नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर को भारतीय नागरिकता से जुड़े विभिन्न प्रावधानों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई व्यक्ति विदेशी नागरिकता ग्रहण करता है, तो भारतीय नागरिकता स्वत: कानून के अनुसार समाप्त हो जाती है। यह प्रक्रिया स्वैच्छिक नहीं मानी जाएगी। इसलिए, ऐसे व्यक्तियों के बच्चे भारतीय नागरिकता फिर से धारण करने के लिए नागरिकता अधिनियम की धारा 8(2) का सहारा नहीं ले सकते।
विदेशी जन्म के आधार पर नहीं मिलेगी नागरिकता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति संविधान लागू होने के बाद भारत के बाहर पैदा हुआ हो, वह संविधान के अनुच्छेद 8 के तहत भारतीय नागरिकता का दावा नहीं कर सकता, चाहे उसके दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि अगर इस प्रावधान का विस्तार करके इसका दुरुपयोग किया गया, तो इससे विदेशी नागरिक भी केवल अपने पूर्वजों के जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता का दावा कर सकते हैं, जो असंगत और अनुचित होगा।
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि अनुच्छेद 8 केवल उन्हीं लोगों पर लागू होता है जो संविधान के लागू होने की तारीख पर भारत के बाहर किसी देश में “साधारणत: निवास” कर रहे हों। इसका मतलब है कि यह प्रावधान केवल उन लोगों पर लागू होता है जो 1935 के अधिनियम के अनुसार भारत के बाहर किसी देश में उस समय रहते थे।
केंद्र की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
यह फैसला जस्टिस अभय ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया, जिसमें केंद्र सरकार की अपील स्वीकार की गई। यह अपील मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ थी, जिसमें एक सिंगापुर नागरिक को भारतीय नागरिकता पुनः प्राप्त करने की अनुमति दी गई थी। हाईकोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया था क्योंकि संबंधित व्यक्ति के माता-पिता भारतीय नागरिक थे और बाद में सिंगापुर की नागरिकता ग्रहण की थी।
धारा 8(2) और अन्य प्रावधान
शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 8(2) केवल उन मामलों में लागू होगी जब माता-पिता ने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता छोड़ी हो। इस मामले में, जब प्रणव श्रीनिवासन के माता-पिता ने सिंगापुर की नागरिकता प्राप्त की, तो वे भारतीय नागरिकता से स्वत: वंचित हो गए। इसलिए, प्रणव पर धारा 8(2) लागू नहीं होती। हालाँकि, कोर्ट ने यह संभावना खुली रखी कि प्रणव श्रीनिवासन नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(f) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, यदि वे 12 महीने तक भारत में रह चुके हों।
अनुच्छेद 8 के तहत नागरिकता का दावा
प्रणव श्रीनिवासन ने यह तर्क दिया कि उनके दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ था, इसलिए वे अनुच्छेद 8 के तहत भारतीय नागरिकता के हकदार हैं। अनुच्छेद 8 उन लोगों को नागरिकता का अधिकार देता है जिनके माता-पिता या दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि अनुच्छेद 8 का विस्तार इस तरह से नहीं किया जा सकता कि इसमें उन लोगों को भी शामिल किया जाए जो संविधान लागू होने के बाद पैदा हुए हों।