जम्मू: जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बुधवार को उमर अब्दुल्ला को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
नौशेरा से भाजपा नेता रविंदर रैना को हराने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के सुरिंदर चौधरी को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है। उमर अब्दुल्ला ने 11 अक्टूबर को सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के विधायक दल का एक पत्र उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को सौंपा था।
जम्मू और कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में एनसी ने 42 सीटों पर जीत हासिल की है। उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम से चुनाव लड़ा था और उन्हें दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से जीत मिली है।
बुधवार को उमर अब्दुल्ला के साथ चार अन्य एनसी विधायकों ने भी शपथ ली। इनमें नौशेरा से सुरिंदर चौधरी, मेंढर से गुज्जर नेता जावेद राणा, जाविद डार और डी एच पोरा से सकीना इत्तो (नी हमीद) शामिल हैं।
छंब से निर्दलीय विधायक सतीश शर्मा ने भी बुधवार को शपथ ली है। शर्मा पहले कांग्रेस में थे, लेकिन पार्टी की तरफ से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया था। सतीश शर्मा ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद को हराया है, जो उनके दिवंगत पिता मदन लाल शर्मा के करीबी माने जाते थे।
एनसी सदस्यों के अलावा उमर सरकार को छह कांग्रेस विधायकों और एक सीपीएम सदस्य यूसुफ तारिगामी का समर्थन प्राप्त है। जम्मू क्षेत्र से चुने गए चार निर्दलीय विधायक, जो एनसी और कांग्रेस से बगावत कर चुके थे, वे पहले ही उमर अब्दुल्ला को समर्थन दे चुके हैं।
इससे उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में बनने वाली सरकार को 53 विधायकों का समर्थन हासिल हुआ है, जो बहुमत का आंकड़ा 46 से अधिक है। 29 सीटों से जीत हासिल करने वाली भाजपा जम्मू और कश्मीर में दूसरी नंबर पर है और एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएगी।
पीडीपी को केवल 3 सीटों पर मिली है जीत
इस चुनाव में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया है। उनकी पार्टी को केवल तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई है। उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने बिजेबेहेड़ा सीट से पार्टी के पारंपरिक गढ़ से अपनी राजनीतिक शुरुआत की थी, लेकिन एनसी उम्मीदवार से उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा है।
पीडीपी की स्थापना जुलाई 1999 में दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद ने की थी, और 2002 के विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के पास कुल 16 विधायक थे। साल 2008 में पार्टी के उम्मीदवारों ने 28 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी।
साल 2014 में पीडीपी 28 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। एक दशक बाद पार्टी के सीटों में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जो साल 2014 की तुलना में 25 विधानसभा सीटों का नुकसान है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में यह चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी के एक भी विधायक ने मंत्री पद की शपथ नहीं ली है।
शपथ न लेने पर कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता गुलाम अहमद मीर ने कहा है कि जब तक जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक पार्टी का एक भी विधायक मंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं लेगा।
मीर ने कहा है कि यह स्थिति समझौता योग्य नहीं है और लोगों के अधिकारों के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मीर ने उन दावों को भी खारिज किया है, जिसमें एनसी और कांग्रेस के बीच मंत्री पद को लेकर विवाद के कारण कांग्रेस विधायकों के शपथ न लेने का दावा किया गया था।
इन दावों पर बोलते हुए मीर ने कहा है कि “हमने विधानसभा चुनाव सत्ता के लिए नहीं, बल्कि लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए लड़ा था। इस बिंदु पर मंत्री पद का प्रश्न अप्रासंगिक है। हमारी प्राथमिकता राज्य का दर्जा बहाल करना है।”
गुलाम अहमद मीर ने यह भी कहा है कि पीएम मोदी को जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में बार-बार की गई अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा है कि जनता ने अपना मत रखा है और अब पीएम को उनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए।
उमर अब्दुल्ला को उनके भरोसेमंद सज्जाद किचलू किश्तवाड़ के बिना ही सरकार चलानी पड़ेगी। सज्जाद किचलू किश्तवाड़ को इस चुनाव में हार मिली है। वे भाजपा के शगुन परिहार से करीबी मुकाबले में चुनाव हार गए थे।
किचलू को उमर अब्दुल्ला का करीबी माना जाता है और जब वे पिछली बार 5 जनवरी 2009 को जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री बने थे, तब वे गृह राज्य मंत्री (एमओएस) थे। अधिनियमित व्यापार के नए नियमों के तहत 5 अगस्त 2019 के बाद गृह मंत्रालय सरकार से नहीं, बल्कि यह एलजी के अधीन होगा।
इस शपथग्रहण समारोह में कई हाई प्रोफाइल राजनीतिक हस्तियों ने हिस्सा लिया। इसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जैसे कई और नेताओं ने भाग लिया। यह समारोह डल झील के एसकेआईसीसी में आयोजित हुआ था। पिछली बार दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद ने यहां पर सीएम पद की शपथ ली थी।
साल 2019 में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए को निरस्त करने और पूर्व राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में विभाजित करने के बाद, यह उमर अब्दुल्ला का मुख्यमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल है।
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पहली बार एक ही पार्टी के बने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री
शपथ ग्रहण समारोह में एनसी के सभी विधायक और पार्टी के कई अन्य दिग्गज नेता मौजूद थे। जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव तीन चरणों में 18, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को हुए थे। इसके नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए गए थे, और उसके बाद सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
सन 1975 से ऐसा चलता आ रहा है कि मुख्यमंत्री एक पार्टी का होता है और उपमुख्यमंत्री गठबंधन सहयोगी का होता है। लेकिन इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री एक ही पार्टी के, यानी एनसी के हैं।
आने वाले दिन उमर अब्दुल्ला के राजनीतिक कौशल की परीक्षा हो सकती है, क्योंकि वे पिछले बार पूरे भारत में सबसे शक्तिशाली मुख्यमंत्री के रूप में उभरकर सामने आए थे।
इस बार मुख्यमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल है, जिसमें वे मुख्यमंत्री तो हैं, लेकिन उनके पास शक्तियां कम हैं, क्योंकि जम्मू और कश्मीर में सबसे ज्यादा शक्तियां राज्यपाल को दी गई हैं।