सकता है।
पहली एसएसबीएन आईएनएस अरिहंत में 750 किमी की रेंज वाली के-15 मिसाइलें थीं, लेकिन बाद की पनडुब्बियों में केवल के-4 मिसाइलें हैं, जिनकी मारक क्षमता ज्यादा है। इन पनडुब्बियों की सीमा और सहनशक्ति अनंत होती है, यानी वे केवल भोजन, चालक दल की थकान और रखरखाव के कारण सीमित होती हैं।
समुद्र में सुरक्षाः आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघाट की तैनाती
आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघाट पहले से ही गहरे समुद्र में गश्त पर हैं, और 2028 तक रूस की अकुला क्लास की एक परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बी भारत को लीज पर मिलने वाली है। इसके अलावा, आईएनएस वागशीर, जो कलवारी क्लास की छठी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है, दिसंबर 2024 में कमीशन की जाएगी। यह कदम भारत की पारंपरिक समुद्री सुरक्षा को भी मजबूत करने का हिस्सा है।
समुद्री सुरक्षा में बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी को प्राथमिकता
मोदी सरकार ने भारत की समुद्री रणनीति को दुश्मनों, विशेषकर चीन के खिलाफ निवारक ताकत के रूप में देखा है। चीन की लंबी दूरी की मिसाइलें जैसे Dong Feng-21 और Dong Feng-26 विमानवाहक पोतों को खतरे में डाल सकती हैं, जिससे परमाणु-संचालित पनडुब्बियों को प्राथमिकता दी जा रही है। यही कारण है कि सरकार ने भारतीय नौसेना के तीसरे विमानवाहक पोत पर जोर देने के बजाय परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों को प्राथमिकता दी है।
भविष्य में और अधिक पनडुब्बियों का होगा निर्माण
भारत की सुरक्षा योजनाएं यहीं नहीं रुकतीं। फ्रेंच नेवल ग्रुप के सहयोग से तीन और उन्नत डीजल हमलावर पनडुब्बियों के निर्माण की योजना है, जो मझगांव डॉकयार्ड में बनाई जाएंगी। यह कदम भारतीय महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति के खिलाफ एक मजबूत जवाबी कार्रवाई है, जहां हर महीने 10-11 चीनी पीएलए युद्धपोत गश्त करते हैं।