नई दिल्लीः कनाडा के मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर खालिस्तानी आतंकवादियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। भारत सरकार की तरफ से कनाडा को भेजे जवाब में कहा गया कि ट्रूडो “वोटबैंक की राजनीति” के चलते ऐसा कर रहे हैं। खालिस्तानी आतंकियों के कनाडा में शरण लेने और राजनीतिक संरक्षण पाना का सिलसिला दशकों पुराना है। जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे एलियट ट्रूडो जब प्रधानमंत्री थे तब उनपर भी यही आरोप लगातार लगते रहे। भारत की तत्कालीन इन्दिरा गांधी सरकार ने इसपर कनाडा सरकार से एतराज भी जताया था।
पियरे ट्रूडो ने कनाडा में रह रहे जिन आतंकवादियों को भारत को सौंपने से मना कर दिया था उनमें तलविंदर सिंह परमार भी शामिल था जिसपर 329 लोगों की हत्या का आरोप था। तलविंदर और उसके साथियों ने एयर इंडिया के एक विमान को हवा में उड़ा दिया था जिसमें सभी यात्री मारे गये थे। मरने वालों में ज्यादातर कनाडा के नागरिक थे जो भारत से जाकर वहाँ बसे थे।
खालिस्तानी मुद्दा और पियरे ट्रूडो की भूमिका
पियरे ट्रूडो का कार्यकाल खालिस्तानी आतंकवाद के प्रति उनकी उदासीनता के लिए जाना जाता है। 1980 के दशक में जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था, कई खालिस्तानी आतंकवादी कनाडा में शरण लेने लगे। इनमें सबसे कुख्यात नाम था तलविंदर सिंह परमार का, जिसने कनाडा में शरण ली थी। भारत ने परमार के प्रत्यर्पण की मांग की, जिसे पियरे ट्रूडो की सरकार ने ठुकरा दिया।
1985 में हुए कुख्यात “कनिष्क” बम धमाके में, जिसमें एयर इंडिया फ्लाइट 182 में 329 लोग मारे गए थे, परमार का हाथ था। यह कनाडा के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला था। फिर भी, इस आतंकी घटना के बाद भी, पियरे ट्रूडो की सरकार ने इस मामले में ठोस कार्रवाई नहीं की। यही वजह है कि भारत और कनाडा के रिश्तों पर इस आतंकी घटना का गहरा असर पड़ा।
जस्टिन ट्रूडो की खालिस्तान नीति: पिता की विरासत का जारी रहना
पियरे ट्रूडो की तरह, उनके बेटे जस्टिन ट्रूडो ने भी खालिस्तानी तत्वों के प्रति नर्म रुख अपनाया है। हाल ही में, जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत पर आरोप लगाए, जिससे भारत-कनाडा संबंधों में भारी तनाव पैदा हो गया।
जस्टिन ट्रूडो की सरकार पर यह आरोप है कि वे कनाडा में खालिस्तानी तत्वों को पनपने दे रहे हैं, खासकर क्योंकि उनकी सरकार को सिख नेता जगमीत सिंह की पार्टी का समर्थन प्राप्त है।
भारत के लिए खालिस्तान मुद्दा एक संवेदनशील मुद्दा है, और जस्टिन ट्रूडो की इस मामले में अनदेखी ने दोनों देशों के बीच व्यापार और सुरक्षा संबंधों को प्रभावित किया है।
पियरे ट्रूडो का भारत दौरा
खालिस्तानी आतंकवाद को लेकर गतिरोध से पहले भी भारत और कनाडा के बीच परमाणु ऊर्जा को लेकर कूटनीतिक गतिरोध उत्पन्न हुआ था।
पियरे ट्रूडो ने जनवरी 1971 में भारत का दौरा किया था। उन्होंने यहां कई जगहों का दौरा किया, जिसमें ताजमहल और गंगा के किनारे की यात्रा भी शामिल थी। हालांकि उनके भारत दौरे के कुछ वर्षों बाद ही 1974 में भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसने कनाडा और भारत के बीच रिश्तों में खटास डाल दी।
भारत के इस परमाणु परीक्षण के लिए जिस प्लूटोनियम का उपयोग हुआ, वह कनाडाई-भारतीय रिएक्टर से आया था, जिसे शांति पूर्वक उद्देश्यों के लिए विकसित किया गया था। इस पर पियरे ट्रूडो ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और भारत के साथ परमाणु सहयोग समाप्त कर दिया।
हालांकि, भारत ने इसे “शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट” करार दिया, फिर भी कनाडा ने भारतीय न्यूक्लियर प्रोग्राम से अपने सहयोग को वापस ले लिया। इस घटना ने दोनों देशों के रिश्तों में एक लंबी दरार डाल दी, जो वर्षों तक चली।